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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

जब चिट्ठियों ने भरी पहली बार हवाई उड़ान : प्रयाग कुंभ मेले के दौरान 18 फरवरी 1911 को शुरू हुई थी दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा

कुंभ प्रयाग ही नहीं बल्कि संगम की रेती पर लगने वाला विश्व का सबसे बड़ा स्वतः स्फूर्त आयोजन है। कुंभ सिर्फ मानवीय आयोजन नहीं बल्कि एक दैवीय और आध्यात्मिक महोत्सव है। वाकई, मीलों लंबे चौड़े क्षेत्र में कुंभ पर्व के दौरान जो वातावरण व्याप्त रहता है, वह महीनों और वर्षों में ढले स्वभाव को भी सहज ही बदलने में समर्थ है। इस पर बसने वाली तंबुओं की नगरी में देश और दुनिया से अनेक मत-मतांतर, भाषा-भाषी, रीति-रिवाज, संस्कार प्रथा-परंपरा के श्रद्धालु पुण्य और मोक्ष की कामना से जुटते और संगम में डुबकी लगाते हैं। अलग भाषा, अलग संस्कृति और अलग पहनावे के बावजूद कुंभ के समागम में सिमटती भावनाएं एक सी दिखती हैं। अनेकता में एकता का उदाहरण लिए प्रयाग कुंभ वाकई 'लघु भारत' का एहसास कराता है।  

प्रयागराज ने युगों की करवट देखी है, बदलते हुये इतिहास के उत्थान-पतन को देखा है। यहाँ लगने वाला कुंभ राष्ट्र की सामाजिक व सांस्कृतिक गरिमा का यह गवाह रहा है तो राजनैतिक, ऐतिहासिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र भी। जैसे कुम्भ में विभिन्न संस्कृतियों का एकाकार होता है, वैसे ही डाक सेवाओं ने  भी देश-विदेश की तमाम ऐतिहासिक घटनाओं और संस्कृतियों के विस्तार को एक सूत्र में पिरोते हुए एकाकार किया है। डाक सेवाओं के माध्यम से तो आज गंगोत्री और ऋषिकेश का पवित्र  गंगा जल भी देश भर में प्राप्त हो रहा है। पर कम ही लोगों को पता होगा कि दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा भी वर्ष 1911 में कुंभ के दौरान प्रयागराज में आरंभ हुई थी। 


डाक सेवाओं ने पूरी दुनिया में एक लम्बा सफर तय किया है। डाक विभाग देश के सबसे पुराने विभागों में से एक है जो कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह एक ऐसा संगठन है जो न केवल देश के भीतर बल्कि देश की सीमाओं से बाहर अन्य देशों तक पहुँचने में भी हमारी  मदद करता है। भूमंडलीकरण की अवधारणा सबसे पहले दुनिया भर में भेजे जाने वाले पत्रों के माध्यम से ही साकार हुई। भारत में ही प्रयागराज को यह सौभाग्य प्राप्त है कि दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा यहीं से आरम्भ हुई। यह ऐतिहासिक घटना 114 वर्ष पूर्व 18 फरवरी, 1911 को प्रयागराज में हुई थी। संयोगवश उस साल कुंभ का मेला भी लगा था। उस दिन दिन फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पिक्वेट (1888-1974)  ने एक नया इतिहास रचा था। वे अपने हंबर बाइप्लेन में प्रयागराज से नैनी के लिए लगभग 6,500 पत्रों और कार्ड से भरे बैग को अपने साथ लेकर उड़े। विमान था हैवीलैंड एयरक्राफ्ट और इसने दुनिया की पहली सरकारी डाक ढोने का एक नया दौर शुरू किया।

प्रयागराज में उस दिन डाक की उड़ान देखने के लिए लगभग एक लाख लोग इकट्ठे हुए थे जब एक विशेष विमान ने शाम को साढ़े पांच बजे यमुना नदी के किनारों से उड़ान भरी और वह नदी को पार करता हुआ 15 किलोमीटर का सफर तय कर नैनी जंक्शन के नजदीक उतरा जो प्रयागराज के बाहरी इलाके में सेंट्रल जेल के नजदीक था। आयोजन स्थल एक कृषि एवं व्यापार मेला था जो नदी के किनारे लगा था और उसका नाम ‘यूपी एक्जीबिशन’ था। इस प्रदर्शनी में दो उड़ान मशीनों का प्रदर्शन किया गया था। विमान का आयात कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने किया था। इसके कलपुर्जे अलग अलग थे जिन्हें आम लोगों की मौजूदगी में प्रदर्शनी स्थल पर जोड़ा गया। प्रयागराज से नैनी जंक्शन तक का हवाई सफ़र आज से 114 साल पहले मात्र  13 मिनट में पूरा हुआ था। हालांकि यह उड़ान महज छह मील की थी, पर इस घटना को लेकर प्रयागराज में ऐतिहासिक उत्सव सा वातावरण था। ब्रिटिश एवं कालोनियल एयरोप्लेन कंपनी ने जनवरी 1911 में प्रदर्शन के लिए अपना एक विमान भारत भेजा था जो संयोग से तब प्रयागराज आया जब कुम्भ का मेला भी चल रहा था। वह ऐसा दौर था जब जहाज देखना तो दूर लोगों ने उसके बारे में ठीक से सुना भी बहुत कम था। ऐसे में इस ऐतिहासिक मौके पर अपार भीड़ होना स्वाभाविक ही था। इस यात्रा में हेनरी ने इतिहास तो रचा ही पहली बार आसमान से दुनिया के सबसे बडे प्रयाग कुंभ का दर्शन भी किया।


