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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

डा. कुमार विमल का जाना...

(कई बार कुछ यादें मात्र अफसोसजनक ही रह जाती हैं. अभी कुछेक माह पूर्व ही डा.कुमार विमल जी से फोन पर बात हुई थी और मैंने वादा किया था कि अपनी कुछेक पुस्तकें उन्हें सादर अवलोकनार्थ भेजूंगा. डा. कुमार विमल जी के बारे में मुझे बिहार के ही एक जज डा. राम लखन सिंह यादव जी ने बताया था. बातों ही बातों में उन्होंने उनके विराट-व्यक्तित्व और कृतित्व की भी चर्चा की थी...साथ ही बीमारी के बारे में भी. पर तब मैंने यह नहीं सोचा था कि उसके बाद जब डा. विमल जी से बात करूँगा तो वह अंतिम होगी, खैर यही नियति थी और अचानक खबर मिली कि हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि, लेखक और आलोचक अस्सी वर्षीय डा. कुमार विमल जी इस दुनिया में 26 नवम्बर, 2011 को नहीं रहे...मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !!)


हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि, लेखक और आलोचक अस्सी वर्षीय डा. कुमार विमल जी इस दुनिया में 26 नवम्बर, 2011 को नहीं रहे. वे एक लम्बे समय से दिल की बीमारी से पीड़ित थे. उनके परिवार में पत्नी, चार बेटियां और दो पुत्र हैं।

बहुयामी व्यक्तित्व के धनी डा. विमल हिंदी काव्य लेखन में सौंदर्यबोध के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए हमेशा याद किये जाएंगे। 12 अक्टूबर 1931 को लखीसराय जिले के पचीना गांव में जन्मे विमल ने चालीस के दशक से लेखन जगत में पदार्पण किया। आलोचना पर उनकी पुस्तक ‘मूल्य और मीमांसा’ तथा कविता संग्रह में ‘अंगार’ तथा ‘सागरमाथा’ उनकी यादगार कृतियों में शुमार हैं। उनकी हिंदी में कई कविताओं का अंग्रेजी, बांग्ला, तेलुगू, मराठी, उर्दू और कश्मीरी सहित कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ था।

डा. विमल का कृतित्व वाकई विस्तृत फलकों को समेटे हुए था. यही कारण था कि उन्हें राजेंद्र शिखर सम्मान सहित उत्तर प्रदेश और बिहार के कई साहित्य सम्मान प्रदान किए गए। ज्ञानपीठ समिति ने भी उन्हें विशेष लेखन का सम्मान दिया था। मगध और पटना विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रह चुके डा. विमल कई प्रमुख संस्थाओं में भी उच्च पदों पर रहे। उन्होंने बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद के अध्यक्ष और नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति के पद को भी सुशोभित किया।
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डा- कुमार विमल

जन्मः- 12 अक्टूबर, 1931

साहित्यिक जीवनः- साहित्यिक जीवन का प्रारंभ काव्य रचना से, उसके बाद आलोचना में प्रवृति रम गई। 1945 से विभिन्न
प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलोचनात्मक लेख आदि प्रकाषित हो रहे हैं। इनकी कई कविताएं अंगे्रजी, चेक, तेलगु, कष्मीरी, गुजराती, उर्दू, बंगला और मराठी में अनुदित।

अध्यापनः- मगध व पटना विष्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक। बाद में निदेशक बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्,पटना ।
संस्थापक आद्य सचिव, साहित्यकार कलाकार कल्याण कोष परिषद्, पटना नांलदा मुक्त विष्वविद्यालय में कुलपति

अध्यक्ष :-
बिहार लोक सेवा आयोग
बिहार विष्वविद्यालय कुलपति बोर्ड
हिन्दी प्र्रगति समिति, राजभाषा बिहार
बिहार इंटरमीडियएट शिक्षा परिषद्
बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग

सदस्य;-
ज्ञानपीठ पुरस्कार से संबंधित हिन्दी समिति
बिहार सरकार उच्च स्तरीय पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष
साहित्य अकादमी, दिल्ली, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर और भारत सरकार के कई मंत्रालयों की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके हैं।

सम्मान;-

कई आलोचनात्मक कृतियां, पुरस्कार-योजना समिति (उत्तर प्रदेश) बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना,राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह विशेष साहित्यकार सम्मान, हरजीमल डालमिया पुरस्कार दिल्ली, सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार, आगरा तथा बिहार सरकार का डा. राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान

