हिंदी साहित्य कला परिषद्, पोर्टब्लेयर के अध्यक्ष आर० पी0 सिंह ने संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, प्रेमचंद से पहले हिंदी साहित्य राजा-रानी के किस्सों, रहस्य-रोमांच में उलझा हुआ था। प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा। आज भी भूमंडलीकरण के इस दौर में इस सच्चाई को पहचानने की जरुरत है. डा० राम कृपाल तिवारी ने कहा कि प्रेमचन्द की रचनाओं में किसान, मजदूर को लेकर जो भी कहा गया, वह आज भी प्रासंगिक है. उनका साहित्य शाश्वत है और यथार्थ के करीब रहकर वह समय से होड़ लेती नजर आती हैं. जयबहादुर शर्मा ने प्रेमचन्द के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्ने पर उतारा। वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, कर्जखोरी, गरीबी, उपनिवेशवाद पर आजीवन लिखते रहे। डी0 एम0 सावित्री ने कहा कि प्रेमचन्द का लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था। उन्होंने दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से करके एक नजीर गढ़ी. जगदीश नारायण राय ने प्रेमचन्द की कहानियों पर जोर देते हुए बताया कि वे उर्दू का संस्कार लेकर हिन्दी में आए थे और हिन्दी के महान लेखक बने। उनकी तुलना विश्व स्तर पर मैक्सिम गोर्की जैसे साहित्यकार से की जाती है. वे युग परिवर्तक के साथ-साथ युग निर्माता भी थे और आज भी ड्राइंग रूमी बुद्धिजीवियों की बजाय प्रेमचन्द की परम्परा के लेखकों की जरुरत है. संत प्रसाद राय ने कहा कि प्रेमचन्द भूमंडलीकरण के दौर में इसलिए भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वर्षों पूर्व उन्होंने जिस समाज, गरीबी प्रथा के बारे में लिखा था वह आज भी देखने को प्राय: मिलती हैं.
द्वीप- लहरी के संपादक और परिषद् के साहित्य सचिव डा0 व्यासमणि त्रिपाठी ने कहा कि वे आम भारतीय के रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में वे नायक हुए, जिसे भारतीय समाज अछूत और घृणित समझा था. उन्होंने सरल, सहज और आम बोल-चाल की भाषा का उपयोग किया और अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया। इस ग्लैमर और उपभोक्तावादी संस्कृति में प्रेमचन्द की रचनाएँ आज भी जीवंत हैं क्योंकि वे आम आदमी की बाते करती हैं. अनिरुद्ध त्रिपाठी ने कहा कि प्रेमचन्द ने गांवों का जो खाका खिंचा, वह वैसा ही है. उनके चरित्र होरी, गोबर, धनिया आज भी समाज में दिख जाते हैं. भूमंडलीकरण की चकाचौंध से भी इनका उद्धार नहीं हुआ. परिषद् के प्रधान सचिव सदानंद राय ने कहा कि गोदान, गबन, निर्मला, प्रेमाश्रम जैसी उनकी रचनाएँ आज के समाज को भी उतना ही प्रतिबिंबित करती हैं. प्रेमचंद के कई साहित्यिक कृतियों का अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। यह उनकी विश्वस्तर पर लोकप्रियता का परिचायक है. कार्यक्रम का सञ्चालन डा0 व्यासमणि त्रिपाठी व धन्यवाद परिषद् के उपाध्यक्ष शम्भूनाथ तिवारी द्वारा किया गया।
(रिपोर्ट : डा0 व्यासमणि त्रिपाठी, संपादक-द्वीप लहरी, हिंदी साहित्य कला परिषद्, पोर्टब्लेयर)
19 टिप्पणियां:
Premchand jayanti par kee gaye saarthak sahitik sangosthi prastutikaran ke liye aabhar...
Nisandeh premchand ka sahitya sarjan kaaljayee hai..
वाह जी बल्ले बल्ले. फ़ोटो कुछ कम नहीं रह गईं?
वाह! बहुत बढ़िया लगा! प्रेमचंद जयंती पर सुन्दर प्रस्तुती!
@ Kajal ji,
कहें तो दो-चार और लगा दूँ...
बहुत अच्छा लगा जी धन्यवाद
एक बहुत सार्थक प्रयास की अच्छी रपट प्रस्तुत की है आपने...
नीरज
बहुत अच्छी रिपोर्टिंग।
बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने इस रिपोर्ट को, बधाई ।
प्रेम चाँद जयंती पर बढ़िया प्रस्तुति । अपने प्रेमचंद जी के कार्य पर सही प्रकाश डाला है । हमारी भी जानकारी बढ़ी । आभार ।
भाई के.के. जी, आप पोर्टब्लेयर में भी हिंदी की अलख जगाये हुए हैं. पहले टैगोर और अब प्रेमचंद जी पर संगोष्ठी...साधुवाद.
बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए व्यासमणि त्रिपाठी जी को बधाई..
पढकर अच्छा लगा .
आज प्रेमचन्द की प्रासंगिकता इसलिये और भी बढ़ जाती है कि आधुनिक साहित्य के स्थापित नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श जैसे तकिया-कलामों के बाद भी अन्ततः लोग इनके सूत्र किसी न किसी रूप में प्रेमचन्द की रचनाओं में ढूंढते नजर आते हैं...Bahut khubkaha apne..badhai.
प्रेमचन्द जैसा साहित्यकार आज तक नहीं पैदा हुआ...बहुत सुन्दर रिपोर्टिंग.
प्रेमचन्द जैसा साहित्यकार आज तक नहीं पैदा हुआ...बहुत सुन्दर रिपोर्टिंग
विश्लेष्णात्मक रिपोर्ट...के.के. सर को बधाई.
@ Ratnesh ji,
हम तो कोशिश मात्र करते हैं...
आप सभी को यह रिपोर्ट पसंद आई, अच्छा लगा...यूँ ही अपना स्नेह बनाये रहें.
प्रेमचंद को पढना मुझे अच्छा लगता है...अच्छी रिपोर्ट.
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