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रविवार, 13 अप्रैल 2025

Navodaya Foundation Day (13 April) : नवोदय स्थापना दिवस - हम नव युग की नई भारती, नई आरती...


 हम नव युग की नई भारती, नई आरती

हम स्वराज्य की ऋचा नवल, भारत की नवलय हों

नव सूर्योदय, नव चंद्रोदय, हमी नवोदय हों। 

भारत में 13 अप्रैल, 1986 को दो नवोदय विद्यालयों से आरंभ हुआ यह सफर आज 661 तक पहुँच चुका है। नवोदय विद्यालय एक सरकारी संस्थान होने के बावजूद उत्कृष्ट शिक्षा व बेहतर परीक्षा परिणामों की वजह से आज शीर्ष पर है। 'वसुधैव कुटुंबकम्' एवं 'शिक्षार्थ आइए, सेवार्थ जाइए' की भावना से प्रेरित नवोदय में जाति, संप्रदाय, क्षेत्र से परे सिर्फ राष्ट्रवाद की भावना है। देश भर में नवोदय विद्यालय के 16 लाख से अधिक पुरा विद्यार्थियों का नेटवर्क समाज को नई दिशा देने के लिए तत्पर है। राजनीति, प्रशासन, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, सैन्य सेवाओं से लेकर विभिन्न प्रोफेशनल सेवाओं, बिजनेस और सामाजिक सेवाओं में नवोदयन्स पूरे भारत ही नहीं वरन पूरी दुनिया में पहचान बना रहे हैं। 'हमीं नवोदय हों' की भावना के साथ आज नवोदय एक ब्रांड बन चुका है। 

नवोदय सिर्फ एक विद्यालय नहीं, वह एक सपना है — उन लाखों बच्चों का सपना, जिनकी आँखों में उम्मीदें थीं, पर साधन नहीं। शिक्षा ही वह रोशनी है, जिससे एक नया, सक्षम और समृद्ध भारत गढ़ा जा सकता है। नवोदय ने ग्रामीण भारत के होनहार बच्चों को न केवल उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा दी, बल्कि आत्मविश्वास, संस्कार और देशसेवा की भावना भी दी। यह वह संस्था है जहाँ एक किसान का बेटा वैज्ञानिक बनता है, एक मजदूर की बेटी डॉक्टर बनती है, और जहाँ से निकलकर छात्र न केवल अपनी, बल्कि पूरे परिवार और समाज की तक़दीर बदलते हैं। नवोदय ने हमें सिखाया कि सपने सिर्फ देखे नहीं जाते, उन्हें जिया भी जाता है — संघर्ष, अनुशासन और समर्पण के साथ। मुझे गर्व है कि मैं नवोदय का हिस्सा रहा हूँ और मुझे पूरा विश्वास है कि आज नवोदय के पूर्व छात्र देश-विदेश में अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं।

नवोदय विद्यालय की स्थापना का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी जी को जाता है। 1984 में राजीव गांधी जी प्रधानमंत्री बने और 1985 में उन्होंने इस देश के ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभाशाली बच्चों को एक उच्च कोटि की शिक्षा मिल सके इस इरादे से नवोदय विद्यालय की नींव रखी। वे हमेशा एक ऐसे विजनरी प्रधानमंत्री के रूप में याद किये जायेंगे, जिन्होंने इस देश को समर्पित शिक्षा का उत्कृष्ट मॉडल नवोदय विद्यालय दिया। ग्रामीण क्षेत्रों की तमाम प्रतिभाओं को इन नवोदय विद्यालय में न सिर्फ निःशुल्क शिक्षा दी गई, बल्कि हॉस्टल से लेकर रोजमर्रा तक की चीजें निःशुल्क थीं। बस एक ध्येय था कि नवोदय में पढ़े ये बच्चे एक दिन अपनी प्रतिभा से समाज और राष्ट्र को ऊँचाइयों पर ले जाएँगे और समाज ने उन पर जो खर्च किया है, उसका अवदान देंगे। आज भी नवोदय विद्यालय अपनी उसी गरिमा के साथ संचालित हैं। देश-दुनिया में नवोदय से पढ़कर निकले लाखों विद्यार्थी आज समाज व राष्ट्र को नया मुकाम दे रहे हैं। अधिकतर ग्रामीण पृष्ठभूमि के ये विद्यार्थी आज जिन ऊँचाइयों पर हैं, उसका श्रेय नवोदय की नव उदय की उस भावना को जाता है, जहाँ जात-पात, धर्म, अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण जैसे तमाम विभेद भूलकर सब सिर्फ एक सकारात्मक सोच के साथ नए पथ पर अग्रसर होते हैं। 

जवाहर नवोदय विद्यालयों की स्थापना-

सरकार की नीति के अनुसार, देश के प्रत्येक जिले में एक जवाहर नवोदय विद्यालय स्थापित किया जाना है। तद्नुसार, वर्ष 2016-17 के दौरान देश के विभिन्न जिलों में 62 नए नवोदय विद्यालय स्वीकृत किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, 10 जवाहर नवोदय विद्यालय अनुसूचित जाति जनसंख्या बहुल एवं 10 जवाहर नवोदय विद्यालय अनुसूचित जनजाति जनसंख्या बहुल क्षेत्रों के लिए स्वीकृत किए गए हैं। इसके अतिरिक्त 03 विशेष जवाहर नवोदय विद्यालय, सेनापति-II (मणिपुर), उखरुल-II (मणिपुर) तथा  रतलाम-II (मध्य प्रदेश) में स्वीकृत किए गए हैं। इस प्रकार कुल स्वीकृत जवाहर नवोदय विद्यालयों की संख्या 661 है। प्रत्येक विद्यालय के लिए कक्षाओं, शयन कक्षों, कर्मचारी आवासों, भोजन-कक्ष तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं जैसे खेल के मैदान, कार्यशालाओं, पुस्तकालय एवं प्रयोगशालाओं इत्यादि के लिए पर्याप्त भवनों से युक्त सम्पूर्ण परिसर की व्यवस्था है। नए नवोदय विद्यालयों को खोलने का निर्णय राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर आधारित होता है कि वह विद्यालय के लिए लगभग 30 एकड़ भूमि (प्रत्येक मामले के आधार पर छूट सहित) निःशुल्क उपलब्ध कराने के साथ-साथ, विद्यालय को तब तक चलाने के लिए उपयुक्त अस्थायी भवन का प्रबंध करेगी जब तक कि विद्यालय के स्थायी भवन का निर्माण पूरा नहीं हो जाता।

