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बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

मिट्टी के ही दीये जलाएँ, दीवाली पर अबकी बार


इस दीपावली पर जरा यह भी गौर कीजियेगा


कुम्हारन बैठी सड़क किनारे, लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी, करती मन में विचार।।

याद करके आँख भर आई, पिछला  दीवाली त्योहार।
बिक न पाया आधा समान, चढ गया सर पर उधार।।

सोच रही है अबकी बार, दूँगी सारे कर्ज उतार।
सजा रही है सारे दीये, करीने से बार बार।।

पास से गुजरते लोगों को, देखे कातर निहार।
बीत जाए न अबकी दीवाली, जैसा पिछली बार।।

नम्र निवेदन मित्रोंजनों से, करता हुँ मैँ मनुहार।
मिट्टी के ही दीये जलाएँ, दीवाली पर अबकी बार।।


आपकी सदाशयता किसी गरीब के घर में दीवाली ला  सकती है। 
आप सभी को दीपावली पर्व पर सपरिवार शुभकामनाएँ !!



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