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रविवार, 28 अक्टूबर 2012

'दैनिक जागरण' में 'शब्द-सृजन की ओर' का 'रावण'


'शब्द सृजन की ओर' पर 24 अक्तूबर, 2012 को प्रकाशित पोस्ट 'कब तक हम रावण के पुतले जलाते रहेंगे' को प्रतिष्ठित हिन्दी अख़बार दैनिक जागरण ने 25 अक्तूबर, 2012 को अपने राष्ट्रीय संसकरण में नियमित स्तंभ  'फिर से'  के तहत 'कब तक जलाते रहेंगें रावण के पुतले' शीर्षक से प्रकाशित किया है. दैनिक जागरण में पहली बार मेरी किसी ब्लॉग-पोस्ट की चर्चा हुई है ... आभार !
 
इससे पहले 'शब्द सृजन की ओर' पर प्रकाशित ब्लॉग की पोस्टों की चर्चा जनसत्ता, अमर उजाला, LN स्टार इत्यादि में हो चुकी है. मेरे दूसरे ब्लॉग 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग और इसकी प्रविष्टियों की चर्चा दैनिक हिंदुस्तान, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, राजस्थान पत्रिका, उदंती, LN STAR पत्र-पत्रिकाओं में हो चुकी है. इस प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार !!
 

शनिवार, 27 अक्टूबर 2012

बिटिया अपूर्वा हुईं दो साल की : जीवन के विविध रंग

मिलिए आज की बर्थ-डे गर्ल से. ये हैं हमारी प्यारी सी बिटिया रानी अपूर्वा, जो आज अपना दूसरा हैप्पी बर्थ-डे सेलिब्रेट कर रही हैं...वैसे ये भावी ब्लागर भी हैं. आज आपको दिखाते हैं अपूर्वा की ढेर सारी गतिविधियाँ, इनका नटखटपन और मासूमियत.
 
फूल किसे नहीं अच्छे लगते...
 
कैसी लग रही हूँ सन-ग्लास में..अभी मेरी साइज़ का सन-ग्लास ढूंढा जा रहा है..
 
शंकर जी तो गले में साँप धारण करते हैं, मेरे लिए तो यह खिलौना ही सही.
 
 
अब मैं बड़ी हो गई हूँ. ममा का शूज़ तो पहन ही सकती हूँ.
अभी पढ़ भले ही नहीं सकती हैं, पर पुस्तकों को उलट-पलटकर चित्रों की दुनिया में खोने से कौन रोक सकता है !!  
 
                  अपूर्वा अपनी दीदी अक्षिता (पाखी) की सबसे अच्छी दोस्त है.
ममा-पापा की राह पर..अभी से कलम से दोस्ती.
 
यह मासूम चेहरा..नटखटपन.
 
लान में शाम को पौधों को पानी देना नहीं भूलतीं अपूर्वा.
 
अपने लॉन में लगे आम के पेड़ पर आम आ गए तो अपूर्वा ने खूब आम तोड़े और खाए. 
                                 गमले में लगे पौधों में नए पौधे लगाने की कोशिश..
 
दिन भर उछल-कूद मचाना, दौड़ना..वाह क्या दिन हैं.
टाइगर की सवारी का आनंद ही कुछ और है.
 
अपूर्वा के दुसरे जन्मदिन पर ढेरों बधाई, आशीर्वाद, स्नेह और प्यार.
 
!! आपके आशीर्वाद और स्नेह की आकांक्षा बनी रहेगी !!

बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

कब तक हम रावण के पुतले जलाते रहेंगे...


आज दशहरा है. इस दिन का बड़ा इंतजार रहता था कभी. दशहरा आयेगा तो मेला भी होगा और फिर वो जलेबियाँ, चाट, गुब्बारे, बांसुरी, खिलौने...और भी न जाने क्या-क्या. अब तो कहीं भी जाओ ये सभी चीजें हर समय उपलब्ध हैं. पार्क के बाहर खड़े होइए या मार्केट में..गुब्बारे वाला हाजिर. मेले को लेकर पहले से ही न जाने क्या-क्या सपने बुनते थे. राम-लीला की यादें तो अब मानो धुंधली हो गई हैं. घर जाता हूँ तो राम लीला में अभिनय करने वाले लोगों को देखकर अनायास ही पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं. एक तरफ दुर्गा पूजा, फिर दीवाली के लिए लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ खरीदना इस मेले के अनिवार्य तत्व थे. हमारी लोक-परम्पराएँ, उत्सव और सामाजिकता ..इन सब का मेल होता था मेला. याद कीजिये प्रेमचन्द की कहानी का हामिद, कैसे मेले से अपने माँ के लिए चिमटा खरीद कर लाता है. ऐसे न जाने कितने दृश्य मेले में दिखते थे. जादू वाला, झूले वाला, मदारी, घोड़े वाला, हाथी वाला, सब मेले के बहाने इकठ्ठा हो जाते थे. मानो मेला नहीं, जीवन का खेला हो. मिठाई की दुकानें हफ्ते भर पहले से ही सजने लगती थीं. बिना मिठाई के मेला क्या और जलेबी, रसगुल्ले और चाट की महिमा तो अपरम्पार थी. चारों तरफ बजते लाउडस्पीकर कि अपनी जेब संभल कर चलें, जेबकतरों से खतरा हो सकता है या अमुक खोया बच्चा यहाँ पर है, उसके मम्मी-पापा आकर ले जाएँ. इन मेलों की याद बहुत दिन तक जेहन में कैद रहती थी. मेले में कितने रिश्तेदारों और दोस्तों से मुलाकात हो जाती थी. ऐसा लगता मानो पूरा संसार सिमट कर मेले में समा गया हो.

पर अब न तो वह मेला रहा और न ही उत्साह. आतंक की छाया इन मेलों पर भी दिखाई देने लगी है. हर साल हम रावण का दहन करते हैं, पर अगले साल वह और भी विकराल होकर सामने आता है. मानो हर साल चिढ़ाने आता है कि ये देखो पिछले साल भी मुझे जलाया था, मैं इस साल भी आ गया हूँ और उससे भी भव्य रूप में. यह भी कैसे बेबसी है कि हम हर साल पूरे ताम-झाम के साथ रावण को जलाते हैं और फिर अगले साल वह आकर अट्ठाहस करने लगता है. शायद यह भ्रष्टाचार और अनाचार को समाज में महिमामंडित करने का खेल है.

