टकटकी बाँधकर देखती है
जैसे कुछ कहना हो
और फुर्र हो जाती है तुरन्त
फिर लौटती है
चोंच में तिनके लिए
अब तो कदमों के पास
आकर बैठने लगी है
आज उसके घोंसले में दिखे
दो छोटे-छोटे अंडे
कुर्सी पर बैठा रहता हूँ
पता नहीं कहाँ से आकर
कुर्सी के हत्थे पर बैठ जाती है
शायद कुछ कहना चाहती है
फिर फुर्र से उड़कर
घोंसले में चली जाती है
सुबह नींद खुलती है
चूँ...चूँ ...चूँ..... की आवाज
यानी दो नये जीवनों का आरंभ
खिड़कियाँ खोलता हूँ
उसकी चमक भरी आँखों से
आँखें टकराती हैं
फिर चूँ....चूँ....चूँ....।
11 टिप्पणियां:
नव सृजन का मनोरम भाव चित्रण...बधाई.
नव सृजन का मनोरम भाव चित्रण...बधाई.
जितना सुंदर चित्र उतनी ही सुंदर कविता.
अद्भुत. बड़ा जीवंत चित्रण. खूबसूरत कविता के लिए शुभकामनायें.
एक सहज बात को सुन्दर शब्दों में ढाला है...साधुवाद.
जीवन का आगमन मनोहारी होता है।
bahoot hi sunder chitran... sach unka bhi jeewan kitna hasin hoga .
नव-जीवन का अद्भुत चित्रण..चित्र भी मनोहरी.बधाई.
नव-जीवन का अद्भुत चित्रण..चित्र भी मनोहरी.बधाई.
खूबसूरती से बिम्ब को उकेरती कविता..बधाई.
नव सृजन की मनोहरी बेला का अद्भुत चित्रण.
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