आज दुनिया भर में 20 मार्च 2010 को पहली बार ''विश्व गौरैया दिवस'' मनाया जा मनाया जा रहा है बहुत पहले गौरैया के विलुप्त होने को लेकर एक कविता लिखी थी, आज ''विश्व गौरैया दिवस'' पर प्रस्तुत है-
चाय की चुस्कियों के बीच
सुबह का अखबार पढ़ रहा था
अचानक
नजरें ठिठक गईं
गौरैया शीघ्र ही विलुप्त पक्षियों में।
वही गौरैया,
जो हर आँगन में
घोंसला लगाया करती
जिसकी फुदक के साथ
हम बड़े हुये।
क्या हमारे बच्चे
इस प्यारी व नन्हीं-सी चिड़िया को
देखने से वंचित रह जायेंगे!
न जाने कितने ही सवाल
दिमाग में उमड़ने लगे।
बाहर देखा
कंक्रीटों का शहर नजर आया
पेड़ों का नामोनिशां तक नहीं
अब तो लोग घरों में
आँगन भी नहीं बनवाते
एक कमरे के फ्लैट में
चार प्राणी ठुंसे पड़े हैं।
प्रकृति को
निहारना तो दूर
हर कुछ इण्टरनेट पर ही
खंगालना चाहते हैं।
आखिर
आखिर
इन सबके बीच
गौरैया कहाँ से आयेगी ?
16 टिप्पणियां:
विश्व गौरैया दिवस पर इस नन्हीं चिड़िया की जान बचाने का संकल्प लें. तभी इस दिन की सार्थकता होगी. आपने बेहतरीन लिखा..बधाई.
हमें तो पता ही नहीं था इस दिन के बारे में. कितनी बढ़िया बात है, बशर्ते यह लोगों की सोच बदल सके. सुन्दर कविता बहुत कुछ कह जाती है..बधाई.
Bahut umda likha.
अब तो लोग घरों में
आँगन भी नहीं बनवाते
एक कमरे के फ्लैट में
चार प्राणी ठुंसे पड़े हैं।
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एकदम सटीक. इस ओर सभी को सोचने की जरुरत है.
अब तो लोग घरों में
आँगन भी नहीं बनवाते
एक कमरे के फ्लैट में
चार प्राणी ठुंसे पड़े हैं।
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एकदम सटीक. इस ओर सभी को सोचने की जरुरत है.
गौरैया पर सुन्दर कविता. इस खोते प्राणी के साथ ही बहुत कुछ विलुप्त हो जायेगा. हमारा बचपन, हमारी यादें, उसकी चहचाहट, उसके पीछे दौड़ना ...शायद एक लम्बी परंपरा भी. इस सन्दर्भ में गंभीर होकर कार्य करने की जरुरत है !!
आपकी यह कविता साभार अपने ब्लॉग पर दे रही हूँ.
इतने नवीन विषय पर आपकी कविता पढकर अत्यंत हर्ष हुआ, भविष्य में आपसे और नवीन विषयों पर रचनाओं कि अपेक्षा रहेगी.
जी उदास हूँ.
सही इशारा किया है आपने.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
Pyari si gauraiya...
आपने इतनी सरलता से इतनी कठिन बात कह दी !!! सवाल बहत सोचनीय है ...स्वागत .
सर, गौरैया पर बहुत ही सुंदर रचना की है..... बधाई सर जी ......
क्या हमारे बच्चे
इस प्यारी व नन्हीं-सी चिड़िया को
देखने से वंचित रह जायेंगे!
न जाने कितने ही सवाल
दिमाग में उमड़ने लगे।
...Apki chinta vajib hai.
इस पोस्ट से याद आया कि कायदे से गौरैया देखे भी अरसा बीत गया. पहले हमारे गाँव वाले घर के आंगन में उनका डेरा था, पर जब से गाँव वाले घर को नया रूप दिया, वे गायब ही हो गई. इस कविता में वास्तु स्थिति का सटीक विश्लेषण है.
बाहर देखा
कंक्रीटों का शहर नजर आया
पेड़ों का नामोनिशां तक नहीं
अब तो लोग घरों में
आँगन भी नहीं बनवाते
एक कमरे के फ्लैट में
चार प्राणी ठुंसे पड़े हैं।
..यह कविता सच का आइना है. आज के दौर में बेहद प्रासंगिक रचना..बधाई.
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