मेला इस साल भी आयेगा और चला जायेगा. पर इस मेले में ना वह बात रही और न ही सामाजिकता और आत्मीयता.दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन "दश" व "हरा" से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। काश हर साल दशहरे पर हम प्रतीकात्मक रूप की बजाय वास्तव में अपने और समाज के अन्दर फैले रावण को ख़त्म कर पाते !!
- कृष्णा कुमार यादव

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

विश्व की प्रथम रामलीला

महाकवि तुलसीदासजी सांसारिक बंधन से विरक्त होकर वैराग्य धारणकर रामधुन में लीन धार्मिक तीर्थस्थलों का भ्रमण करने ramlilaनिकल पड़े। पूजा पाठ, ध्यान - धर्म तथा आराधना में लीन राममय होकर भ्रमण करते हुए 1593 में वे अयोध्या पहुंच गये। प्रतिदिन भोर में ही सरजू तट पर पहुंचना, राम का ध्यान लगाना, जप - तप करना इत्यादि रामभक्त तुलसीदासजी की दिनचर्या थी।

उसी तट पर एक तपस्वी महासंत समाधिस्थ रहते थे। तुलसीदासजी प्रतिदिन उस समाधिस्थ संत को दूर से ही साष्टांग दंडवत कर अभिवादन करते थे। संत के प्रति श्रद्धा और भक्ति से ओत-प्रोत अपने मन में उनसे साक्षात्कार करने, आशीर्वाद लेने और ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा लिये तुलसीदासजी वापस चले जाया करते थे। एक दिन वह शुभ घड़ी आ ही गयी, जब संत समाधि से बाहर आये। उसी समय तुलसीदासजी ने साष्टांग दंडवत किया। तपस्वी संत ने तुलसीदास को देखकर मन ही मन पहचान लिया कि प्रभु ने सही व्यक्ति को मेरे पास भेज दिया है। तपस्वी संत ने तुलसीदास को अपने हाथों उठाया, आशीर्वाद दिया और संकेत किया कि मेरे साथ आओ। वे तुलसीदास को अपने साथ लेकर अपनी कुटिया में पहुंचे। उस कुटिया में राम की मूर्ति के अलावा मुकुट, धनुष-बाण, खड़ाऊं और कमंडल को फूलों से सजा कर रखा हुआ था। तपस्वी संत ने तुलसीदास से कहा कि ये मुकुट, धनुष-बाण, खड़ाऊं और कमंडल सभी कुछ तुमको सौंपता हूं। तुम वास्तव में प्रभु श्रीराम के उपासक हो इसीलिए प्रभु राम ने तुम्हें मेरे पास भेजा है। इस मुकुट, धनुष-बाण, खड़ाऊं और कमंडल को कोई सामान्य वस्तु न समझना, यह सभी प्रभु राम के स्मृति चिह्न हैं। यह धनुष-बाण कभी प्रभु राम के करकमलों में रह चुका है। इन खड़ाऊं और कमंडल को प्रभु राम के स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त है। यह मुकुट श्रीराम के सिर को संवार चुका है। प्रभु के आदेश से ही तुम यहां पधारे हो। मैं इस जीवन से थक चुका हूं। इन स्मृति चिह्नों तथा अमूल्य धरोहर को उचित स्थान, उचित संत और उचित रामभक्त को समर्पित करने की प्रतीक्षा में ही मैं समाधिस्थ रहता था। यह श्रीराम का दिव्य उपहार है। इस धरोहर तथा अमूल्य संपत्ति को लेकर तुम काशी जाओ। वहीं निवास करो। वहीं श्रीराम की आराधना करो। श्रीराम के जन्म से लेकर अंत तक की संपूर्ण घटनाएं साक्षात तुम्हारे मानसपटल पर अंकित हो जायेंगी। तुमसे तुम्हारे अपने राम मिल जायेंगे। तुम्हारे हाथों एक नयी रामायण लिखी जायेगी, तुम्हारी ही सरल लेखनी से रामलीला लिखी जायेगी जो जन-जन तक पहुंचेगी तथा रामलीला के नाम से विख्यात होगी।''
संत तुलसीदास के नेत्रों से अश्रुधारा बह चली।

तुलसीदास महासंत के चरणों में गिर गये और साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और आज्ञाकारी शिष्य के रूप में कुछ दिन उन महासंत की छाया में रहने की अनुमति प्राप्त करने के लिए करबद्ध स्वीकृति मांगी। महासंत की शिक्षा-दीक्षा ने मानो तुलसीदासजी के मन के नेत्र खोल दिये। ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात, गुरु का आदेश पाकर वे काशी के लिए चल पड़े। साथ में राम, मन में राम, स्मृति में राम, राम ही राम।

1595 में तुलसीदासजी महासंत की आज्ञा के अनुसार काशी पहुंचे और अस्सीघाट पर रहने लगे। रात्रि में देखे गये स्वप्न, प्रात: उनको रामकथा लिखने की प्रेरणा देने लगे। रामचरितमानस का लेखन आरंभ हो गया। 1618-19 में यह पवित्र ग्रंथ पूरा हो गया। संत तुलसीदासजी दिव्य उपस्करों (मुकुट, धनुष-बाण, खड़ाऊं, कमंडल) को अपने साथ लेकर अपने कुछ शिष्यों के साथ नाव में बैठकर, तत्कालीन काशी नरेश से मिलने रामनगर गये। काशी नरेशजी संत तुलसीदासजी से मिलकर प्रसन्नता और श्रद्धा से भावविभोर हो गये। अपने सिंहासन से उठकर उन्होंने तुलसीदासजी का सम्मान किया तथा रामलीला करवाने का संकल्प किया।

ramlila21621 ई. में सर्वप्रथम अस्सीघाट पर नाटक के रूप में संत तुलसीदासजी ने रामचरित मानस के रूप में रामलीला का विमोचन किया। उसके बाद काशी नरेश ने रामनगर में रामलीला करवाने के लिए एक वृहद क्षेत्र में लंका, चित्रकूट, पंचवटी की रूपरेखा बड़े मंच पर अंकित करवाकर रामलीला की भव्य प्रस्तुति करवायी। प्रतिवर्ष संशोधन के साथ रामलीला होने लगी। रामनगर की रामलीला 22 दिनों में पूरी होती है। रामलीला का अंतिम दिन दशहरा का दिन होता है। इस दिन रावण का पुतला जलाया जाता है।

