शाम का समय था। लोगों का झुण्ड तेजी से अपने-अपने गंतव्य की तरफ लौट रहा था। वहीं सड़क किनारे एक अधनंगी युवती बैठी हुई थी। कभी वह बुदबुदाती तो कभी छाती को अपने दोनों हाथों से पीटती। उसके आसपास से जितने लोग गुजरते, उतनी बातें करते। कोई कहता- बेचारी सताई हुई है। कोई उसे पागल बताता। तभी उसके बगल से मनचलों का एक झुण्ड निकला और आगे जाकर इशारों ही इशारों में उसको लेकर बातें करने लगा।
अगली सुबह सड़क के किनारे उस युवती की खून से लथपथ नंगी देह पड़ी हुई थी। लोग गुजरते हुए कहते जाते हैं- ”च्...च्...च्.. बेचारी पगली!”
कोई नहीं सोचता कि कौन है वास्तव में पागल- हवस की शिकार वह बेबस युवती या वे वहशी, जिन्होंने उस अभागी का बलात्कार करके समूची मानवता को शर्मसार कर दिया था ?
18 टिप्पणियां:
बड़ी सारगर्भित लघु-कथा है. सीधे दिल पर चोट करती है.
कोई नहीं सोचता कि कौन है वास्तव में पागल- हवस की शिकार वह अधनंगी लड़की या वे जिन्होंने उसे नंगा करके मानवता को नंगा कर दिया?....कचोटती हैं ये पंक्तियां. यही तो लघुकथा की जान है.
बहुत बढ़िया लघुकथा। सचमुच मानवता का का तिरस्कार हो रहा है और फिर बलात्कार और अंत में हत्या। अच्छी कहानी के लिए शुभकामनाएँ
Badi marmsparshi laghu-katha hai..!!
उसके बगल से जितने लोग गुजरते, उतनी बातें करते। कोई कहता बेचारी सताई हुयी है तो कोई उसे पागल बताता.....आज के दौर में एक सार्थक लघु कथा. के.के. जी को बधाई !!
समाज की मानसिकता पर चोट करती अद्भुत लघुकथा.
लाजवाब है यह प्रस्तुति.
कम शब्दों में यह लघुकथा उस सच को बयां करती है, जिसे जानते हुए भी तथाकथित सभ्य समाज नजरें चुराता है. कृष्ण कुमार जी की लेखनी की धार नित तेज होती जा रही है...साधुवाद स्वीकारें !!
इस लघु-कथा को पढ़कर मैं इतना भाव-विव्हल हो गया हूँ कि शब्दों में बयां नहीं कर सकता.
इस लघुकथा के मर्म को समझते हुए यदि कोई एक व्यक्ति भी वास्तव में आपने में परिवर्तन ला सका तो इसकी सार्थकता होगी.
कृष्ण कुमार जी! आपकी रचनाधर्मिता पर देहरादून से प्रकाशित ''नवोदित स्वर'' के 19 january अंक में प्रकाशित लेख "चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है " पढ़कर अभिभूत हूँ....अल्पायु में ही पत्र-पत्रिकाएं आप पर लेख प्रकाशित कर रहें हैं, गौरव का विषय है !! आपकी हर रचना सोचने को विवश कर देती है.
रश्मि जी ! धन्यवाद.
प्रोत्साहन रूपी टिप्पणियों के लिए आप सभी का आभार !!
60 वें गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनायें !!
60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
आपकी यह सारगर्भित लघु-कथा पढ कर मुझे अपना एक शेर याद आ रहा है:
"आदमी व्यवहार में आदिम ही दिखता है अभी
यूँ तो दुनिया सभी आदिम प्रथाओं के ख़िलाफ़ "
मुठ्ठियाँ भिंच गईं पढकर.
दहलाने वाली प्रस्तुति.
लेकिन दरिन्दे दरिन्दे होते हैं, उन्हें पागल क्यों कहा जाए? पागल तो लाचार होता है. लेकिन दरिन्दा लाचार नहीं होता.इस लिए मेरा विनम्र सुझाव है कि शीर्षक पर फिर सोचें.
द्विजेन्द्र द्विज
www.dwijendradwij.blogspot.com
Nice Blog..keep it up.
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Bhaiya,
You really touch many hearts with your pen. Above incident can be seen anywhere in everyday's life but who cares to see the details and explain the truth to unsocial society.
Regards
Sudhir
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