विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा.... का उद्घोष हमने कई बार किया होगा। पर बहुत कम लोगों को पता होगा कि केसरिया, सफेद और हरे रंग के इस तिरंगे को 22 जुलाई 1947 को घोषित रूप से राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप मिला। आज इस तिरंगे की 62वीं वर्षगांठ है। गौरतलब है कि 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के ग्रीन पार्क में राष्ट्रवादियों द्वारा पहला भारतीय ध्वज फहराया गया था। इस ध्वज में क्रमशः पीली, लाल तथा हरे रंग की ऊपर से नीचे की ओर लंबी-लंबी पट्टियां थीं। ऊपर की पीली पट्टी पर आठ कमल बने थे। अगले ही वर्ष 1907 में मेडम कामा ने एक ध्वज फहराया जिसका आकार व रंगों की पट्टी तो कलकत्ता में फहराये गये ध्वज जैसी ही थीं परंतु ऊपर की पीली पट्टी पर कमल के स्थान पर सात तारे बने थे। वस्तुतः मैडम कामा आर्य समाजी थीं और उन्होंने इन तारों में सप्त ऋषियों की कल्पना की थी। इसके चार साल बाद 1911 में बर्लिन में हुए साम्यवादियों के सम्मेलन में तीसरा भारतीय ध्वज फहराया गया। यह ध्वज मैडम कामा के ध्वज की ही तरह था। चौथा ध्वज 1917 में पंजाब में एनीबेसेंट और लोकमान्य तिलक ने फहराया। इस ध्वज में पांच लाल पट्टियां थीं। सबसे ऊपर वाली पट्टी में सात तारे बने थे। इस ध्वज में खास बात यह थी कि ध्वज के स्तभ की ओर वाले हिस्से में किनारे एक छोटा सा ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक बना था और लहराने वाले हिस्से में किनारे अर्द्ध चंद्र में तारा बना था।
तत्पश्चात 1921 में विजयवाड़ा (आन्ध्र प्रदेश) के कांग्रेस सम्मेलन में एक चुवक ने ध्वज फहराया जिसमें लाल, सफेद व हरी पट्टियां थीं। गांधी जी को यह झंडा पसंद आया तो उन्होंने सफेद पट्टी पर चरखा बनाने को कहा। अधिवेशन के अंत में यही चरखा वाला झंडा फहराया गया। धीरे-धीरे लाल रंग केसरिया में तब्दील हो गया और यही झंडा 1921 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में फहराया गया। बाद में एक प्रस्ताव पारित कर इस ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज की संज्ञा दी गयी। 22 जुलाई 1947 को वरिष्ठ विचारक पिंगली वेंकैयानंद ने वर्तमान राष्ट्रध्वज की अवधारणा प्रस्तुत करते हुए प्रस्ताव रखा कि ध्वज में चरखे के स्थान पर प्रगति के प्रतीक सम्राट अशोक का धर्मचक्र रखा जाये। इसे स्वीकार कर लिया गया। तभी से तिरंगा राष्ट्रध्वज शान और आन बान से लहरा रहा है। इसी समय इसके निर्माण के लिए मानक भी तय हुए कि ध्वज निश्चित तरह के धागे से बने खादी के कपड़े से ही तैयार किये जाते हैं। चार कोने वाल आयताकार ध्वज अलग-अलग नाम के हो सकते हैं परन्तु उनकी चैड़ाई एंव लम्बाई में अनुपाल क्रमशः 4 गुना 6 ही रहेगा। इन्हीं विशिष्टताओं के मद्देनजर राष्ट्रीय ध्वज बनाने की जिम्मेदारी खादी कमीशन मुम्बई एवं धारवाड़ तालुका गैराज क्षत्रीय सेवा संघ गुजरात जैसी कुछ ही संस्थाओं को दी गई है। आज तिरंगे की 62वीं वर्षगांठ पर तिरंगे के प्रति सम्मान और समर्पण के ये शब्द याद आते हैं-‘कौमी तिरंगा झंडा ऊंचा रहे जहां में, हो तेरी सर बुलंदी चांद-आसमां में'' !!
18 टिप्पणियां:
जानकारीपूर्ण सच्ची कहानी।
इस जानकारी को ब्लॉग के माध्यम से प्रचारित करने के लिए बधाई!
तिरंगे के बारे में रोचक जानकारी...तिरंगे का ६२ वर्ष का रोचक सफरनामा...सुखद लगा.
युवाओं हेतु बड़ी ज्ञानवर्धक पोस्ट.
युवाओं हेतु बड़ी ज्ञानवर्धक पोस्ट.
राष्ट्रीय ध्वज के बारे में इतनी महत्तवपूर्ण जानकारी देने के लिए बहुत शुक्रिया. आपका साहित्य ज्ञान हम सब के लिए बहुत उपयोगी रहेगा. पढ़ते रहेंगे.
तिरंगे के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी पहली बार पढ़ रहा हूँ. इसका प्रिंट आउट निकालकर रख रहा हूँ.
आपके पोस्ट के दौरान बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई हमारे राष्ट्रीय ध्वज के बारे में! धन्यवाद!
अच्छी जानकारी ... राष्ट्र-ध्वज के बारे में... बधाई!
इस पर तत्र दिनांक 26 जनवरी सन् 2008 ई० को कुछ लिखने का प्रयास मैंने भी किया था कदाचित आप ने पढ़ा हो ....
http://suitur.blogspot.com/2008/01/blog-post.html
जय हिंद ..........!
Rashtriya Dhwaj ke bare men kramwar badi sangrahniy jankari.
तिरंगे का इतिहास गौरवान्वित करता है ...सुन्दर जानकारी.
तिरंगे की शान में आपके शब्द सभी के लिए प्रेरक हैं...पहली बार इतनी विस्तृत जानकारी मिली..आभार.
तिरंगे की 62वीं वर्षगांठ पर आपके लेख द्वारा तिरंगे के बारे में रोचक जानकारी पाठकों को देने के लिए बधाई |
सुन्दर जानकारी.............. तिरंगे का लाजवाब सफर .......
निःसंदेह एक बहुमूल्य जानकारी...यदि पुराने ध्वजों की तस्वीर भी मिल जाती तो सोने पर सुहागा...
ढेर सारी शुभकामनाएँ स्वीकार करें....जय हिंद...
Really a very important information by a responsible citizen. All the lovers of our country should follow him. [ Prabhat Misra, blog: http://www.mynature-myfuture.blogspot.com ]
bahut hi rochak jaankari , ise main share karunga apni beti ke saath . badhai
regards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
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