नस्लवाद के खिलाफ जंग के मसीहा और
दक्षिण अफ्रीका के महान अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला नहीं रहे। मंडेला ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिनसे आज
की पीढ़ी भी उतनी ही शिद्दत से प्रेरणा पाती थी। 27 साल से अधिक अवधि तक जेल में रहे
दक्षिण अफ्रीका के इस नेता ने दुनिया को नैतिक नेतृत्व देने में अत्यंत महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई। तभी तो सारी दुनिया उनमें गाँधी जी का अक्स ढूंढती थी। आखिर हो भी क्यों न, मंडेला महात्मा
गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों, विशेषकर वकालत के दिनों में दक्षिण
अफ्रीका के उनके आंदोलनों से प्रेरित थे। महात्मा गांधी की ही भांति नेल्सन मंडेला
भी युद्ध के खिलाफ थे। वह राष्ट्रीय सहमति तथा सुलह के पक्षधर थे। मंडेला ने भी
हिंसा पर आधारित रंगभेदी शासन के खिलाफ अहिंसा के माध्यम से संघर्ष किया। दक्षिण
अफ्रीका में रंगभेद को खत्म करने में अग्रणी भूमिका निभाकर दुनिया भर में अन्याय
के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन चुके नेल्सन मंडेला ने न सिर्फ पूरे अफ्रीकी
महाद्वीप को, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों को भी
स्वतंत्रता की भावना से ओत-प्रोत किया था। अपनी जिंदगी के 27 साल जेल की
अंधेरी कोठरी में काटने वाले मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे,
जिससे
देश पर अब तक चले आ रहे अल्पसंख्यक श्वेतों के अश्वेत विरोधी शासन का अंत हुआ और
एक बहु-नस्ली लोकतंत्र का उद्भव हुआ।
दक्षिण अफ्रीका
में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के
खिलाफ गांधी की लड़ाई के समान समझा जाता है। मंडेला ने कहा था, गांधी
का सबसे ज्यादा आदर अहिंसा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए किया जाता है और
कांग्रेस (अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस) का आंदोलन गांधीवादी दर्शन से बहुत ज्यादा
प्रभावित था, इसी दर्शन ने 1952 के अवज्ञा
अभियान के दौरान लाखों दक्षिण अफ्रीकियों को एकजुट करने में मदद की। इस अभियान ने
ही एएनसी को लाखों जनता से जुड़े एक संगठन के तौर पर स्थापित किया। 'सत्य और अहिंसा' के लिए गांधी की
हमेशा प्रशंसा करने वाले मंडेला ने 1993 में दक्षिण अफ्रीका में गांधी स्मारक
का अनावरण करते हुए कहा था, गांधी हमारे इतिहास का अभिन्न हिस्सा
हैं, क्योंकि उन्होंने यहीं सबसे पहले सत्य के साथ प्रयोग किया, यहीं
उन्होंने न्याय के लिए अपनी दृढ़ता जताई, यहीं उन्होंने एक दर्शन एवं संघर्ष के
तरीके के रूप में सत्याग्रह का विकास किया।
नेल्सन मंडेला
का जन्म 1918 में केप ऑफ साउथ अफ्रीका के पूर्वी हिस्से के
एक छोटे से गांव के थेंबू समुदाय में हुआ था। उन्हें अक्सर उनके कबीले 'मदीबा'
के
नाम से बुलाया जाता था। मंडेला का मूल नाम रोलिहलाहला दलिभुंगा था। उनके स्कूल में
एक शिक्षक ने उन्हें उनका अंग्रेजी नाम नेल्सन दिया। मंडेला नौ साल के थे जब उनके
पिता का निधन हो गया। उनके पिता थेंबू के शाही परिवार के सलाहकार थे। 1941
में 23 साल की उम्र में जब उनकी शादी की जा रही थी, तब मंडेला सब
कुछ छोड़ कर जोहानिसबर्ग भाग गए। दो साल बाद वह अफ्रीकानेर विटवाटरस्रांड
