समर्थक / Followers

शनिवार, 25 मई 2013

बुद्ध और अंगुलिमाल






ठहरो!
तुम आगे नहीं जा सकते
फिर भी बुद्ध आगे बढ़ते रहे
अविचलित मुस्कुराते हुए
चेहरे पर तेज के साथ

अंगुलिमाल अवाक्
मानो किसी ने सारी हिंसा
उसके अन्दर से खींच ली हो
कदम अपने आप उठने लगे
और बुद्ध के चरणों में सिर रख दिया

उसने जान लिया कि
शारीरिक शक्ति से महत्वपूर्ण
आत्मिक शक्ति है
आत्मा को जीतना ही
परमात्मा को जीतना है।

(चित्र में : सारनाथ में कृष्ण कुमार यादव)

*****************************************************************
आज बुद्ध पूर्णिमा है। जिस महात्मा बुद्ध ने तमाम कर्मकांडों के विरुद्ध आवाज़ उठाई, उसे हमने मूर्तियों, पूजा और कर्मकांडों के बीच उलझा दिया। दुर्भाग्य यही है कि जब कोई अच्छा कार्य करता है तो हम उसे मानव की बजाय भगवान बना देते हैं और इसी के साथ उसके विचारों की बजाय आडम्बर को ज्यादा महत्त्व देने लगते हैं। बुद्ध का मध्यम मार्ग मुझे बहुत भाता है, न तो अतिवादिता और न ही निम्नता। आज जीवन को अच्छे से जीने का यही माध्यम मार्ग भी उत्तम है !!

 (जीवन संगिनी आकांक्षा जी के फेस बुक टाइम लाइन से  )

3 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया है..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आत्मिक शक्ति का आधार अनन्त है।

Bhanwar Singh ने कहा…

Angulimal ki kahani bahut pahle padhi thi..aaj fir se apne yad dila di. behad sundar kavita..badhai.