मैं डरता हूँ
अपना बचपना खोने से
सहेज कर रखा है उसे
दिल की गहराइयों में
जब भी कभी व्यवस्था
भर देती है आक्रोश मुझमें
जब भी कभी सच्चाई
कड़वी लगती है मुझे
जब भी कभी नहीं उबर पता
अपने अंतर्द्वंदों से
जब भी कभी घेर लेती है उदासी
तो फिर लौट आता हूँ
अपने बचपन की तरफ
और पाता हूँ एक मासूम
और निश्छल सा चेहरा
सारे दुःख -दर्दों से परे
अपनी ही धुन में सपने बुनता।
***कृष्ण कुमार यादव***
अपना बचपना खोने से
सहेज कर रखा है उसे
दिल की गहराइयों में
जब भी कभी व्यवस्था
भर देती है आक्रोश मुझमें
जब भी कभी सच्चाई
कड़वी लगती है मुझे
जब भी कभी नहीं उबर पता
अपने अंतर्द्वंदों से
जब भी कभी घेर लेती है उदासी
तो फिर लौट आता हूँ
अपने बचपन की तरफ
और पाता हूँ एक मासूम
और निश्छल सा चेहरा
सारे दुःख -दर्दों से परे
अपनी ही धुन में सपने बुनता।
***कृष्ण कुमार यादव***
6 टिप्पणियां:
कृष्ण जी बहुत खूब लिखा है आप ने बधाई ..
बचपन को आपने सहेज कर रखा है, बधाई.
जब भी कभी घेर लेती है उदासी
तो फिर लौट आता हूँ
अपने बचपन की तरफ
शायद यही हर किसी कि दास्ताँ है !!
A nice Poem on Childhood..Congts.
very nice and heart touching, god bless you
जब भी कभी सच्चाई
कड़वी लगती है मुझे
जब भी कभी नहीं उबर पता
अपने अंतर्द्वंदों से
जब भी कभी घेर लेती है उदासी
तो फिर लौट आता हूँ
अपने बचपन की तरफ
........sahaj bhav, sundar prastuti.
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