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सोमवार, 30 जनवरी 2012

गाँधी जी जैसे इतिहास पुरूष...










गाँधी जी जैसे इतिहास पुरूष
इतिहास में कब ढल पाते हैं
बौनी पड़ जाती सभी उपमायें
शब्द भी कम पड़ जाते हैं ।

सत्य-अहिंसा की लाठी
जिस ओर मुड़ जाती थी
स्वातंत्रय समर के ओज गीत
गली-गली सुनाई देती थी।

बैरिस्टरी का त्याग किया
लिया स्वतंत्रता का संकल्प
बन त्यागी, तपस्वी, सन्यासी
गाए भारत माता का जप।

चरखा चलाए, धोती पहने
अंग्रेजों को था ललकारा
देश की आजादी की खातिर
तन-मन-धन सब कुछ वारा।

हो दृढ़ प्रतिज्ञ, संग ले सबको
आगे कदम बढ़ाते जाते
गाँधी जी के दिखाये पथ पर
बलिदानी के रज चढ़ते जाते।

हाड़-माँस का वह मनस्वी
युग-दृष्टा का था अवतार
आलोक पुंज बनकर दिखाया
आजादी का तारणहार।

भारत को आजाद कराया
दुनिया में मिला सम्मान
हिंसा पर अहिंसा की विजय
स्वातंत्रय प्रेम का गायें गान।

( - कृष्ण कुमार यादव : महात्मा गाँधी जी की पुण्य तिथि पर सादर श्रद्धांजलिस्वरूप यह कविता...)

9 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वैष्णवजन तो टेरे रहिये जी..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुन्दर भाव ...... बापू को नमन

Unknown ने कहा…

गाँधी जी को सुन्दर शब्दों में याद किया...श्रद्धांजलि.

सुधाकल्प ने कहा…

गाँधी स्वरूप पर आधारित कविता बहुत सुंदर बन पड़ी है । राष्ट्र पिता को शत -शत नमन।

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

हाड़-माँस का वह मनस्वी
युग-दृष्टा का था अवतार
आलोक पुंज बनकर दिखाया
आजादी का तारणहार।

...Behatrin..Gandhi ji ka koi javab nahin.

Akanksha Yadav ने कहा…

गाँधी जी को बड़े सार्थक रूप में उतार दिया है इस कविता में..बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

गाँधी जी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं..सुन्दर कविता..बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

गाँधी जी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं..सुन्दर कविता..बधाई.

Shahroz ने कहा…

Nice Composition..