1626 ई. में महाकवि संत तुलसीदासजी ब्रह्मलीन हो गये। तुलसीदासजी की स्मृति में काशी नरेश ने रामनगर को राममय करके विश्व का श्रेष्ठतम रामलीला स्थल बना दिया है। आज भी रामनगर की रामलीला विश्वभर में प्रसिद्ध है। आज भी वह दिव्य उपस्कर (मुकुट, धनुष-बाण, खड़ाऊं, कमंडल) महाराज काशी के संरक्षण में प्राचीन बृहस्पति मंदिर में सुरक्षित हैं। वर्ष में सिर्फ एक बार भरत मिलाप के दिन प्रभु राम के मुकुट, धनुष-बाण, खड़ाऊं, कमंडल प्रयोग में लाये जाते हैं। तभी भरत मिलाप अद्वितीय माना जाता है। इस रामलीला को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटक रामनगर (वाराणसी) आते हैं।


 

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

जगप्रसिद्ध है बंगाल की दुर्गा पूजा

नवरात्र और दशहरे की बात हो और बंगाल की दुर्गा-पूजा की चर्चा न हो तो अधूरा ही लगता है। वस्तुतः दुर्गापूजा के बिना एक बंगाली के लिए जीवन की कल्पना भी व्यर्थ है। बंगाल में दशहरे का मतलब रावण दहन नहीं बल्कि दुर्गा पूजा होती है, जिसमें माँ दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार नौवीं सदी में बंगाल में जन्मे बालक व दीपक नामक स्मृतिकारों ने शक्ति उपासना की इस परिपाटी की शुरूआत की। तत्पश्चात दशप्रहारधारिणी के रूप में शक्ति उपासना के शास्त्रीय पृष्ठाधार को रघुनंदन भट्टाचार्य नामक विद्वान ने संपुष्ट किया।

बंगाल में प्रथम सार्वजनिक दुर्गा पूजा कुल्लक भट्ट नामक धर्मगुरू के निर्देशन में ताहिरपुर के एक जमींदार नारायण ने की पर यह समारोह पूर्णतया पारिवारिक था। बंगाल के पाल और सेनवशियों ने दूर्गा-पूजा को काफी बढ़ावा दिया। प्लासी के युद्ध (1757) में विजय पश्चात लार्ड क्लाइव ने ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु अपने हिमायती राजा नव कृष्णदेव की सलाह पर कलकत्ते के शोभा बाजार की विशाल पुरातन बाड़ी में भव्य स्तर पर दुर्गा-पूजा की। इसमें कृष्णानगर के महान चित्रकारों और मूर्तिकारों द्वारा निर्मित भव्य मूर्तियाँ बनावाई गईं एवं वर्मा और श्रीलंका से नृत्यांगनाएं बुलवाई गईं। लार्ड क्लाइव ने हाथी पर बैठकर इस समारोह का आनंद लिया। राजा नवकृष्ण देव द्वारा की गई दुर्गा-पूजा की भव्यता से लोग काफी प्रभावित हुए व अन्य राजाओं, सामंतों व जमींदारों ने भी इसी शैली में पूजा आरम्भ की। सन् 1790 में प्रथम बार राजाओं, सामंतो व जमींदारों से परे सामान्य जन रूप में बारह ब्राहमणों ने नदिया जनपद के गुप्ती पाढ़ा नामक स्थान पर सामूहिक रूप से दुर्गा-पूजा का आयोजन किया, तब से यह धीरे-धीरे सामान्य जनजीवन में भी लोकप्रिय होता गया।


बंगाल के साथ-साथ बनारस की दुर्गा पूजा भी जग प्रसिद्ध है। इसका उद्भव प्लासी के युद्ध (1757) पश्चात बंगाल छोड़कर बनारस में बसे पुलिस अधिकारी गोविंदराम मित्र (डी0एस0 पी0) के पौत्र आनंद मोहन ने 1773 में बनारस के बंगाल ड्यौड़ी में किया। प्रारम्भ में यह पूजा पारिवारिक थी पर बाद मे इसने जन-समान्य में व्यापक स्थान पा लिया। आज दुर्गा पूजा दुनिया के कई हिस्सों में आयोजित की जाती है। लंदन में प्रथम दुर्गा पूजा उत्सव 1963 में मना, जो अब एक बड़े समारोह में तब्दील हो चुका है।

शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

'जंगल में क्रिकेट’ : बाल साहित्य सर्जना का स्तुत्य प्रयास

भारतीय डाक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी तथा बहुविधा लेखक कृष्ण कुमार यादव का अद्यतन प्रकाशित बालगीत संग्रह है ’जंगल में क्रिकेट।’ सुमुद्रण, आकर्षक आवरण, चित्रात्मकता से संबंलित एवं बालमनोविज्ञानाधारित काव्याभिव्यक्ति वाली यह कृति उद्योग नगर प्रकाशन, गाजियाबाद की प्रस्तुति है। इसकी तीस छान्दस रचनायें अल्पवयी पाठकों का जितना मनोरंजन करती हैं, उतना ही उन्हें विविध मानवीय मूल्यों से समृद्ध भी करती हैं।
 
इस बाल-कृति की चिडि़या रानी, रिमझिम-रिमझिम, गुलाब, तितली रानी, धूप, मोर, पेड़ घनेरे, चन्दामामा, सयानी बिल्ली, बन्दर गया दुकान व डाल्फिन प्रभृति रचनायें बच्चों में प्रकृति व पर्यावरण के प्रति रुचि जागृत करती हैं। ये बच्चों के लिए संसूचनात्मक भी हैं। उदाहरणार्थ ’गुलाब’ रचना के माध्यम से उन्हें पता चलता है कि काँंटों के बीच खिले होने के बावजूद कई रंग के इस फूल में नायाब खुशबू होने के कारण यह फूलों का राजा माना जाता है। काँटांे पर खिले होने के बावजूद भँवरे और तितलियाँ इसकी खूबसूरती के दीवाने होते हैं।
 
गुंजन करते इस पर भौंरे,
तितली भी इतराए।
कांटों के संग खिला गुलाब,
मंद-मंद मुस्काए। (गुलाब, पृ.सं. 17)
 
’तितली रानी’ रचना पाठकों को संदेश देती है कि किसी को भी अपने उत्तमता पर आत्ममुग्ध न होकर सबके साथ मिलजुलकर रहना चाहिए। देखिये कतिपय पंक्तियाँ-
 