वस्तुत: फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पेक्वेट इलाहाबाद में संयुक्त प्रांत प्रदर्शनी के लिए प्रदर्शन उड़ानें भरने के लिए भारत में थे। वाल्टर विंडहैम (1868-1942), एक ब्रिटिश विमानन अग्रणी, ने हवाई प्रदर्शनों का आयोजन किया। इस कार्यक्रम ने पहली बार भारत में हवाई जहाज उड़ाए। होली ट्रिनिटी चर्च, इलाहाबाद के पादरी रेव. डब्ल्यूईएस हॉलैंड की अपील ने इस कार्यक्रम को प्रेरित किया। उन्होंने एक नए युवा छात्रावास के लिए धन जुटाने में मदद के लिए विंडहैम से अपील की थी। विंडहैम ने हवाई डाक की कल्पना की और पहली बार हवाई मार्ग से कुछ मेल बैग भेजने के लिए डाक अधिकारियों से संपर्क किया जिस पर उस समय के डाक प्रमुख ने अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दी। डाक अधिकारियों ने विंडहैम से रद्दीकरण को डिजाइन करने के लिए कहा। मेल बैग पर ‘पहली हवाई डाक’ और ‘उत्तर प्रदेश प्रदर्शनी, इलाहाबाद’ लिखा था। इस पर एक विमान का भी चित्र प्रकाशित किया गया था। इस पर पारंपरिक काली स्याही की जगह मैजेंटा स्याही का उपयोग किया गया था। आयोजक इसके वजन को लेकर बहुत चिंतित थे, जो आसानी से विमान में ले जाया जा सके। प्रत्येक पत्र के वजन को लेकर भी प्रतिबंध लगाया गया था और सावधानीपूर्वक की गई गणना के बाद सिर्फ 6,500 पत्रों को ले जाने की अनुमति दी गई थी। विमान को अपने गंतव्य तक पहुंचने में 13 मिनट का समय लगा।

 इस पहली हवाई डाक सेवा का विशेष शुल्क छह आना रखा गया था और इससे होने वाली आय को आक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हॉस्टल, इलाहाबाद को दान में दिया गया। इस सेवा के लिए पहले से पत्रों के लिए खास व्यवस्था बनाई गई थी। 18 फरवरी को दोपहर तक इसके लिए पत्रों की बुकिंग की गई। पत्रों की बुकिंग के लिए ऑक्सफोर्ड कैंब्रिज हॉस्टल में ऐसी भीड़ लगी थी कि उसकी हालत मिनी जी.पी.ओ सरीखी हो गई थी। डाक विभाग ने यहाँ तीन-चार कर्मचारी भी तैनात किए थे। चंद रोज में हॉस्टल में हवाई सेवा के लिए 3,000 पत्र पहुँच गए। एक पत्र में तो 25 रूपये का डाक टिकट लगा था। पत्र भेजने वालों में प्रयागराज की कई नामी गिरामी हस्तियाँ तो थी हीं, राजा महाराजे और राजकुमार भी थे।

आज दुनिया भर में संचार के तमाम माध्यम हैं, परंतु पत्रों की जीवंतता का अपना अलग स्थान है। ये पत्र अपने समय का जीवंत दस्तावेज हैं। इन पत्रों में से न जाने कितने तो साहित्य के पन्नों में ढल गए। आज हवाई जहाज के माध्यम से देश-दुनिया में डाक पहुँच रही हैं, परंतु इसका इतिहास कुंभ और प्रयागराज से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। इन पत्रों ने भूमंडलीकरण की अवधारणा को उस दौर में परिभाषित किया, जब विदेश जाना भी एक दु:स्वप्न था। हवाई डाक सेवा ने न सिर्फ पत्रों को पंख लगा दिए, बल्कि लोगों के सपनों को भी उड़ान दी। देश-विदेश के बीच हुए तमाम ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी बातों और पहलुओं को एक-जगह से दूसरी जगह ले जाने में हवाई डाक सेवा का योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

