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गुरुवार, 1 नवंबर 2012

कृष्ण कुमार यादव के हाइकु

आधुनिकता
क्षीण हो रहे मूल्य
चकाचौंध में।


टूटते रिश्ते
सूखती संवेदना
कैसे बचाएं।


संवेदनाएं
लहुलुहान होती
समय कैसा।


सत्य-असत्य
के पैमाने बदले
छाई बुराई।


खलनायक
नेता या अभिनेता
खामोश सब।


अहं में चूर
मानव शर्मसार
अब तो जाग।


-कृष्ण कुमार यादव

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर,
संक्षिप्त,
प्रभावी ।

Unknown ने कहा…

एक से बढ़कर एक हाइकु..बधाई.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

Behad khubsuart..badhai.

Shahroz ने कहा…

टूटते रिश्ते
सूखती संवेदना
कैसे बचाएं।

लाजवाब कर दिया आपने . मुबारकवाद इन शानदार हाइकु के लिए।

मनोज अबोध ने कहा…

बहुत मारक क्षमता वाले हाइकू लिखें हें आपने । बधाई ।