जब हम आते पास तुम्हारे,
दूर भाग क्यों जाती हो ?
नन्हे-नन्हे पाँवों पर तुम,
इतना क्यूँ इतराती हो ?
आओ संग चलें बगिया में,
बनकर के हमजोली।
सभी दोस्तों के संग खेलें,
हम भी आँखमिचोली। (तितली रानी पृ.सं. 17)
 
इन पंक्तियों में सुकवि ने सब प्रकार के प्राणियों में पारस्परिक सौमनस्य तथा आत्मीयता व परिवारीयता की प्रवृत्ति को रेखांकित किया है।
 
’धूप’ के माध्यम से कविवर कृष्ण कुमारजी ने सीख दी है कि धूप सभी प्राणियों के लिए कष्टकारी तो होती है तो भी यह सर्वोपयोगी है, इसलिए उससे महसूस होने वाली तिक्ति तो छायादार पेड़ों के सहारे कम कर सकते हंै।
 
नन्हे-मुन्ने सब बच्चों को,
देखो बहुत सताती धूप।
पेड़ों की जब छाया मिलती,
तब गायब हो जाती धूप। (धूप, पृ.सं. 20)
 
यूँ सुकवि का संकेत है कि हमें वृक्षारोपण के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए। ’पेड़ घनेरे’ की रचना के माध्यम से सुकवि ने मानव जाति के प्रति पेड़ांे की उदारता को उल्लेख करते हुए सुझाव देते हैं कि हम सभी वृक्षों की रक्षा-सुरक्षा एवं उनके संवर्धन का संकल्प भी लें जिससे कि वह सतत् रूप से शस्य-श्यामला बनी रहें। देखिये संदर्भित रचना का समापनांश-
 
पेड़ कहीं न कटने पाएँ,
संकल्पों के हाथ उठाएँ।
भांति-भांति के पेड़ लगाकर,
मरूभूमि को सरस बनाएँ। (’पेड़ घनेरे’ पृ.सं. 25)
 
पृ. 29 की रचना ’जंगल में क्रिकेट’ जिसे कृति संज्ञा भी मिली है, के अंतर्गत जिराफ, भालू, चीता, शेर, घोड़े, हाथी और बंदरिया को ’ट्वेन्टी-ट्वेन्टी’ क्रिकेट के माध्यम से पारस्परित सौमनस्य के सूत्र में पिरोया गया है, सांकेतिक संदेश भी देती है यह कि शक्ति और आकार की दृष्टि से कोई बड़ा नहीं होता, बड़प्पन की कसौटी तो पशु हो या मानव, उनमें पारस्परिक सौमनस्य समता एवं सर्वस्वीकारता के भाव होते हैं, अतः हमें अनिवार्यतः संस्कारों से समृद्ध अपनी पंरपरागत जीवन शैली को आसृष्टिजीवी बनाये रखने के लिए संकल्पित बनना होगा।
 
जंगल में भी शुरू हुआ,
ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट मैच।
दर्शक बने सभी जानवर
देखें, कौन करेगा कैच ? (जंगल में क्रिकेट पृ.सं. 29)

तीस बाल गीतो से सुसज्जित इस कृति में अनेकों भाव है, बच्चों से सीधा संवाद है। आकर्षक आवरण पृष्ठ एवं हर रचना के अनुसार चित्रों का सुन्दर चित्रण इसे बाल मन के और करीब लाता है। मुझे विश्वास है कि यह कृति बच्चों और प्रौढ़ों के द्वारा समान रुचि से पढ़ी जायेगी।
 
 
कृति: जंगल में क्रिकेट

कवि: कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएं, इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद (उ0प्र0)-211001

प्रकाशन वर्ष: 2012

मूल्य: रु. 35/-पृष्ठ: 36

प्रकाशक : उद्योग नगर प्रकाशन, 695, न्यू कोट गाँव, जी0टी0रोड, गाजियाबाद (उ0प्र0)
 
समीक्षक: डॉ. कौशलेन्द्र पाण्डेय, 130, मारुतीपुरम्, लखनऊ मो0: 09236227999


( साभार : रचनाकार)

