दुनिया के विभिन्न देशों में हिंदी के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ रहा है, इसलिए जरूरी है कि हिंदी को और समृद्ध व सशक्त बनाने की दिशा में प्रयास किए जाएं। इसके साथ हिंदी को अन्य भारतीय भाषाओं से जोड़ते हुए उसका डिजिटल दुनिया में उपयोग बढ़ाना होगा। उक्त उद्गार मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 10 सितंबर को को तीन दिवसीय 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्त किये। विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन स्थल लाल परेड मैदान में बसे माखनलाल चतुर्वेदी नगर में रामधारी सिंह दिनकर सभागार में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने विदेशी प्रवासों का जिक्र करते हुए कहा कि इन प्रवासों के दौरान उन्हें पता चला है कि दुनिया के अन्य देशों में हिंदी के क्षेत्र में कितना काम हो रहा है और वे हिंदी को कितना पसंद करते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आने वाले दिनों में हिंदी का महत्व और बढ़ने वाला है, क्योंकि भाषा शास्त्रियों का मत है कि जिस तरह से दुनिया बदल रही है उसके चलते 21वीं शताब्दी के खत्म होने तक छह हजार भाषाओं में से 90 प्रतिशत भाषाएं विलुप्त हो जाने की संभावना दिखाई दे रही है। इस चेतावनी को अगर हम न समझे और हमने अपनी भाषा का संरक्षण नहीं किया तो वह पुरातत्व का विषय बन जाएगा, हमारा दायित्व बनता है कि भाषा को समृद्ध कैसे बनाएं, और चीजों को जोड़ें। जब भाषा के दरवाजे बंद किए गए तब भाषा का नुकसान हुआ है।
उन्होंने कहा कि अगर हम हिंदी और रामचरित मानस को भूल जाते हैं तो हमारी स्थिति ठीक वैसी ही होगी, जैसे बगैर पैर के खड़े हैं। फणीश्वरनाथ रेणु, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद जो हमें दे गए हैं, उसे नहीं पढ़ा तो हम बिहार की गरीबी और ग्रामीण जीवन को नहीं जान पाएंगे। इसलिए भाषा को समृद्ध बनाना होगा। अगर भाषा ही नहीं बची तो इतना बड़ा साहित्य का भंडार और अनुभव कहां बचेगा।
हिंदी, अंग्रेजी, चीनी भाषा का होगा दबदबा :
उन्होंने कहा कि डिजिटल वर्ल्ड से दुनिया में बड़ा बदलाव आने वाला है। बाप-बेटा और पति-पत्नी तक वॉट्सएप का इस्तेमाल करने लगे हैं। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि इस क्षेत्र में आने वाले दिनों में तीन भाषाएं अंग्रेजी, चायनीज और हिंदी का दबदबा रहेगा। जो तकनीक से जुड़े हुए हैं उनका दायित्व बनता है कि वे तकनीक को इस तरह से परिवर्तित करें कि वह भारतीय भाषा और हिंदी के लिए हो।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हर पीढ़ी का दायित्व है कि उसके पास जो विरासत है उसे सुरक्षित रखें और आने वाली पीढ़ी को सौंपे। भाषा जड़ नहीं होती उसमें जीवन की तरह चेतना होती है। इस चेतना की अनुभूति भाषा के विकास और समृद्धि से होती है। भाषा में ताकत होती है जहां से भी गुजरती है वहां की परिस्थिति को अपने में समाहित करती है। हिन्दुस्तान की सभी भाषाओं की उत्तम चीजों को हिन्दी भाषा की समृद्घि का हिस्सा बनाना चाहिए। मातृभाषा के रूप में हर राज्य के पास भाषा का खजाना है, इसे जोड़ने में सूत्रधार का काम करें।
मोदी ने कहा कि डिजिटल दुनिया ने हमारे जीवन में गहरे तक प्रवेश कर लिया है। हमें हिंदी और भारतीय भाषाओं को तकनीकी के लिए परिवर्तित करना होगा। बदले हुए तकनीकी परिदृश्य में भाषा का बड़ा बाजार बनने वाला है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। भाषा हर किसी को जोड़ने वाली होनी चाहिए। हर भारतीय भाषा अमूल्य है। भाषा की ताकत का अंदाजा उसके लुप्त होने के बाद होता है।
अहिंदीभाषियों ने चलाया हिंदी भाषा आंदोलन :
हिन्दी भाषा का आंदोलन देश में ऐसे महापुरुषों ने चलाया जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं थी, यह प्रेरणा देता है। भाषा और लिपि की ताकत अलग-अलग होती है। देश की सारी भाषाएं नागरी लिपि में लिखने का आंदोलन यदि प्रभावी हुआ होता तो लिपि राष्ट्रीय एकता की ताकत के रूप में उभर कर आती। भारतीय फिल्मों ने भी दुनिया में हिन्दी को पहुंचाने का कार्य किया है। उन्होंने कहा कि विश्व हिन्दी सम्मेलन के माध्यम से हिन्दी को समृद्घ बनाने की पहल होगी और निश्चित परिणाम निकलेंगे।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सम्मेलन को मध्यप्रदेश और भोपाल में आयोजित करने का कारण बताते हुए कहा कि मध्यप्रदेश हिन्दी के लिए समर्पित राज्य है और भोपाल सफल आयोजन करने के लिये विख्यात है। उन्होंने विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजनों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 32 वर्षों बाद यह भारत में आयोजित हो रहा है। पहला सम्मेलन 1975 में नागपुर में हुआ था। तब से भोपाल के दसवें सम्मेलन तक आयोजन का स्वरूप बदला है। पहले के सम्मेलन साहित्य केन्द्रित थे लेकिन दसवां सम्मेलन भाषा की उन्नति पर केन्द्रित है।
सम्मेलन का शुभारंभ हिन्दी के स्तुति गान के साथ हुआ। अतिथियों को अंग वस्त्र भेंट कर स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री और अतिथियों का स्वागत किया। विदेश राज्य मंत्री जनरल वी़ क़े सिंह ने आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर राज्यपाल रामनरेश यादव, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी, राज्यपाल गोवा मृदुला सिन्हा, केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा. हर्षवर्धन, गृह राज्य मंत्री ड़ किरण रिजिजू, मॉरीशस की मानव संसाधन एवं विज्ञान मंत्री लीलादेवी दुक्कन, विदेश सचिव अनिल वाधवा, आयोजन समिति के उपाध्यक्ष सांसद अनिल माधव दवे सहित विभिन्न देश से आये हिंदी विद्वान और राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य उपस्थित थे।
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