कृष्ण कुमार यादव, पोस्टमास्टर जनरल, उत्तर गुजरात परिक्षेत्र, अहमदाबाद -380004  

ई-मेलः kkyadav.t@gmail.com

 
 
 

बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

सृजन की कसौटी पर हिंदी पत्रिका 'सरस्वती सुमन' का 'आकांक्षा यादव-कृष्ण कुमार यादव युगल अंक'

कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव पर आधारित सरस्वती सुमन का दिसंबर-2024 का अंक 'आकांक्षा-कृष्ण युगल अंक' पाकर हृदय गदगद हो गया। विश्वास ही नहीं होता कि भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव प्रशासनिक अधिकारी अधिक हैं या साहित्यकार। इस तरह का संयोग भी कम ही मिलता है जब दम्पति दोनों ही साहित्यकार हों-राजेंद्र यादव और मन्नू भंडारी, रवीन्द्र कालिया और ममता कालिया आदि कुछ नाम ही याद आते हैं। 


यदि आप दोनों की तुलना की जाए तो भी यह तय कर पाना मुश्किल है कि आप में से पूर्ण समर्पित साहित्यकार कौन है। आपने अपनी रचनाओं में भ्रूण-हत्या,बालिका शिक्षा,महिला,पर्यावरण, रिश्ते, कुरीति जैसे अनेक विषयों पर बेबाकी से लिखा है। कविता के बारे में कृष्ण कुमार कहते हैं -'बदल रही है आज की कविता, वह सिर्फ सौंदर्य नहीं गढ़ती, बल्कि समेटती है अपने में, सामाजिक सरोकारों को भी।' अंडमान के आदिवासियों की भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहते हैं -'चौंकती है हर आहट, खड़े हो जाते हैं हिरनों की तरह कान, कोई आ रहा है उनकी दुनिया में , सभ्यता का जामा पहने'। रिश्तों का अर्थशास्त्र में वह कहते हैं -'दरकते रिश्ते इस तरह के हो गए हैं, जैसे किसी उद्योगपति ने बेच दी हो घाटे वाली कंपनी।'

आकांक्षा यादव कहती हैं-' शब्द की नियति स्थिरता में नहीं, उसकी गति में है और जीवंतता में है, जीवंत होते शब्द रचते हैं इक इतिहास'।

आप दोनों ने बहुत अच्छी कविताएं,अच्छी लघु कथाएं, बहुत अच्छे लेख और कहानियां लिखी हैं। लेखों में बहुत ही अच्छी-अच्छी सारगर्भित जानकारियां दी हैं।आपके परिवार में आपके पिता, आप स्वयं दंपति और आपकी पुत्रियां भी साहित्य के प्रति समर्पित हैं, यह एक शुभ संकेत है। आप दोनों को बहुत-बहुत साधुवाद। आप इसी तरह से सृजन करते रहें।


-डाॅ. गोपाल राजगोपाल
वरिष्ठ आचार्य एवं राजभाषा सम्पर्क अधिकारी
आर.एन.टी.मेडिकल कॉलेज,उदयपुर, राजस्थान
मो.-9414342523
 



पत्रिका - सरस्वती सुमन/ मासिक हिंदी पत्रिका/ प्रधान सम्पादक-डॉ. आनंद सुमन सिंह/ सम्पादक-किशोर श्रीवास्तव/संपर्क -'सारस्वतम', 1-छिब्बर मार्ग, आर्य नगर, देहरादून, उत्तराखंड -248001, मो.-7579029000, ई-मेल :saraswatisuman@rediffmail.com

सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा की युगल रचनाधर्मिता पर केंद्रित 'सरस्वती सुमन' का संग्रहणीय विशेषांक

हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में आदिकाल से ही तमाम साहित्यकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किसी कवि, लेखक या साहित्यकार को अगर ऐसा जीवनसाथी मिल जाए जो खुद भी उसी क्षेत्र से जुड़ा हो तो यह सोने पर सुहागा जैसी बात होती है। एक तरीके से देखा जाए तो ऐसे लेखकों या लेखिकाओं को उनके घर में ही पहला श्रोता, प्रशंसक या आलोचक मिल जाता है। इसी कड़ी में देव भूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के देहरादून से प्रकाशित 'सरस्वती सुमन' मासिक पत्रिका ने हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय युगल जोड़ी आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता पर केंद्रित 80 पेज का शानदार विशेषांक दिसंबर-2024 में प्रकाशित किया है।