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

आज भी प्रासंगिक हैं महात्मा गाँधी के विचार

विश्व पटल पर महात्मा गाँधी सिर्फ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक है। महात्मा गाँधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह एवं शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंगे्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि -‘‘हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था।’’ संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2007 से गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा करके शान्ति व अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता को एक बार पुनः सिद्ध कर दिया है। जब गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से सत्याग्रह का अभ्युदय करके भारत लौटे तो वे इंग्लैड से बैरिस्टरी पास कर लौटे ऐसे ऐसे धनी व्यक्ति थे, जिसकी सालाना आय करीब 5,000 पाउण्ड थी। भारत की धरती पर प्रवेश करते ही उन्हें लगा कि अंग्रेजों के दमन का शिकार भारतीयों को काला कोट पहने फर्राटे से कोर्ट में अंग्रेजी बोलने वाले मोहनदास करमचंद गाँधी की नहीं वरन् एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो उन्हीं के पहनावे में, उन्हीं की बोली में, उन्हीं के बीच रहकर, उनके लिए संघर्ष कर सके। ऐसे में गाँधी जी ने अपनी पहली उपस्थिति अप्रैल 1917 में चम्पारन, बिहार में नील के खेतों में काम करने वाले किसानों हेतु सत्याग्रह करके दर्ज करायी पर अखिल भारतीय स्तर पर उनका उद्भव 1919 के खिलाफत आन्दोलन व फिर असहयोग आन्दोलन से हुआ। 1919 से आरम्भ इस दौर को भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन में ‘गाँधी युग’ के नाम से जाना जाता है। गाँधी जी ने न केवल उस समय चल रही उदार व उग्र विचारधाराओं के उत्तम भागों का समन्वय किया बल्कि दोनों को एक अधिक गतिशील और व्यावहारिक मोड़ दिया। 5 फरवरी 1922 को चैरीचैरा काण्ड के बाद बीच में ही असहयोग आन्दोलन वापस लेकर गाँधी जी ने यह जता दिया कि वे हिंसा की बजाय अहिंसक तरीकों से भारत की आजादी चाहते हैं। असहयोग आन्दोलन से जहाँ जनमानस में अंग्रेजी हुकूमत का खौफ खत्म हो गया वहीं जनसमूह गाँधी जी के पीछे उमड़ पड़ा। इसके बाद तो सिलसिला चल निकल पड़ा, आगे-आगे गाँधी जी और उनके पीछे पूरा कारवां। जाति-धर्म-भाषा-क्षेत्र से परे इस कारवां में पुरुष व महिलायें एक स्वर से जुड़ते गये। 1920-22 के असहयोग आन्दोलन, 1930-34 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन, 1940-41 के व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन और 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन द्वारा गाँधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत को जता दिया कि भारत की स्वतंत्रता न्यायपूर्ण है और भारत में अंग्रेजी राज्य की समाप्ति आवश्यक है। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन ने तो अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला दीं। उस दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री विन्स्टन चर्चिल से वार्ता पश्चात सम्राट जार्ज षष्ठम् ने अपनी डायरी में दर्ज किया था कि-‘‘ विन्स्टन चर्चिल ने मुझे यह कहकर आश्चर्यचकित कर दिया है कि उनके सभी सहयोगी और संसद के तीनों दल युद्ध के पश्चात् भारत को भारतीयों के हाथों में छोड़ने को उद्यत हैं। क्रिप्स, समाचार पत्र और अमरीकी लोकमत- सभी ने उनके मन में यह भावना भर दी है कि हमारा भारत पर राज्य करना गलत है और सदैव से भारत के लिए भी गलत रहा है।’’ इस प्रकार 15 अगस्त 1947 को आजादी प्राप्त कर गाँधी जी ने समूचे विश्व को दिखा दिया कि हिंसा जो सभ्य समाज के अस्तित्व को नष्ट करने का खतरा उत्पन्न करती है, का विकल्प ढूँढ़ने के लिए स्वयं की पड़ताल करने का भी एक प्रयास होना चाहिए। आज गाँधी जी सिर्फ भारत की भूमि तक ही सीमित नहीं बल्कि समग्र विश्व-धारा में व्याप्त हैं। उनके दिखाये गये रास्ते पर चलकर न जाने कितने राष्ट्रों ने अपनी स्वाधीनता पायी है। यह अनायास ही नहीं है कि गाँधी जी को पाँच बार 1937, 1938, 1939, 1947 व 1948 में नोबेल शान्ति पुरस्कार के लिये नामित किया गया। यह एक अलग बहस का विषय है कि किन कारणों से उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया पर कालान्तर में गाँधी जी के सिद्धान्तों पर चलकर उन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले कई लोगों को नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1989 में नोबेल शान्ति सम्मान के लिए दलाई लामा के नाम की घोषणा करते हुये नोबेल कमेटी के सदस्यों ने गाँधी जी को नोबेल सम्मान नहीं देने पर अफसोस जताया और कमेटी के अध्यक्ष ने कहा कि दलाई लामा को यह सम्मान दिया जाना गाँधी जी की स्मृति को श्रद्धांजलि देने का प्रयास है। इसी प्रकार 1984 व 1993 में क्रमशः डेसमण्ड टूटू व नेल्सन मण्डेला को नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिन्होंने गाँधी जी को प्रेरणास्रोत मानते हुये दक्षिण अफ्रीका में वर्णभेद व रंगभेद की खिलाफत की थी। आज गाँधी जी के विचार पूरे विश्व में सर्वग्राह्य हैं। कभी आर्नल्ड टाॅयनबी ने कहा था - ‘‘मैं जिस पीढ़ी में पैदा हुआ, वह पीढ़ी पश्चिम में केवल हिटलर अथवा स्तालिन की ही पीढ़ी नहीं थी अपितु भारत में गाँधी जी की भी पीढ़ी थी। हम निश्चयपूर्वक यह भविष्यवाणी कर सकते हैं कि मानव इतिहास पर गाँधी जी का प्रभाव हिटलर और स्तालिन के प्रभाव से अधिक होगा।’’ आज की नयी पीढ़ी गाँधी जी को एक नए रूप में देखना चाहती है। वह उन्हें एक सन्त के रूप में नहीं वरन् व्यवहारिक आदर्शवादी के रूप में प्रस्तुत कर रही है। ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ जैसी फिल्मों की सफलता कहीं-न-कहीं युवाओं का उनसे लगाव प्रतिबिम्बित करती है। आज भी दुनिया भर के सर्वेक्षणों में गाँधी जी को शीर्ष पुरूष घोषित किया जाता है। हाल ही में हिन्दू-सी0 एन0 एन0- आई0 वी0 एन0 द्वारा 30 वर्ष से कम आयु के भारतीय युवाओं के बीच कराए गए एक सर्वेक्षण में 76 प्रतिशत लोगों ने गाँधी जी को अपना सर्वोच्च रोल माॅडल बताया। बी0बी0सी0 द्वारा भारत की स्वतंत्रता के 60 वर्ष पूरे होने पर किये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक आज भी पाश्चात्य देशों में भारत की एक प्रमुख पहचान गाँधी जी हैं। यही नहीं तमाम पाश्चात्य देशों में गाँधीवाद पर विस्तृत अध्ययन हो रहे हैं, तो भारत में सुन्दरलाल बहुगुणा, मेघा पाटेकर, अरूणा राय से लेकर संदीप पाण्डे तक तमाम ऐसे समाजसेवियों की प्रतिष्ठा कायम है, जिन्होंने गाँधीवादी मूल्यों द्वारा सामाजिक आन्दोलन खड़ा करने की कोशिशें कीं। आँकड़े गवाह हैं कि विश्व भर में हर साल गाँधी जी व उनके विचारों पर आधारित लगभग दो हजार पुस्तकों का प्रकाशन हो रहा है एवम् हाल के वर्षांे में गाँधी जी की कृतियों का अधिकार हासिल करने के लिये प्रकाशकों व लेखकों के आवेदनों की संख्या दो गुनी हो गई है। वस्तुतः आज जरूरत गाँधीवाद को समझने की है न कि उसे आदर्श मानकर पिटारे में बन्द कर देने की। स्वयं गाँधी जी का मानना था कि आदर्श एक ऐसी स्थिति है जिसे कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि उसके लिए मात्र प्रयासरत रहा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा करके शान्ति व अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता को एक बार पुनः सिद्ध कर दिया है। सत्य, प्रेम व सहिष्णुता पर आधारित गाँधी जी के सत्याग्रह, अहिंसा व रचनात्मक कार्यक्रम के अचूक मार्गों पर चलकर ही विश्व में व्याप्त असमानता, शोषण, अन्याय, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, दुराचार, नक्सलवाद, पर्यावरण असन्तुलन व दिनों-ब-दिन बढ़ते सामाजिक अपराध को नियंत्रित किया जा सकता है। गाँधी जी द्वारा रचनात्मक कार्यक्रम के जरिए विकल्प का निर्माण आज पूर्वोत्तर भारत व जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों की समस्याओं, नक्सलवाद व घरेलू आतंकवाद से निपटने में जितने कारगार हो सकते हैं उतना बल-प्रयोग नहीं हो सकता। गाँधी जी दुनिया के एकमात्र लोकप्रिय व्यक्ति थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वयं को लेकर अभिनव प्रयोग किए और आज भी सार्वजनिक जीवन में नैतिकता, आर्थिक मुद्दों पर उनकी नैतिक सोच व धर्म-सम्प्रदाय पर उनके विचार प्रासंगिक हंै। तभी तो भारत के अन्तिम वायसराय लार्ड माउण्टबेन ने कहा था - ‘‘गाँधी जी का जीवन खतरों से भरी इस दुनिया को हमेशा शान्ति और अहिंसा के माध्यम से अपना बचाव करने की राह दिखाता रहेगा।’’ -- कृष्ण कुमार यादव

