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शनिवार, 7 अगस्त 2010

पचमढ़ी की याद में : एक कविता

पचमढ़ी मेरी पसंदीदा जगहों में से है. वहां की कई बार सैर भी कर चूका हूँ. पहली बार तब जाना हुआ था, जब मैं भोपाल में ट्रेनिंग कर रहा था. उस समय पचमढ़ी के सौंदर्य पर मोहित होकर एक कविता लिखी थी-

पचमढ़ी
यानी पांडवों की पाँच मढ़ी
यहीं पांडवों ने अज्ञातवास किया
फिर छोड़ दिया इसे
सभ्यताओं की खोज तक दरकने हेतु।

पचमढ़ी
यहीं रची गई शंकर-भस्मासुर की कहानी
जिसमें विष्णु ने अंततः
नारी का रूप धरकर
स्वयं भस्मासुर को ही भस्म कर दिया
आज भी जीती - जागती सी
लगती हैं कंदरायें
जहाँ पर यह शिव - लीला चली।

पचमढ़ी
सतपुड़ा के घने जंगलों के बीच
मखमली घासों को चितवन से निहारते
बड़े - बड़े पहाड़ हाथ फैलाकर
मानो धरा को अपने आप में
समेट लेना चाहते हों।

19 टिप्‍पणियां:

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अब तो मैं भी पचमढ़ी घूमने जाउंगी....

ANKUR ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता लिखी गयी है जो इस सुन्दर से स्थान के गौरवमय इतिहास को बयाँ करती है। चित्र में तो ये स्थान और भी अधिक खूबसूरत दिखाई दे रहा है। सुन्दर रचना के लिए बधाई।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पंचमढ़ी जाकर तो बस प्रकृति की गोद में पसर जाने का मन करता है। बहुत सुन्दर कविता।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

kavita ke saath saath janm diwas ki badhai swikar karen have a nice day

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सुना तो था बहुत सुन्दर है । अब आपको पढ़कर और अच्छा लग रहा है ।

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

अति उत्तम प्रकॄति चित्रण........।

राज भाटिय़ा ने कहा…

पंचमढ़ी के बारे पढा तो था, लेकिन आज आप ने दर्शन भी करवा दिये. इस लेख से, इस सुंदर लेख के लिये आप का धन्यवाद

vandana gupta ने कहा…

कवि्ता मे ही पचमढी का दर्शन करा दिया………॥बहुत सुन्दर्।

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत स्केच!!!

S R Bharti ने कहा…

अब तो वाकई पचमढ़ी घूमने का मन कह रहा है...कविता भी, जानकारी भी..बधाई.

S R Bharti ने कहा…

अब तो वाकई पचमढ़ी घूमने का मन कह रहा है...कविता भी, जानकारी भी..बधाई.

Shahroz ने कहा…

Beautiful Place....Beautiful Poem..congts.

Akanksha Yadav ने कहा…

Pachmadhi ki yaden taja ho gain.

shikha varshney ने कहा…

पचमढ़ी पर बहुत ही खूबसूरत कविता लिखी है आपने ..मन हो आया घूमने का .

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

जब स्कूल में निक्कर से ताज़े-ताज़े पैंट में प्रोमोट हुए थे.... तब एक कविता पढ़ी थी!
बहुत लम्बी, किसी पढ़े-लिखे कवि की, नाम भूल रहा हूँ!
ऊंघते अनमने जंगल,
सतपुड़ा के घने जंगल!
वगेरह-वगेरह......
आपकी कविता पढ़ के सबसे पहले यही याद याद आयी!
बेहतरीन लिखा है आपने! देखिये कब एम पी में काम करने का मौका मिलता है!

Prem Farukhabadi ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता, बहुत ख़ूबसूरत!!

Ashish (Ashu) ने कहा…

वाह सर जी मजा आ गया अपनी लेखनी का बखूबी प्रयोग किया हॆ आपने अब जल्द ही पचमढ़ी जाने का प्रोगाम बनाना होगा ऒर सर जी कजरी के बोल तो अब सुनाई ही नही देते सुनाई भी दे तो कॆसे अब ना पहले वाली बारिश ऒर ना पहले की तरह लोगो का आपसी मेल मिलाप अब तो घर के बगल मे कॊन रहता हॆ यही जान लिया तो बहुत हॆ..सर जी बहुत कुछ बदल गया हे...आप अपने बचपन से लेकर मेरे बचपन ऒर अब पाखी के बचपन, तीनो समय की तुलना कीजिये आप खुद जान जायेगे..

Coral ने कहा…

वाह आपकी कविताने ने मेरी पचमढ़ी कि यादे ताज़ा कर दी ...बहुत सुन्दर!

S R Bharti ने कहा…

नागपंचमी पर्व पर आप सभी को शुभकामनायें !!