प्रकाशनः-
अब तक लगभग 40 पुस्तकों का प्रकाशन

महत्वपूर्ण प्रकाशनः-

आलोचना में ‘‘मूल्य और मीमांसा‘‘, ‘‘महादेवी वर्मा एक मूल्यांकन’’, ‘‘उत्तमा‘‘ ।
कविता में – ‘‘अंगार‘‘, ‘‘सागरमाथा‘‘।
संपादित ग्रंथ- गन्धवीथी (सुमित्रा नंदन पंत की श्रेष्ठ प्रकृति कविताओं का विस्तृत भूमिका सहित संपादन संकलन), ‘‘अत्याधुनिक हिन्दी साहित्य‘‘ आदि।

सोमवार, 28 नवंबर 2011

कृष्ण-आकांक्षा : आज हमारी शादी की सालगिरह है

28 नवम्बर का दिन हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. 28 नवम्बर, 2004 (रविवार) को हम (कृष्ण कुमार- आकांक्षा) जीवन के इस अनमोल पवित्र बंधन में बंधे थे. वक़्त कितनी तेजी से करवटें बदलता रहा, पता ही नहीं चला. सुख-दुःख के बीच सफलता के तमाम आयाम हमने छुए. कभी जिंदगी सरपट दौड़ती तो कई बार ब्रेक लग जाता।


एक-दूसरे के साथ बिताये गए ये दिन हमारे लिए सिर्फ इसलिए नहीं महत्वपूर्ण हैं कि हमने जीवन-साथी के संबंधों का दायित्व प्रेमपूर्वक निभाया, बल्कि इसलिए भी कि हमने एक-दूसरे को समझा, सराहा और संबल दिया. यह हमारा सौभाग्य है कि हम दोनों साहित्य प्रेमी हैं और कई सामान रुचियों के कारण कई मुद्दों पर खुला संवाद भी कर लेते हैं। एक-दूसरे की रचनात्मकता को सपोर्ट करते हुए ही आज हम इस मुकाम पर हैं...!!


शादी की इस सालगिरह पर कल से ही तमाम मित्रजनों-सम्बन्धियों की शुभकामनायें तमाम माध्यमों से प्राप्त हो रही हैं...सभी का आभार. आप सभी का स्नेह बना रहे ....!!

बुधवार, 16 नवंबर 2011

सबसे कम उम्र में बिटिया अक्षिता (पाखी) को 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार'

(बाल दिवस, 14 नवम्बर पर विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में महिला और बाल विकास मंत्री माननीया कृष्णा तीरथ जी ने हमारी बिटिया अक्षिता (पाखी) को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2011 से पुरस्कृत किया. अक्षिता इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की प्रतिभा है.यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया.प्रस्तुत है इस पर एक रिपोर्ट-


आज के आधुनिक दौर में बच्चों का सृजनात्मक दायरा बढ़ रहा है. वे न सिर्फ देश के भविष्य हैं, बल्कि हमारे देश के विकास और समृद्धि के संवाहक भी. जीवन के हर क्षेत्र में वे अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं. बेटों के साथ-साथ बेटियाँ भी जीवन की हर ऊँचाइयों को छू रही हैं. ऐसे में वर्ष 1996 से हर वर्ष शिक्षा, संस्कृति, कला, खेल-कूद तथा संगीत आदि के क्षेत्रों में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले बच्चों हेतु हेतु महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' आरम्भ किये गए हैं। चार वर्ष से पन्द्रह वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चे इस पुरस्कार को प्राप्त करने के पात्र हैं.

वर्ष 2011 के लिए 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा प्रदान किये गए. विभिन्न राज्यों से चयनित कुल 27 बच्चों को ये पुरस्कार दिए गए, जिनमें मात्र 4 साल 8 माह की आयु में सबसे कम उम्र में पुरस्कार प्राप्त कर अक्षिता (पाखी) ने एक कीर्तिमान स्थापित किया. गौरतलब है कि इन 27 प्रतिभाओं में से 13 लडकियाँ चुनी गई हैं. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री और पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा अक्षिता (पाखी) को यह पुरस्कार कला और ब्लागिंग के क्षेत्र में उसकी विलक्षण उपलब्धि के लिए दिया गया है. इस अवसर पर जारी बुक आफ रिकार्ड्स के अनुसार- ''25 मार्च, 2007 को जन्मी अक्षिता में रचनात्मकता कूट-कूट कर भरी हुई है। ड्राइंग, संगीत, यात्रा इत्यादि से सम्बंधित उनकी गतिविधियाँ उनके ब्लाॅग ’पाखी की दुनिया (http://pakhi-akshita.blogspot.com/) पर उपलब्ध हैं, जो 24 जून, 2009 को आरंभ हुआ था। इस पर उन्हें अकल्पनीय प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। 175 से अधिक ब्लाॅगर इससे जुडे़ हैं। इनके ब्लाॅग 70 देशों के 27000 से अधिक लोगों द्वारा देखे गए हैं। अक्षिता ने नई दिल्ली में अप्रैल, 2011 में हुए अंतर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में 2010 का ’हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना का सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार’ भी जीता है।इतनी कम उम्र में अक्षिता के एक कलाकार एवं एक ब्लाॅगर के रूप में असाधारण प्रदर्शन ने उन्हें उत्कृष्ट उपलब्धि हेतु 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार, 2011' दिलाया।''इसके तहत अक्षिता को भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया.

यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है और इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.

नन्हीं बिटिया अक्षिता (पाखी) को इस गौरवमयी उपलब्धि पर ढेरों प्यार और शुभाशीष व बधाइयाँ !!
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मंत्री जी भी अक्षिता (पाखी) के प्रति अपना प्यार और स्नेह न छुपा सकीं, कुछ चित्रमय झलकियाँ....






गुरुवार, 10 नवंबर 2011

मौत


आज मैंने मौत को देखा!
अर्द्धविक्षिप्त अवस्था में हवस की शिकार
वो सड़क के किनारे पड़ी थी!
ठण्डक में ठिठुरते भिखारी के
फटे कपड़ों से वह झांक रही थी!
किसी के प्रेम की परिणति बनी
मासूम के साथ नदी में बह रही थी!
नई-नवेली दुल्हन को दहेज की खातिर
जलाने को तैयार थी!
साम्प्रदायिक दंगों की आग में
वह उन्मादियों का बयान थी!
चंद धातु के सिक्कों की खातिर
बिकाऊ ईमान थी!
आज मैंने मौत को देखा!


- कृष्ण कुमार यादव

शनिवार, 5 नवंबर 2011

दुल्हन बारात लेकर आई दूल्हे के घर !

शादी के लिए अब तक दूल्हा बारात लेकर अपने ससुराल जाता रहा है मगर उत्तर प्रदेश में जौनपुर के बरसठी इलाके में एक दुल्हन बारात लेकर अपनी ससुराल गई और रात में विधि-विधान से हंसी-खुशी के माहौल में शादी सम्पन्न हुई।

जौनपुर के मुंगरा बादशाहपुर थाना क्षेत्र के बूढ़नपुर गांव निवासी दया शंकर यादव की 20 वर्षीय पुत्री कुसुम यादव की शादी जिले के ही बरसठी थाना क्षेत्र के घनापुर गांव निवासी डॉ. महेन्द्र प्रताप यादव के पुत्र कृष्ण कुमार यादव के साथ 18 अप्रैल के लिए तय हुई थी। शादी के समय यादव बिरादरी के आदरणीय सन्त गढ़वाघाट के स्वामी जी के उपस्थित रहने की बात भी तय की गई थी। महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के क्रम में लड़की कुसुम यादव ने निश्चित किया कि उसका दूल्हा बारात लेकर उसके घर नहीं आएगा बल्कि बिना दहेज हो रही इस शादी में दुल्हन स्वयं बारात लेकर दूल्हे के घर आएगी।

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक रात लगभग तीन सौ बारातियों और गाजे-बाजे के साथ बारात लेकर कुसुम अपने ससुराल घनापुर आई तो ससुराल वालों ने बारात का स्वागत किया। इसके बाद द्वाराचार की रस्म अदा हुई और रात में गढ़वाघाट के स्वामी जी की मौजूदगी में कुसुम और कृष्ण कुमार की विधि-विधान से शादी हुई। इस अनोखी शादी को देखने के लिए क्षेत्र के आस-पास के लगभग दो हजार से अधिक लोग इकट्ठा हुए थे। रात में शादी होने के बाद सुबह बारात तो विदा हो गई मगर कुसुम अपनी ससुराल में ही रह गई।

(यह भी अजूबा है. नाम मेरा ही है और संयोगवश जौनपुर में बरसठी के पास ही हमारा पैतृक आवास भी है...खबर पुरानी है, पर रोचक लगी. अत: आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ)

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

जज्बात

वह फिर से ढालने लगा है
अपने जज्बातों को पन्नों पर
पर जज्बात पन्ने पर आने को
तैयार ही नहीं
पिछली बार उसने भेजा था
अपने जज्बातों को
एक पत्रिका के नाम
पर जवाब में मिला
सम्पादक का खेद सहित पत्र
न जाने ऐसा कब तक चलता रहा
और अब तो
शायद जज्बातों को भी
शर्म आने लगी है
पन्नों पर उतरने में
स्पाॅनसरशिप के इस दौर में
उन्हें भी तलाश है एक स्पाॅन्सर की
जो उन्हें प्रमोट कर सके
और तब सम्पादक समझने में
कोई ऐतराज नहीं हो।

-कृष्ण कुमार यादव