सरकारी विभागों में सितम्बर माह के प्रथम दिवस से ही हिन्दी पखवाड़ा मनाना आरम्भ हो जाता है और हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) आते-आते बहुत कुछ होता जाता है। ऐसी ही कुछ भावनाओं को इस कविता में व्यक्त किया गया है-
एक बार फिर से
हिन्दी पखवाड़ा का आगमन
पुराने बैनर और नेम प्लेटें
धो-पोंछकर चमकाये जाने लगे
बस साल बदल जाना था
फिर तलाश आरम्भ हुई
एक अदद अतिथि की
एक हिन्दी के विद्वान
एक बाबू के
पड़ोस में रहते थे
सो आसानी से तैयार हो गये
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनने हेतु
आते ही
फूलों का गुलदस्ता
और बंद पैक में भेंट
उन्होंने स्वीकारी
हिन्दी के राजभाषा बनने से लेकर
अपने योगदान तक की चर्चाकर डाली
मंच पर आसीन अधिकारियों ने
पिछले साल के
अपने भाषण में
कुछ काट-छाँट कर
फिर से
हिन्दी को बढ़ावा देने की शपथ ली
अगले दिन तमाम अखबारों में
समारोह की फोटो भी छपी
सरकारी बाबू ने कुल खर्च की फाइल
धीरे-धीरे अधिकारी तक बढ़ायी
अधिकारी महोदय ने ज्यों ही
अंग्रेजी में अनुमोदन लिखा
बाबू ने धीमे से टोका
अधिकारी महोदय ने नजरें उठायीं
और झल्लाकर बोले
तुम्हें यह भी बताना पड़ेगा
कि हिन्दी पखवाड़ा बीत चुका है !!
12 टिप्पणियां:
हा..हा..हा..हिंदी-पखवाडा पर दिलचस्प कविता. शायद यही सच भी है.
बहुत खूब के. के. जी...लम्बे समय बाद ही सही पर बेहद मजेदार कविता..बधाई.
अजी हिंदी के दिन फिर से आ गए, भले ही सरकारी कार्यालयों में.
एक बार फिर से
हिन्दी पखवाड़ा का आगमन
पुराने बैनर और नेम प्लेटें
धो-पोंछकर चमकाये जाने लगे
बस साल बदल जाना था
बहुत गंभीर बात कही है आपने हिंदी की दशा पर.
आप तो खुद सरकारी-अधिकारी हैं. आपसे अच्छा हाल कौन जानता होगा..पर आपकी लेखनी की तारीफ करनी पड़ेगी.
अरे भाई ये तो "सच का सामना" जैसा मामला हो गया. सरकारी-व्यवस्था में रहकर आप तो उसी की पोल खोलने लगे...इसे कहते हैं बिंदास बोल.
अरे आप ने तो सच को नंगा कर दिया... बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद
EXCELLENT.
हिंदी के नाम पर किये जाने वाले तमाशे पर एक करारा व्यंग.
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( Treasurer-S. T. )
सरकारी विभागों में हिंदी का हाल यही है. आप जैसे विरले ही होंगे जो अधिकारी की कुर्सी पर बैठकर भी हिंदी साहित्य की सेवा में लगे हुए हैं...रोचक कविता के लिए बधाई.
सरकारी विभागों में हिंदी का हाल यही है. आप जैसे विरले ही होंगे जो अधिकारी की कुर्सी पर बैठकर भी हिंदी साहित्य की सेवा में लगे हुए हैं...रोचक कविता के लिए बधाई.
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