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा द्वारा सम्मान


सम्मान और उपलब्धियाँ व्यक्ति के लिए ऊर्जा का कार्य करती हैं. कई बार सम्मान पर्यटन का भी कारण बनता है. ट्रेनिंग के दौरान मुझे कुछेक समय तक राजस्थान में रहने का मौका मिला था और अब एक लम्बे अंतराल के बाद पुन: राजस्थान जाने का मौका मिला. कारण बना- साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा द्वारा हमारा सम्मान.पिछले तीन वर्षों से आदरणीय देवपुरा जी इस कार्यक्रम के लिए हमें याद कर रहे थे, पर मौका अब जाकर मिला. पिछले वर्ष साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा द्वारा 'हिंदी भाषा-भूषण' की मानद उपाधि से सम्मानित हुआ था तो न जा सका..पर अबकी बार जाने का सु-अवसर मिला. इस वर्ष साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा द्वारा पिता श्री और पत्नी आकांक्षा जी को भी 'हिंदी भाषा-भूषण' की मानद उपाधि से सम्मानित होना था, पर अपरिहार्य कारणोंवश वे न जा सके..सो अकेला सफ़र !! राजस्थान का सफ़र वाकई आनंददायी रहा. गुलाबी शहर जयपुर, झीलों की नगरी उदयपुर, कुम्भलगढ़, चित्तौड़ और अंतत: श्रीनाथद्वारा. कई फोटोग्राफ मैंने फेस-बुक पर भी शेयर किये हुए हैं. राजस्थान की प्रसिद्ध साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिणक संस्था साहित्य-मण्डल, श्रीनाथद्वारा द्वारा हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु मुझे ’’श्रीमती सरस्वती सिंहजी सम्मान-2012’’ से सम्मानित किया गया। वैदिक क्रांति परिषद परिवार, देहरादून द्वारा साहित्यानुरागी, निस्पृह समाजसेवी, आर्यनेत्री एवं वैदिक क्रांति परिषद की संस्थापक स्वर्गीया श्रीमती सरस्वती सिंह की पावन स्मृति में प्रतिवर्ष दिये जाने वाले इस प्रतिष्ठित सम्मान के तहत 11,000/- रुपये की नकद राशि, प्रशस्ति पत्र, शाल व अन्य मानद वस्तुएं प्रदान कर सम्मानित किया गया। इसी मंच पर साहित्य-मण्डल, श्रीनाथद्वारा के अध्यक्ष श्री नरहरि ठाकर एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग व साहित्य-मण्डल, श्रीनाथद्वारा के सभापति श्री भगवती प्रसाद देवपुरा ने मुझे एक उच्च पदस्थ अधिकारी, सहृदय कवि एवं श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में सारस्वत सम्मान करते हुए भगवान श्रीनाथ का सुशोभित चित्र एवं अभिनन्दन पत्र भी भेंट किया। इस अवसर पर मेरे साथ-साथ वरिष्ठ साहित्यकार प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित (लखनऊ), सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य लेखक प्रेम जनमेजय (नई दिल्ली), वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य डा0 राम गोपाल शर्मा (नोयडा), भारतेन्द्रु परिवार के प्रपौत्र व भूगर्भ शास्त्र अध्येयता प्रो0 गिरीश चन्द्र चौधरी (वाराणसी) को भी सम्मानित किया गया। इस अवसर पर आप सभी के स्नेह और शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ !!

शनिवार, 8 सितंबर 2012

कृष्ण कुमार यादव के हाइकु


पावन शब्द
अवर्णनीय प्रेम
सदा रहेंगे।

सहेजते हैं
सपने नाजुक से
टूट न जाएं।

जीवंत रहे
राधा-कृष्ण का प्रेम
अलौकिक सा।

फिल्मी संस्कृति
पसरी हर ओर
कामुक दृश्य

अपसंस्कृति
टूटती वर्जनाएँ
विद्रूप दृश्य

ये स्वछंदता
एक सीमा तक ही
लगती भली

बुधवार, 29 अगस्त 2012

Net savvy duo gets 'Best Couple Blogger of Decade' award

The net-savvy husband-wife duo Krishna Kumar Yadav and Akanksha Yadav have been presented the "Couple Blogger of the Decade", award by 'Parikalpana Group' at an international conference of bloggers at Rai Umanath Bali Auditorium in Lucknow.

The award was jointly given to the couple by renowned litterateur Udbhrant, ex-Inspector General of Police Shailendra Sagar and Director of Uttar Pradesh Hindi Sansthan Sudhakar Adib at the conference.

KK Yadav who is posted as Director Postal Services, Allahabad Region in the city is also known for his literary works and has penned six books. He is active in the field of Hindi blogging with blogs 'Dakiya Dak Laya' and 'Sabd Srijan Ki Aur'. His two blogs showcased comments from the bloggers from 94 and 64 countries respectively.

His wife Akanksha Yadav who writes intensively on women empowerment is famous for blog' Sabd Sikhar'. People from 66 countries have studied her blog other than above, this couple jointly operates blogs 'Saptrangi Prem', 'Bal Dunia' and 'Utsav ke Rang'.

The Director also shares interesting facts related to Department of Posts with his readers, alongwith his literary works in the two blogs separately created for the purpose while Akanksha writes about various aspects of Hindi literature in her blog, 'Shabd Shikhar'.

