स्वतंत्रता की गाथा सिर्फ अतीत भर नहीं है बल्कि आगामी पीढ़ियों हेतु यह कई सवाल भी छोड़ती है। वस्तुतः भारत का स्वाधीनता संग्राम एक ऐसा आन्दोलन था, जो अपने आप में एक महाकाव्य है। लगभग एक शताब्दी तक चले इस आन्दोलन ने भारतीय राष्ट्रीयता की अवधारणा से संगठित हुए लोगों को एकजुट किया। यह आन्दोलन किसी एक धारा का पर्याय नहीं था, बल्कि इसमें सामाजिक-धार्मिक सुधारक, राष्ट्रवादी साहित्यकार, पत्रकार, क्रान्तिकारी, कांग्रेसी, गाँधीवादी इत्यादि सभी किसी न किसी रूप में सक्रिय थे।
1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम को अंग्रेज इतिहासकारों ने ‘सिपाही विद्रोह‘ मात्र की संज्ञा देकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि यह विद्रोह मात्र सरकार व सिपाहियों के बीच का अल्पकालीन संघर्ष था, न कि सरकार व जनता के बीच का संघर्ष। वस्तुतः इस प्रचार द्वारा उन्होंने भारत के कोने-कोने में पनप रही राष्ट्रीयता की भावना को दबाने का पूरा प्रयास किया। पर इसमें वे पूर्णतया कामयाब नहीं हुये और इस क्रान्ति की ज्वाला अनेक क्षेत्रों में एक साथ उठी, जिसने इसे अखिल भारतीय स्वरूप दे दिया। इस संग्राम का मूल रणक्षेत्र भले ही नर्मदा और गंगा के बीच का क्षेत्र रहा हो, पर इसकी गूँज दूर-दूर तक दक्षिण मराठा प्रदेश, दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों, गुजरात और राजस्थान के इलाकों और यहाँ तक कि पूर्वोत्तर भारत के खासी-जंैतिया और कछार तक में सुनाई दी। परिणामस्वरूप, भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का यह प्रथम प्रयास पे्ररणास्रोत बन गया और ठीक 90 साल बाद भारत ने स्वाधीनता के कदम चूमकर एक नये इतिहास का आगाज किया।
भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि आजादी के दीवानों का लक्ष्य सिर्फ अंग्रजों की पराधीनता से मुक्ति पाना नहीं था, बल्कि वे आजादी को समग्र रूप में देखने के कायल थे। भारतीय पुनर्जागरण के जनक कहे जाने वाले राजाराममोहन राय से लेकर भगतसिंह जैसे क्रान्तिकारी और महात्मा गाँधी तक ने एक आदर्श को मूर्तरूप देने का प्रयास किया। राजाराममोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करवाकर नारी मुक्ति की दिशा में पहला कदम रखा, ज्योतिबाफुले व ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने शैक्षणिक सुधार की दिशा में कदम उठाए, स्वामी विवेकानन्द व दयानन्द सरस्वती ने आध्यात्मिक चेतना का जागरण किया, दादाभाई नौरोजी ने गरीबी मिटाने व धन-निकासी की अंग्रेजी अवधारणाओं को सामने रखा, लाल-बाल-पाल ने राजनैतिक चेतना जगाकर आजादी को अधिकार रूप में हासिल करने की बात कही, वीर सावरकर ने 1857 की क्रान्ति को प्रथम स्वाधीनता संग्राम के रूप में चिन्हित कर इसकी तुलना इटली में मैजिनी और गैरिबाल्डी के मुक्ति आन्दोलनों से व्यापक परिप्रेक्ष्य में की, भगत सिंह ने क्रान्ति को जनता के हित में स्वराज कहा और बताया कि इसका तात्पर्य केवल मालिकों की तब्दीली नहीं बल्कि नई व्यवस्था का जन्म है, महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह व अहिंसा द्वारा समग्र भारतीय समाज को जनान्दोलनों के माध्यम से एक सूत्र में जोड़कर अद्वैत का विश्व रूप दर्शन खड़ा किया, पं0 नेहरू ने वैज्ञानिक समाजवाद द्वारा विचारधाराओं में सन्तुलन साधने का प्रयास किया, डा0 अम्बेडकर ने स्वाधीनता को समाज में व्याप्त विषमता को खत्म कर दलितों के उद्धार से जोड़ा.........। इस आन्दोलन में जहाँ हिन्दू-मुसलमान एकजुट होकर लड़े, दलितों-आदिवासियों-किसानों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। तमाम नारियों ने समाज की परवाह न करते हुये परदे की ओट से बाहर आकर इस आन्दोलन में भागीदारी की।
स्वाधीनता का आन्दोलन सिर्फ इतिहास के लिखित पन्नों पर नहीं है, बल्कि लोक स्मृतियों में भी पूरे ठाठ-बाट के साथ जीवित है। तमाम साहित्यकारों व लोक गायकों ने जिस प्रकार से इस लोक स्मृति को जीवंत रखा है, उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। वैसे भी पिस्तौल और बम इन्कलाब नहीं लाते बल्कि इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है (भगत सिंह)। यह अनायास ही नहीं है कि अधिकतर नेतृत्वकर्ता और क्रान्तिकारी अच्छे विचारक, कवि, लेखक या साहित्यकार थे। तमाम रचनाधर्मियों ने इस ‘क्रान्ति यज्ञ’ में प्रेरक शक्ति का कार्य किया और स्वाधीनता आन्दोलन को एक नयी परिभाषा दी।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस बात की आवश्यकता है कि राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के तमाम छुये-अनछुये पहलुओं को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाये और औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों को खत्म किया जाये। इतिहास के पन्नों में स्वाधीनता आन्दोलन के साक्षात्कार और इसके गहन विश्लेषण के बीच आत्मगौरव के साथ-साथ उससे जुड़े सबकों को भी याद रखना जरूरी है। राजनैतिक स्वतन्त्रता से परे सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी सच्चे अर्थों में हमारा ध्येय होना चाहिए। इसी क्रम में युवा पीढ़ी को राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास से रूबरू कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, पर उससे पहले इतिहास को पाठ्यपुस्तकों से निकालकर लोकाचार से जोड़ना होगा।
21 टिप्पणियां:
बहुत ही सही और सामयिक लेख. आज हम उन आज़ादी के दीवानों को याद करते हैं और श्रधांजलि अर्पण करते हैं जिन्होंने हमारे आज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया.
