समर्थक / Followers

गुरुवार, 22 मार्च 2012

नया जीवन


टकटकी बाँधकर देखती है
जैसे कुछ कहना हो
और फुर्र हो जाती है तुरन्त
फिर लौटती है
चोंच में तिनके लिए
अब तो कदमों के पास
आकर बैठने लगी है
आज उसके घोंसले में दिखे
दो छोटे-छोटे अंडे
कुर्सी पर बैठा रहता हूँ
पता नहीं कहाँ से आकर
कुर्सी के हत्थे पर बैठ जाती है
शायद कुछ कहना चाहती है
फिर फुर्र से उड़कर
घोंसले में चली जाती है
सुबह नींद खुलती है
चूँ...चूँ ...चूँ..... की आवाज
यानी दो नये जीवनों का आरंभ
खिड़कियाँ खोलता हूँ
उसकी चमक भरी आँखों से
आँखें टकराती हैं
फिर चूँ....चूँ....चूँ....।

13 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

चीं चीं चिड़िया सृजनकर, तन्मय बारम्बार ।

जाती आती फुर्र से, बच्चे रही सँभार ।

बच्चे रही सँभार, बड़ी मारक हो जाती ।

लुटा रही है प्यार, पूज्य माता कहलाती ।

समय चक्र पर क्रूर, रक्त से जिनको सींची ।

उड़ जाते वे दूर, करे फिर मैया चीं चीं ।।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नये जीवन का प्रारम्भ..

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

Sundar kavita..shubhashish.

रविकर ने कहा…

प्रस्तुती मस्त |
चर्चामंच है व्यस्त |
आप अभ्यस्त ||

आइये
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com

mridula pradhan ने कहा…

badi komal si kavita.....

vandana gupta ने कहा…

कोमल भावो का सुन्दर चित्रण

Unknown ने कहा…

खिड़कियाँ खोलता हूँ
उसकी चमक भरी आँखों से
आँखें टकराती हैं
फिर चूँ....चूँ....चूँ....।

...Shandar agaj..!!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

----------------------------
कल 24/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Dr Xitija Singh ने कहा…

सुंदर रचना ... :)

सदा ने कहा…

नाजुक अहसास समेटे अनुपम प्रस्‍तुति ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सुन्दर कविता...
सादर.

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

उसकी चमक भरी आँखों से
आँखें टकराती हैं
फिर चूँ....चूँ....चूँ....। waah bahut achcha padhkr dil khush ho gaya.

Onkar ने कहा…

sundar prastuti