Interestingly, their daughter Akshitaa (Pakhi)'s blog 'Pakhi ki Duniya' who has been awarded 'National Child Award' by the Government of India last year, received comments from 94 countries.

"The blogs are a medium to express our creative insight. We started blogging in the year 2008 and within five years we were operating ten blogs on various subjects, "said KK Yadav.

He added, after the start of Hindi blogging in the year 2003, people like him found a new medium to express themselves and showcase their creatively across the globe. The couple said that Hindi language would be propagated in a better way with the help of blogs.

Courtesy : Hindustan Times, 29 August 2012.

प्रिंट मीडिया में कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव को 'दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दंपत्ति' का सम्मान मिलने की चर्चाएँ...

'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मलेन' एवं 'परिकल्पना सम्मान समारोह' में 'दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दंपत्ति' (कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव) का सम्मान हमें मिलने पर तमाम अख़बारों ने ख़बरें प्रकाशित की हैं.'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मलेन' एवं 'परिकल्पना सम्मान समारोह' में 'दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दंपत्ति' (कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव) का सम्मान हमें मिलने पर तमाम अख़बारों ने ख़बरें प्रकाशित की हैं. इनमें दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, आई-नेक्स्ट, राष्ट्रीय सहारा, जन्संदेश टेम्स,Hindustan Times इत्यादि प्रमुख हैं.









आप सभी के स्नेह और शुभकामनाओं के लिए बेहद आभारी हैं हम

’दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर' के रूप में कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव सम्मानित

जीवन में कुछ करने की चाह हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं। हिन्दी-ब्लागिंग के क्षेत्र में ऐसा ही रास्ता अखि़्तयार किया कृष्ण कुमार यादव व आकांक्षा यादव ने। 2008 में अपना ब्लागिंग-सफर आरंभ करने वाले इस दम्पत्ति को परिकल्पना समूह द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ’’दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’’ के रूप में सम्मानित किया गया है। इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं पद पर पदासीन कृष्ण कुमार यादव हिन्दी-साहित्य में एक सुपरिचित नाम हैं, जिनकी 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । उनके जीवन पर एक पुस्तक ’बढ़ते चरण शिखर की ओर’ भी प्रकाशित हो चुकी है। आकांक्षा यादव भी नारी-सशक्तीकरण को लेकर प्रखरता से लिखती हैं । साहित्य के साथ-साथ ब्लागिंग में भी हमजोली यादव दम्पत्ति को 27 अगस्त, 2012 को लखनऊ में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मेलन में 'दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दम्पत्ति’ का अवार्ड दिया गया। मुख्य अतिथि श्री श्री प्रकाश जायसवाल केन्द्रीय कोयला मंत्री की अनुपस्थिति में यह सम्मान वरिष्ठ साहित्यकार उदभ्रांत, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक शैलेन्द्र सागर आदि ने संयुक्त रूप से दिया।

गौरतलब है कि हिंदी ब्लागिंग का आरंभ वर्ष 2003 में हुआ और इस पूरे एक दशक में तमाम ब्लागरों ने अपनी
अभिव्यक्तियों को विस्तार दिया। पर कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव ने वर्ष 2008 में ब्लाग जगत में कदम रखा और 5 साल के भीतर ही सपरिवार विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लाग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लागिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लागिंग को भी नये आयाम दिये। इन दम्पत्ति के ब्लागों को सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भरपूर सराहना मिली। कृष्ण कुमार यादव के ब्लाग ’डाकिया डाक लाया’ को 94 देशों, ’शब्द सृजन की ओर’ को 70 देशों, आकांक्षा यादव के ब्लाग ’शब्द शिखर’ को 66 देशों और इस ब्लागर दम्पत्ति की सुपुत्री एवं पिछले वर्ष ब्लागिंग हेतु भारत सरकार द्वारा ’’राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’’ से सम्मानित अक्षिता (पाखी) के ब्लाग ’पाखी की दुनिया’ को 94 देशों में देखा-पढ़ा जा चुका है।

उमानाथ बाली प्रेक्षागृह, कैसर बाग, लखनऊ में आयोजित इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में न्यू मीडिया की संभावना एवं चुनौतियों को लेकर तमाम सेमिनार हुये। ’न्यू मीडिया के सामाजिक सरोकार’ विषय आधारित सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में कृष्ण कुमार यादव ने ब्लागिंग को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की बात कही और एक माध्यम के बजाय इसके विधागत विकास पर जोर दिया।

इस दम्पत्ति को सम्मानित किये जाने के अवसर पर देश-विदेश के तमाम ब्लागर, साहित्यकार, पत्रकार व प्रशासक उपस्थित थे। प्रमुख लोगों में मुद्रा राक्षस, वीरेन्द्र यादव, पूर्णिमा वर्मन, रवि रतलामी, रवीन्द्र प्रभात , जाकिर अली ’रजनीश’, शिखा वार्ष्णेय, सुभाष राय इत्यादि प्रमुख थे।
साभार : राष्ट्रीय सहारा, 29 अगस्त, 2012

खूबसूरत यादें छोड़ गया लखनऊ में हुआ 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मलेन'