६३ वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.
इसी क्रम में युवा पीढ़ी को राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास से रूबरू कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, पर उससे पहले इतिहास को पाठ्यपुस्तकों से निकालकर लोकाचार से जोड़ना होगा।
बात सच है, पर ऐसा करेगा कौन?
जिस देश के कर्ता_धर्ता स्वतंत्रता प्राप्ति के बासठ वर्षों में एक भी सर्वमान्य आदर्श पुरुष नहीं दे सके, उस भारत की तीसरी पीढी क्या समझेगी उन जज्बातों को जो स्वतंत्रता सेनानियों और हमारे पूर्व के आदर्शों में था......
जैसा देख रहे हैं, उसी में जीना सिख रही है आधुनिक नयी पीढी, अब न कहीं अनुशाशन की बात होती है न सत्य की, यदि कुछ है तो मौकापरस्ती और झूंठ.
६३ वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.
तथ्यपरक लेख पर हार्दिक बधाई.
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस बात की आवश्यकता है कि राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के तमाम छुये-अनछुये पहलुओं को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाये और औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों को खत्म किया जाये।
सही कहा आपने
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Bahut sundar Prastuti...badhai.
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें !! जय हिंद !! जय भारत !!
जनगणमन अधिनायक जय हे..भारत भाग्य विधाता...जय हो, जय हो, जय-जय-जय, जय हो.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
स्वतंत्रता दिवस पर सार्थक प्रस्तुति....बधाई.
स्वाधीनता का आन्दोलन सिर्फ इतिहास के लिखित पन्नों पर नहीं है, बल्कि लोक स्मृतियों में भी पूरे ठाठ-बाट के साथ जीवित है। तमाम साहित्यकारों व लोक गायकों ने जिस प्रकार से इस लोक स्मृति को जीवंत रखा है, उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।....apse 100% sahmat hoon.
बहुत ही सुन्दर आलेख.स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें. आभार.
इतिहास के पन्नों में स्वाधीनता आन्दोलन के साक्षात्कार और इसके गहन विश्लेषण के बीच आत्मगौरव के साथ-साथ उससे जुड़े सबकों को भी याद रखना जरूरी है। राजनैतिक स्वतन्त्रता से परे सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी सच्चे अर्थों में हमारा ध्येय होना चाहिए। इसी क्रम में युवा पीढ़ी को राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास से रूबरू कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए,
आपने बिल्कुल सही विश्लेषण किया है. आपकी बात सौ फ़ीसदी सही है. अभी मरु गुलशन में आपकी रचना पढने को मिली.
ब्लाग पर टिप्पणी देने के लिये धन्यवाद. उम्मीद है आगे भी मुलाकात होती रहेगी.
जिसमें समग्रता न हो उसे स्वतंत्रता कहा ही नही जा सकता स्वतंत्रता का भावार्थ ही अपने-आप में समग्रता है
"आप को भी स्वतंत्रता-दिवस की हा्र्दिक बधाईः हमारी स्वतंत्रता अक्षुण्ण और शाश्वत रहे"
आज का दिन ,भारत के आज़ादी का जश्न और आप की बहुत ही सार्थक पोस्ट
कितना बढ़िया संगम है.. विचार के सागर है..बढ़िया लेख..
बधाई..
सचमुच समग्र -शुक्रिया !
वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
Aapne jin chijon ki taraph dhyan aakrist kiya hai usse asahmat hua nahin ja sakta.
६३ वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं....
बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करी है .....यह बात काबिले तारिफ है .......
आज गणेश जी का दिन है...आप भी उन्हें मोदक खिलाएं और बदले में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगें !!
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस बात की आवश्यकता है कि राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के तमाम छुये-अनछुये पहलुओं को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाये और औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों को खत्म किया जाये। Aap bilkul sahee kah rahe hain par isake liye media ko bhee phal karnee hogee aur dance india dance kee jagah wake up India ka nara eejad karana chahiye.
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस बात की आवश्यकता है कि राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के तमाम छुये-अनछुये पहलुओं को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाये और औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों को खत्म किया जाये। Aap bilkul sahee kah rahe hain par isake liye media ko bhee phal karnee hogee aur dance india dance kee jagah wake up India ka nara eejad karana chahiye.
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