टकटकी बाँधकर देखती है
जैसे कुछ कहना हो
और फुर्र हो जाती है तुरन्त
फिर लौटती है
चोंच में तिनके लिए
अब तो कदमों के पास
आकर बैठने लगी है
आज उसके घोंसले में दिखे
दो छोटे-छोटे अंडे
कुर्सी पर बैठा रहता हूँ
पता नहीं कहाँ से आकर
कुर्सी के हत्थे पर बैठ जाती है
शायद कुछ कहना चाहती है
फिर फुर्र से उड़कर
घोंसले में चली जाती है
सुबह नींद खुलती है
चूँ...चूँ ...चूँ..... की आवाज
यानी दो नये जीवनों का आरंभ
खिड़कियाँ खोलता हूँ
उसकी चमक भरी आँखों से
आँखें टकराती हैं
फिर चूँ....चूँ....चूँ....।
13 टिप्पणियां:
चीं चीं चिड़िया सृजनकर, तन्मय बारम्बार ।
जाती आती फुर्र से, बच्चे रही सँभार ।
बच्चे रही सँभार, बड़ी मारक हो जाती ।
लुटा रही है प्यार, पूज्य माता कहलाती ।
समय चक्र पर क्रूर, रक्त से जिनको सींची ।
उड़ जाते वे दूर, करे फिर मैया चीं चीं ।।
नये जीवन का प्रारम्भ..
Sundar kavita..shubhashish.
प्रस्तुती मस्त |
चर्चामंच है व्यस्त |
आप अभ्यस्त ||
आइये
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
badi komal si kavita.....
कोमल भावो का सुन्दर चित्रण
खिड़कियाँ खोलता हूँ
उसकी चमक भरी आँखों से
आँखें टकराती हैं
फिर चूँ....चूँ....चूँ....।
...Shandar agaj..!!
आपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 24/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सुंदर रचना ... :)
नाजुक अहसास समेटे अनुपम प्रस्तुति ।
सुन्दर कविता...
सादर.
उसकी चमक भरी आँखों से
आँखें टकराती हैं
फिर चूँ....चूँ....चूँ....। waah bahut achcha padhkr dil khush ho gaya.
sundar prastuti
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