'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मलेन' एवं 'परिकल्पना सम्मान समारोह' अंतत: 27 अगस्त, 2012 को उमानाथ बाली प्रेक्षागृह, कैसर बाग, लखनऊ में भव्यता के साथ संपन्न हुआ. यह सम्मेलन तस्लीम एवं परिकल्पना समूह द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। पिछले साल हिंदी भवन, नई दिल्ली में प्रथम 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मलेन' एवं 'परिकल्पना सम्मान समारोह' हुआ था, जिसमें उत्तरांचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक मुख्या अतिथि थे और साथ में अशोक चक्रधर, डा. रामदरश मिश्र, प्रभाकर श्रोतिय जैसे विद्वत -जनों की गौरवमयी उपस्थिति.उस समय हमारी बेटी अक्षिता (पाखी) को 'वर्ष के श्रेष्ठ नन्हा ब्लागर' अवार्ड से सम्मानित किया गया था, पर कुछेक कारणोंवश हम कार्यक्रम में शामिल न हो सके. उस समय हम पोर्टब्लेयर, अंदमान में थे. इस बार कार्यक्रम लखनऊ में था और अब हम इलाहबाद में थे, सो भला कैसे चूक सकते थे. इस अवसर पर हमें ’दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर' के सम्मान से भी नवाजा गया, आप सभी के स्नेह और शुभकामनाओं के लिए बेहद आभारी हैं हम. न्यू मीडिया और ब्लागिंग से जुड़े तमाम लोगों से साक्षात् मुलाकात अपने आप में एक अविस्मरनीय अनुभव था. रविन्द्र प्रभात और जाकिर अली 'रजनीश' ने अपने स्तर पर कार्यक्रम की शानदार मेजबानी की और लखनऊ की तहज़ीब से भी लोगों को रूबरू कराया. देश-विदेश से तमाम ब्लागर जुटे, चर्चाएँ हुईं, पुस्तकें-पत्रिकाएं विमोचित हुईं, सम्मान मिले, मुलाकातें हुईं...और अब रह गई खूबसूरत यादें. ऐसे ही कुछेक यादों को हमने भी अपने कैमरे में सहेजा और आप सभी के साथ शेयर कर रहे हैं.
(दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उदघाटन करते वरिष्ठ साहित्यकार उद्भान्त, साथ मे शिखा वार्ष्णेय,गिरीश पंकज,रणधीर सिंह सुमन और रवीन्द्र प्रभात)
('दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’ के रूप में कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव को सम्मानित करने की उद्घोषणा करते परिकल्पना समूह के संयोजक रविन्द्र प्रभात)
('दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’ के रूप में कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव को सम्मानित करते वरिष्ठ साहित्यकार उद्भ्रांत, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक व कथा क्रम के संपादक शैलेन्द्र सागर. साथ में परिलक्षित हैं वरिष्ठ पत्रकार सुभाष राय और लंदर की पत्रकार और ब्लागर शिखा वार्ष्णेय).
('दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’ के रूप में कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव के सम्मान के बाद ब्लागिंग हेतु 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' विजेता बिटिया अक्षिता (पाखी) को बुके देकर सम्मानित करते पूर्व पुलिस महानिरीक्षक व कथा क्रम के संपादक शैलेन्द्र सागर)
('दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’ के रूप में सम्मानित होते कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा और साथ में पुत्री अक्षिता (पाखी). मंच पर दिख रहे हैं- डॉ सुभाष राय, वरिष्ठ साहित्यकार उद्भ्रांत, कथा क्रम के संपादक शैलेंद्र सागर, सुश्री शिखा वार्ष्णेय)('दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’ के रूप में कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव को प्राप्त सम्मान)
('दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’ के रूप में कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव को प्राप्त प्रमाण-पत्र)
( 'दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’ के रूप में सम्मानित होने के बाद कृष्ण कुमार यादव का संबोधन. साथ में परिलक्षित हैं कार्यक्रम के संचालक ब्लागर हरीश अरोड़ा)
('दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’ के रूप में सम्मानित होने के बाद कृष्ण कुमार यादव का आभार-उद्बोधन और मंचस्थ दिख रहे हैं- डॉ सुभाष राय,सुश्री शिखा वार्ष्णेय,वरिष्ठ साहित्यकार उद्भ्रांत, कथा क्रम के संपादक शैलेंद्र सागर, डॉ अरविंद मिश्रा, गिरीश पंकज)
(दशक के ब्लागर के रूप में सम्मानित होने के बाद सभी ब्लागर्स का समूह-फोटोग्राफ. क्रमश : कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, पूर्णिमा वर्मन, रविन्द्र प्रभात, बी. एस. पाबला, अविनाश वाचस्पति और रवि रतलामी. मंचस्थ दिख रहे हैं- हरीश अरोड़ा, डॉ सुभाष राय, अक्षिता (पाखी), सुश्री शिखा वार्ष्णेय, डॉ अरविंद मिश्रा, वरिष्ठ साहित्यकार उद्भ्रांत, कथा क्रम के संपादक व पूर्व पुलिस महानिरीक्षक शैलेंद्र सागर)
( बेटी अपूर्वा के साथ साहित्यकार-ब्लागर आकांक्षा यादव, अनुभूति-अभिव्यक्ति वेब पत्रिका की संपादक पूर्णिमा वर्मन (संयुक्त अरब अमीरात), 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' विजेता व पिछले साल 'श्रेष्ठ नन्हीं ब्लागर' से सम्मानित अक्षिता (पाखी), इलाहबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाए व साहित्यकार-ब्लागर कृष्ण कुमार यादव व ब्लागर एवं बाल -साहित्यकार डा. जाकिर अली रजनीश)
( देश-विदेश से पधारे तमाम ब्लागर्स)
(ब्लागर-त्रय्यी : डा. मनीष कुमार मिश्र, कृष्ण कुमार यादव, डा. कुमारेन्द्र सिंह 'सेंगर')
(मुलाकात : पत्रकार आलोक पराड़कर, चर्चित समालोचक वीरेंदर यादव, कृष्ण कुमार यादव)
(भोजनावकाश के बाद की संगोष्ठी : न्यू मिडिया की भाषाई चुनौतियाँ और सामाजिक सरोकार. मंचासीन हैं- ब्लागर राजेश राय, इलाहबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव, 'अनुभूति-अभिव्यक्ति' वेब पत्रिका की संपादक पूर्णिमा वर्मन (संयुक्त अरब अमीरात), उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान के निदेशक सुधाकर अदीब और 'रचनाकार' के संपादक रवि रतलामी)
(इलाहबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव का स्मृति-चिन्ह और पुष्प-गुच्छ देकर स्वागत)
('हिंदी ब्लागिंग : स्वरुप, व्याप्ति और संभावनाएं' के संपादक डा. मनीष कुमार मिश्र का रविन्द्र प्रभात द्वारा सम्मान. मंचस्थ हैं-ब्लागर राजेश राय, इलाहबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव, 'अनुभूति-अभिव्यक्ति' वेब पत्रिका की संपादक पूर्णिमा वर्मन (संयुक्त अरब अमीरात), उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान के निदेशक सुधाकर अदीब और 'रचनाकार' के संपादक रवि रतलामी)
(ब्लागर शेफाली पाण्डेय का सम्मान करते उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान के निदेशक सुधाकर अदीब और साथ में परिलक्षित हैं इलाहबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव, 'अनुभूति-अभिव्यक्ति' वेब पत्रिका की संपादक पूर्णिमा वर्मन (संयुक्त अरब अमीरात), और 'रचनाकार' के संपादक रवि रतलामी)

प्रस्तुति : कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव