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मंगलवार, 1 सितंबर 2009

हिन्दी पखवाड़ा



सरकारी विभागों में सितम्बर माह के प्रथम दिवस से ही हिन्दी पखवाड़ा मनाना आरम्भ हो जाता है और हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) आते-आते बहुत कुछ होता जाता है। ऐसी ही कुछ भावनाओं को इस कविता में व्यक्त किया गया है-

एक बार फिर से
हिन्दी पखवाड़ा का आगमन
पुराने बैनर और नेम प्लेटें
धो-पोंछकर चमकाये जाने लगे
बस साल बदल जाना था

फिर तलाश आरम्भ हुई
एक अदद अतिथि की
एक हिन्दी के विद्वान
एक बाबू के
पड़ोस में रहते थे
सो आसानी से तैयार हो गये
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनने हेतु

आते ही
फूलों का गुलदस्ता
और बंद पैक में भेंट
उन्होंने स्वीकारी
हिन्दी के राजभाषा बनने से लेकर
अपने योगदान तक की चर्चाकर डाली

मंच पर आसीन अधिकारियों ने
पिछले साल के
अपने भाषण में
कुछ काट-छाँट कर
फिर से
हिन्दी को बढ़ावा देने की शपथ ली
अगले दिन तमाम अखबारों में
समारोह की फोटो भी छपी

सरकारी बाबू ने कुल खर्च की फाइल
धीरे-धीरे अधिकारी तक बढ़ायी
अधिकारी महोदय ने ज्यों ही
अंग्रेजी में अनुमोदन लिखा
बाबू ने धीमे से टोका
अधिकारी महोदय ने नजरें उठायीं
और झल्लाकर बोले
तुम्हें यह भी बताना पड़ेगा
कि हिन्दी पखवाड़ा बीत चुका है !!

12 टिप्‍पणियां:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

हा..हा..हा..हिंदी-पखवाडा पर दिलचस्प कविता. शायद यही सच भी है.

Unknown ने कहा…

बहुत खूब के. के. जी...लम्बे समय बाद ही सही पर बेहद मजेदार कविता..बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

अजी हिंदी के दिन फिर से आ गए, भले ही सरकारी कार्यालयों में.
एक बार फिर से
हिन्दी पखवाड़ा का आगमन
पुराने बैनर और नेम प्लेटें
धो-पोंछकर चमकाये जाने लगे
बस साल बदल जाना था
बहुत गंभीर बात कही है आपने हिंदी की दशा पर.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

आप तो खुद सरकारी-अधिकारी हैं. आपसे अच्छा हाल कौन जानता होगा..पर आपकी लेखनी की तारीफ करनी पड़ेगी.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

अरे भाई ये तो "सच का सामना" जैसा मामला हो गया. सरकारी-व्यवस्था में रहकर आप तो उसी की पोल खोलने लगे...इसे कहते हैं बिंदास बोल.

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे आप ने तो सच को नंगा कर दिया... बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद

Prabhat Misra ने कहा…

EXCELLENT.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

हिंदी के नाम पर किये जाने वाले तमाशे पर एक करारा व्यंग.

Sargam Dutt ने कहा…

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Arshia Ali ने कहा…

Achchhe bhaav. Is shama ko jalaaye rakkhen.
( Treasurer-S. T. )

S R Bharti ने कहा…

सरकारी विभागों में हिंदी का हाल यही है. आप जैसे विरले ही होंगे जो अधिकारी की कुर्सी पर बैठकर भी हिंदी साहित्य की सेवा में लगे हुए हैं...रोचक कविता के लिए बधाई.

S R Bharti ने कहा…

सरकारी विभागों में हिंदी का हाल यही है. आप जैसे विरले ही होंगे जो अधिकारी की कुर्सी पर बैठकर भी हिंदी साहित्य की सेवा में लगे हुए हैं...रोचक कविता के लिए बधाई.