 इसमें दोनों की चयनित कविताओं, लघुकथाओं, कहानियों, लेखों को सात खंडों में शामिल किया गया है, वहीं विभिन्न पन्नों पर उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समेटती तस्वीरों के माध्यम से इसे और भी रोचक बनाया गया है। कवर पेज पर इस युगल की खूबसरत तस्वीर पहली ही नज़र में आकृष्ट करती है। अपने प्रकाशन के 23 वर्षों में 'सरस्वती सुमन' पत्रिका ने तमाम विषयों और व्यक्तित्वों पर आधारित विशेषांक प्रकाशित किये हैं, परंतु किसी साहित्यकार दंपति के युगल कृतित्व पर आधारित इस पत्रिका का पहला विशेषांक है। इसके लिए पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. आनंद सुमन सिंह और संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव हार्दिक साधुवाद के पात्र हैं। 'वेद वाणी' और 'मेरी बात' के तहत डॉ. आनंद सुमन सिंह ने साहित्य एवं संस्कृति के सारस्वत अभियान को आगे बढ़ाया है। अपने संपादकीय में डॉ. सिंह ने कृष्ण कुमार और आकांक्षा से अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में परिचय प्रगाढ़ता का भी जिक्र किया है। 


सम्प्रति उत्तर गुजरात परिक्षेत्र, अहमदाबाद के पोस्टमास्टर जनरल पद पर कार्यरत, मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद निवासी श्री कृष्ण कुमार यादव जहाँ भारतीय डाक सेवा के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं, वहीं उनकी जीवनसंगिनी श्रीमती आकांक्षा यादव एक कॉलेज में प्रवक्ता रही हैं। पर सोने पर सुहागा यह कि दोनों ही जन साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भी समान रूप से प्रवृत्त हैं। देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ ही इंटरनेट पर भी इस युगल की रचनाओं के बखूबी दर्शन होते हैं। विभिन्न विधाओं में श्री कृष्ण कुमार यादव की अब तक कुल 7 पुस्तकें प्रकाशित हैं, वहीं श्रीमती आकांक्षा की 4 पुस्तकें प्रकाशित हैं। 

 


 

प्रधान संपादक डॉ. आनंद सुमन सिंह ने इस युगल विशेषांक के संबंध में लिखा है, " यह युगल विगत लगभग 20 वर्षों से सरस्वती सुमन पत्रिका के साथ निरंतर जुड़ा है। इसलिए जब 'युगल विशेषांक' निकालने का विचार बना तो सबसे पहले उन्हीं से शुरुआत की जा रही है। अब तो इस युगल की दोनों पुत्रियाँ-अक्षिता और अपूर्वा भी लेखन क्षेत्र में पूरी निष्ठा के साथ जुटी हैं और अपनी शिक्षा-दीक्षा के साथ-साथ साहित्य सेवा में भी सक्रिय हैं। 'युगल विशेषांक' का उद्देश्य केवल एक साहित्यिक परिवार से साहित्य सेवियों को परिचित करवाना है और उनके लेखन की हर विधा को पाठकों के सम्मुख रखना है। अनुजवत कृष्ण कुमार यादव और उनकी सहधर्मिणी आकांक्षा यादव दोनों ही उच्च कोटि के साहित्यसेवी हैं और उनके विवाह की वर्षगांठ (28 नवंबर, 2024) पर यह अंक साहित्य प्रेमियों के लिए उपयोगी होगा ऐसी हमारी मान्यता है।  


देश-विदेश में तमाम सम्मानों से अलंकृत यादव दंपति पर प्रकाशित यह विशेषांक साहित्य प्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय अंक है। साहित्य समाज का दर्पण है। इस दर्पण में पति-पत्नी के साहित्य को समाज के सामने लाकर 'सरस्वती सुमन' ने एक नया विमर्श भी खोला है। आशा की जानी चाहिये कि अन्य पत्रिकाएँ भी इस तरह के युगल विशेषांक प्रकाशित करेंगी।  निश्चितत: इस तरह के प्रयास न केवल साहित्य में बल्कि दांपत्य जीवन में भी रचनात्मकता को और प्रगाढ़ करते हैं।

समीक्ष्य पत्रिका - सरस्वती सुमन/ मासिक हिंदी पत्रिका/ प्रधान सम्पादक-डॉ. आनंद सुमन सिंह/ सम्पादक-किशोर श्रीवास्तव/संपर्क -'सारस्वतम', 1-छिब्बर मार्ग, आर्य नगर, देहरादून, उत्तराखंड -248001, मो.-7579029000, ई-मेल :saraswatisuman@rediffmail.com

समीक्षक : प्रोफेसर (डॉ.) गीता सिंह, अध्यक्ष-स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, डी.ए.वी  पी.जी कॉलेज, आजमगढ़ (उ.प्र.), मो.-9532225244