विश्वविद्यालय में वकालत की पढ़ाई करने लगे, जहां उनकी
मुलाकात सभी नस्लों और पृष्टभूमि के लोगों से हुई। इस दौरान वह उदारवादी, कट्टरपंथी
और अफ्रीकी विचारधाराओं के संपर्क में आए, साथ ही उन्होंने नस्लभेद और भेदभाव को
महसूस किया, जिससे राजनीति के प्रति उनमें जुनून पैदा हुआ।
1943 में मंडेला अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) में शामिल हुए और बाद
में एएनसी यूथ लीग की सह-स्थापना की। 1944 में एवेलिन मैसे के साथ उनकी पहली
शादी हुई, जिनसे उनके चार बच्चे हुए। 1958 में दोनों का
तलाक हो गया। इसके बाद मंडेला ने वकालत शुरू कर दी और 1952 में ओलिवर
टांबो के साथ मिलकर देश के पहले अश्वेत वकालत संस्था की शुरुआत की। 1956
में 155 अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मंडेला पर देशद्रोह का मामला चला, लेकिन
चार साल की सुनवाई के बाद उनके खिलाफ लगे आरोप हटा लिए गए। 1958
में मंडेला ने विनी मादीकीजेला से शादी की, जिन्होंने बाद
में अपने पति को कैद से रिहा कराने के लिए चलाए गए अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई।
1960 में एएनसी को गैरकानूनी घोषित कर दिया
गया और मंडेला भूमिगत हो गए। 1960 में रंगभेदी शासन के साथ तनाव बहुत
बढ़ गया, जब शारपेविले नरसंहार में पुलिस ने 69 अश्वेतों की
गोली मारकर हत्या कर दी। इससे अब तक चले आ रहे शांतिपूर्ण प्रतिरोध का अंत हो गया
और एएनसी के तत्कालीन उपाध्यक्ष मंडेला ने आर्थिक कार्रवाई शुरू कर दी। सन् 1964
में रंगभेदी शासन का तख्ता पलटने की तैयारियां करने के आरोप में उन्हें आजीवन
कारावास की सज़ा दी गई। उन्हें रोबेन द्वीप पर स्थित एक जेल में बंद कर दिया गया।
मंडेला रोबेन द्वीप पर 18 साल कैद रहे और 1982
में उन्हें यहां से पोल्समूर जेल में स्थानांतरित किया गया। नेल्सन मंडेला ने अदालत के सामने बोलते हुए कहा
था कि वह दक्षिणी अफ्रीका में एक ऐसे लोकतांत्रिक समाज का निर्माण करना चाहते हैं
जिसमें सभी जातियों और नस्लों के लोग शांति और सद्भाव से रह सकें। पर जेल उन्हें न
तोड़ सकी, न ही उनमें कड़वाहट भर सकी। उन्होंने कभी भी आशा का दमन नहीं छोड़ा।
यहाँ तक कि कानून की शिक्षा उन्होंने जेल में ही पाई थी। कारावास के दिनों में
उन्होंने एक साथ कई विश्वविद्यालयों से विधिशास्त्र की शिक्षा पाई। अंतत: अपनी
जिंदगी के 27 साल जेल की अंधेरी कोठरी में काटने वाले
मंडेला सन् 1990 में
रिहा हुए। रिहाई पर भारी भीड़ ने उनका स्वागत कर बदलाव की पूर्व भूमिका का
इशारा कर दिया था।
मंडेला की रिहाई पर पूरी दुनिया
की निगाहें टिकी हुई थीं। उन का नाम भारत से लेकर पूरी दुनिया में व्याप्त
हो चुका था। रंगभेदियों की क़ैद से छूटने के बाद मंडेला जब
एक निजी दौरे पर हिंदुस्तान आए थे तो गाँधी जी से जुड़ी जगहों पर जाना उनके लिए
तीर्थयात्रा सा रहा। 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक
सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था। मंडेला पूरी
दुनिया में शांति के दूत बनकर उभरे थे और दिसंबर 1993 में मंडेला और
अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति एफ डब्ल्यू डी क्लार्क को नोबल शांति पुरस्कार भी
