डर लगने लगा है
पुरस्कारों को लेने से
अब वे योग्यता के नहीं
जोड़-तोड़ के
मानदण्ड बन गए हैं
जितनी ऊपर पहुँच
उतने बड़े पुरस्कार
हर पुरस्कार के साथ
ही जुड़ जाता है
रूठने और मनाने का खेल
जाति, धर्म, क्षेत्र
पुरस्कारों को लेने से
अब वे योग्यता के नहीं
जोड़-तोड़ के
मानदण्ड बन गए हैं
जितनी ऊपर पहुँच
उतने बड़े पुरस्कार
हर पुरस्कार के साथ
ही जुड़ जाता है
रूठने और मनाने का खेल
जाति, धर्म, क्षेत्र
और दल के खाँचे में
बाँटने का खेल
फ़िर भी बात न बने तो
अस्वीकारने और लौटाने का खेल
समाज सेवा के नाम पर
चाटुकारिता को बँटते पुरस्कार
संस्कृति के नाम पर
नौटंकी और सेक्स को बँटते पुरस्कार
साहित्य के नाम पर
बाँटने का खेल
फ़िर भी बात न बने तो
अस्वीकारने और लौटाने का खेल
समाज सेवा के नाम पर
चाटुकारिता को बँटते पुरस्कार
संस्कृति के नाम पर
नौटंकी और सेक्स को बँटते पुरस्कार
साहित्य के नाम पर
छपाऊ नामों को बँटते पुरस्कार
फिर भी समझ न आये तो
नेताओं और अभिनेताओं को
फिर भी समझ न आये तो
नेताओं और अभिनेताओं को
बँटते पुरस्कार
मानो पुरस्कार नहीं
रेवड़ी बँट रही हो।
मानो पुरस्कार नहीं
रेवड़ी बँट रही हो।
***कृष्ण कुमार यादव***
22 टिप्पणियां:
मानो पुरस्कार नहीं
रेवड़ी बँट रही हो
Bahut sahi kaha apne.
समाज सेवा के नाम पर
चाटुकारिता को बँटते पुरस्कार
संस्कृति के नाम पर
नौटंकी और सेक्स को बँटते पुरस्कार
साहित्य के नाम पर
छपाऊ नामों को बँटते पुरस्कार
फिर भी समझ न आये तो
नेताओं और अभिनेताओं को बँटते पुरस्कार....Ajkal ke puraskaron ka bada satik vishleshan.In puraskaron ke chalte hi samaj men yogyta ko lekar saval uthne lage hain !!!
कथित पुरस्कारों का कच्चा चिट्ठा खोल कर आपने नये कवियों पर उपकार किया है मेरे ब्लाग के लिये अपनी समकालीन कविताएं भेजें तो खूशी होगी।
bade pate ki baat par kalam chalayi aapne,puraskaaron aur yogyata ke bhidant ka kissa bada hi purana aur ajib hai,shayad ye bhidant hi aksaraha naye vichaaron ke prasfootan ka marg prashast karti hai.
ALOK SINGH "SAHIL"
हकीकत बयां कर दी आपने तो । वास्तव में पुरस्कारों के प्रति अब पहले सा सम्मोहन नहीं रहा सच में रेवडी ही बन गयें हैं ये।वो भी कहावत वाली अन्धा बांटे रेवडी फिर-फिर अपनेंहू देय।
Puraskaron par kada vyangya..nice poem.
सही कहा पुरस्कार अब रेवडी की तरह बँट रहे हैं । रेवडी तो फिर भी सबको मिल जाती है .....
यह कविता पढ़कर दिल खुश हो गया. कविता को सौन्दर्य के साथ-साथ उसके दुरावों पर भी चोट करनी चाहिए. आप इसमें सफल दिखते हैं.
Sahaj shabdon me gehri baat. word-verification hata len to tippani karne me aasani hogi.
......बहुत सही हकीकत कहा आपने। पुरस्कारों की उपादेयता पर आपकी यह बड़ी सारगर्भित,संयत और गंभीर कविता है। हर साहित्य-पारखी और नये कवियों को चित्त देकर इसे पढ़ना चाहिये।
Thank u friends for ur inspiring comments.
समाज-साहित्य के मठाधीशों को उनका असली चेहरा आपने दिखा ही दिया. कुछ भी हो आपकी कविताओं में सदैव एक अपील होती है, इस अदा का मैं कायल हूँ.
आपकी अन्य रचनाओं का बेसब्री से इंतजार है...
Celebrate Chocolate-Pizza day today and enjoy urself with a lot of fun with tadka of beautiful poems.
@ Rashmi Singh, Chocolate-Pizza day का नाम sunate ही मुँह में पानी आ गया. काश ऐसा होता कि विचार दिमाग में आते और मुंह में सीधे Chocolate-Pizza खाने को मिल जाता.
sir ji ,
apka lekh bahut hi acha hai aur haqiqat ko bayan karte hue hai ..
aapko bahut badhai ..
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
हर पुरस्कार के साथ
ही जुड़ जाता है
रूठने और मनाने का खेल
जाति, धर्म, क्षेत्र
और दल के खाँचे में
बाँटने का खेल
फ़िर भी बात न बने तो
अस्वीकारने और लौटाने का खेल
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बड़ी गहराई में उतरकर कही गई शाश्वत बात !!!
Adbhut....Happy X-mas.
WAITING FOR NEW POSTS...!!
संता क्लाजा आपकी सभी इच्छाओं की पूर्ति करे...
धन्यवाद मित्रों, आप सभी को 'बड़ा दिन' और 'नव वर्ष की' ढेरों शुभकामनायें.
sahi farmaya janab aapne...andha baante revari apno-apno ko de. puraskaron ki rajneti ka aadim sach yeh hai ki aiklavya ki pratibha ko ubharne nahi diya gaya...jnapeeth puraskar kisi baby haldhar ke liye nahi hai...sub-altern history bhi isi ko antar-vyathaon se jhoojh rahi hai...yahi haal D.Lit ki upaadhi ka hai...netaon-abhinetao ko yah sahaj he uplabh ho jaati hain
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