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गुरुवार, 16 जुलाई 2009

बिखरते शब्द

शंकर जी के डमरू से
निकले डम-डम अपरंपार
शब्दों का अनंत संसार
शब्द है तो सृजन है
साहित्य है, संस्कृति है
पर लगता है
शब्द को लग गई
किसी की बुरी नजर
बार-बार सोचता हूँ
लगा दूँ एक काला टीका
शब्द के माथे पर
उत्तर संरचनावाद और विखंडनवाद के इस दौर में
शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है !!

22 टिप्‍पणियां:

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

पर लगता है
शब्द को लग गई
किसी की बुरी नजर
बार-बार सोचता हूँ
लगा दूँ एक काला टीका
शब्द के माथे पर
....Bahut sundar abhivyakti.

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने!

anil ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना बेहतरीन प्रस्तुति आभार !

ओम आर्य ने कहा…

आपने बिल्कुल सही कहा है ....यह मेरा भी मानना है कि उपभोक्तावाद सर पर चढकर बोल रहा है .....समसामयिक ....सुन्दर

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…
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www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

Vilakshan Kavita.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है ....आज के दौर में यथार्थ को प्रतिबिंबित करती एक अनुपम कविता.

बेनामी ने कहा…

बार-बार सोचता हूँ
लगा दूँ एक काला टीका
शब्द के माथे पर
...........Adbhut bhav, achhe vichar.

राज भाटिय़ा ने कहा…

हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है !!
बिलकुल आप की बात से सहमत हुं, आप ने कविता मै बहुत सूंदर बात कह दी.
धन्यवाद

Akanksha Yadav ने कहा…

kavita ke bahane aj ke sahitya par achha comment...umda prastuti.

Akanksha Yadav ने कहा…

kavita ke bahane aj ke sahitya par achha comment...umda prastuti.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

शब्द है तो सृजन है
साहित्य है, संस्कृति है
पर लगता है
शब्द को लग गई
किसी की बुरी नजर
क्या बात है. बहुत बड़ी बात कह दी आपने इन चंद पंक्तियों में.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

Gajab likha guru apne.

vikram7 ने कहा…

बेहतरीन रचना बधाई

Bhanwar Singh ने कहा…

Nice Poem.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Apka blog to bahut sundar hai.

Wishing "Happy Icecream Day"...aj dher sari icecream khayi ki nahin.
See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"

शरद कुमार ने कहा…

उत्तर संरचनावाद और विखंडनवाद के इस दौर में
शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
...........बेहद दिलचस्प कविता...बधाई.

S R Bharti ने कहा…
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S R Bharti ने कहा…

Rochak kavita bani hai..badhai.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शब्दों की सुन्दर अभिव्यक्ति ........... शब्द भी मायने बदलने लगे हैं.........सुन्दर रचना

Dr. Ravi Srivastava ने कहा…

आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।

आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं। आप मेरे ब्लॉग पर आये और एक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दिया…. शुक्रिया. आशा है आप इसी तरह सदैव स्नेह बनाएं रखेगें….

आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...

Link : www.meripatrika.co.cc

…Ravi Srivastava

डा श्याम गुप्त ने कहा…

यह शब्द -शक्ति का ही कमाल है यादव जी, अभी भी दम है कुछ लोगों के शब्दों में ,शब्द अनंत है,अमर है, बधाई सुन्दर विचार के लिये।