दिया गया। इसके अगले वर्ष ही 1994
में मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति चुने गए। सन् 1994 से
1999 तक वह दक्षिणी अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे। नेल्सन मंडेला एक समय पर
गुट-निरपेक्ष आंदोलन के अध्यक्ष भी रहे ।
मंडेला में अंत तक जीजिविषा बनी
रही। उनके जीवन काल में दुनिया के पचास
सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों ने उन्हें अपना मानद सदस्य बनाया हुआ है। दुनिया भर के कई शहरों में बने स्मारक नेल्सन
मंडेला को समर्पित हैं, कई सड़कों और चौराहों, स्टेडियमों और
स्कूलों को उनका नाम दिया गया है। यदि उनके कारावास की सभी अवधियों को जोड़ लिया
जाए तो उनके कारावास की कुल अवधि 31 साल बनती है। आधुनिक युग के किसी भी
राष्ट्रपति ने अपने जीवन-काल में जेलें की इतनी लंबी सज़ा नहीं काटी। यद्यपि उनका
पारिवारिक जीवन बहुत सुखमय नहीं कहा जा सकता। उनकी पहली पत्नी एवेलिन का सन् 2004
में देहांत हो गया। दूसरी पत्नी विन्नी को सन् 1991 में हत्या के
मामले में एक सह-अपराधी के नाते छह साल जेल की सज़ा हुई। उनका अंतिम, तीसरा
विवाह मोज़म्बीक के नेता समोरा माशेल की विधवा ग्रेस माशेल से हुआ था।| उनके
बड़े बेटे मकगाहो की 2005 में एड्स से मृत्यु हो गई। छोटा बेटा
तेम्बेकिले कार-दुर्घटना में मारा गया। सन् 2010 में उनकी
परपोती की मृत्यु भी ऐसे ही हुई थी। मंडेला की तीन बेटियां उनके पीछे रह गई हैं।
नेल्सन मंडेला
पिछले कुछ समय से बहुत बीमार रहते थे। जून माह में उन्हें फेफड़ों में संक्रमण
होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डाक्टरों का कहना था कि यह संक्रामक
रोग उस तपेदिक से ही सीधा जुड़ा हुआ था जो उन्हें केप ऑफ गुड होप के नज़दीक स्थित
रोबेन द्वीप पर 27 वर्ष के कारावास के दौरान हुआ था। एक लम्बे
समय से फेफड़ों के संक्रमण से ग्रस्त मंडेला ने अंतत: 6 दिसंबर,
2013 को
अंतिम सांस ली, पर इसी के साथ छोड़ गए एक दीर्घ परम्परा।
नेल्सन मंडेला ने एक आम आदमी और एक
नेता के तौर पर बेहद सरल और प्रंशसनीय ढंग से यह साबित किया कि घृणा, हिंसा
और नस्लभेद से बाहर निकला जा सकता है। मेल, शांति और न्याय
की मिसाल मंडेला सिर्फ अपनी पीढ़ी के लिए
ही नहीं, बल्कि अब तक की सभी मिसालों में सबसे कद्दावर नेता थे। रंगभेद समाप्त
करने में उन्होंने निजी तौर पर जो भूमिका निभाई, वह अतुलनीय रही।
उनकी बातों से हमें यह सोचना चाहिए कि आजादी अपने आप नहीं मिल जाती, उसे
बचाकर अपने पास रखना पड़ता है। उनका
चमत्कारी व्यकित्व, हास्य विनोद क्षमता और अपने साथ हुए
दुर्व्यवहार को लेकर कड़ुवाहट न होना, उनकी अद्भुत जीवन गाथा से उनके असाधारण
वैश्विक अपील का पता चलता है। उन्होंने शांति और स्वतंत्रता की जो झलक दिखाई, सामंजस्य बनाने और संवेदनशीलता से
लोगों के साथ पेश आने की बात कही, यह बातें दुनिया भर में लोगों के लिए
प्रेरणा और उम्मीद का स्रोत बनी रहेंगी। अहिंसा की उनकी राजनीतिक विरासत और उनका
हर तरह के नस्लभेद की निंदा करना आने वाले कई सालों तक दुनिया भर के लोगों को
प्रेरित करता रहेगा।
कृष्ण कुमार यादव @ www.kkyadav.blogspot.com/
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