नवोदय विद्यालय का विजन : मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली बच्चों को उनके परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना, गुणात्मक आधुनिक शिक्षा प्रदान करना, जिसमें सामाजिक मूल्यों, पर्यावरण के प्रति जागरूकता, साहसिक कार्यकलाप और शारीरिक शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण घटकों का समावेश हो।



Vision of Navodaya Vidyalaya : To provide good quality modern education-including a strong component of culture, inculcation of values, awareness of the environment, adventure activities and physical education- to the talented children predominantly from the rural areas without regard to their family's socio-economic conditions.  

Navodaya Vidyalayas are affiliated to CBSE and offer free education to talented children from Class-VI to XII. (At least 75% of the seats in a district are filled by candidates provisionally selected from rural areas of the district. Minimum One third of the total seats are filled by girls.) Each Navodaya Vidyalaya is a co-educational residential institution providing free boarding and lodging, free school uniforms, text books, stationery, and to and fro rail and bus fare to students. However, a nominal fee @ Rs. 600/- per month is charged from students of Classes- IX to XII as Vidyalaya Vikas Nidhi. The students belonging to SC/ST categories, girls and children of the families Below Poverty Line (BPL) are exempted from payment of this fee. VVN is collected @ Rs. 1500/- per student per month from the students whose parents are Govt. Employees.

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यादों की वो गलियाँ आज भी महकती हैं...

कभी मेस की लाइन में खड़ी हँसी,

कभी हॉस्टल की छत पर साझा किए ख्वाब,

कभी टीचर्स की डाँट में भी छुपा अपनापन —

नवोदय ने हमें सिर्फ पढ़ाया नहीं,

बल्कि जीना सिखाया, रिश्ते निभाना सिखाया...!!


वक़्त भले ही आगे बढ़ गया हो,

पर वो दिन, वो दोस्त, वो पल आज भी दिल के सबसे करीब हैं....


तो आइए, फिर से जी लें वो लम्हे,

फिर से बाँट लें वो मुस्कानें,

और फिर से कहें — "हमीं नवोदय हों !"

नवोदयी भावना एक ऐसा अनमोल रिश्ता है, जो हर नवोदयन के दिल में खास जगह बनाए हुए है। ये सिर्फ एक समूह नहीं, बल्कि एक ऐसा अनूठा परिवार है जिसमें अलग-अलग राज्यों या जिलों के नवोदय विद्यालय भले ही हों, लेकिन जज़्बा, अपनापन और यादों की मिठास सबमें एक जैसी है।










!! नवोदय विद्यालय परिवार के सभी साथियों को ‘नवोदय स्थापना दिवस’ की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

जब चिट्ठियों ने भरी पहली बार हवाई उड़ान : प्रयाग कुंभ मेले के दौरान 18 फरवरी 1911 को शुरू हुई थी दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा

कुंभ प्रयाग ही नहीं बल्कि संगम की रेती पर लगने वाला विश्व का सबसे बड़ा स्वतः स्फूर्त आयोजन है। कुंभ सिर्फ मानवीय आयोजन नहीं बल्कि एक दैवीय और आध्यात्मिक महोत्सव है। वाकई, मीलों लंबे चौड़े क्षेत्र में कुंभ पर्व के दौरान जो वातावरण व्याप्त रहता है, वह महीनों और वर्षों में ढले स्वभाव को भी सहज ही बदलने में समर्थ है। इस पर बसने वाली तंबुओं की नगरी में देश और दुनिया से अनेक मत-मतांतर, भाषा-भाषी, रीति-रिवाज, संस्कार प्रथा-परंपरा के श्रद्धालु पुण्य और मोक्ष की कामना से जुटते और संगम में डुबकी लगाते हैं। अलग भाषा, अलग संस्कृति और अलग पहनावे के बावजूद कुंभ के समागम में सिमटती भावनाएं एक सी दिखती हैं। अनेकता में एकता का उदाहरण लिए प्रयाग कुंभ वाकई 'लघु भारत' का एहसास कराता है।  

प्रयागराज ने युगों की करवट देखी है, बदलते हुये इतिहास के उत्थान-पतन को देखा है। यहाँ लगने वाला कुंभ राष्ट्र की सामाजिक व सांस्कृतिक गरिमा का यह गवाह रहा है तो राजनैतिक, ऐतिहासिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र भी। जैसे कुम्भ में विभिन्न संस्कृतियों का एकाकार होता है, वैसे ही डाक सेवाओं ने  भी देश-विदेश की तमाम ऐतिहासिक घटनाओं और संस्कृतियों के विस्तार को एक सूत्र में पिरोते हुए एकाकार किया है। डाक सेवाओं के माध्यम से तो आज गंगोत्री और ऋषिकेश का पवित्र  गंगा जल भी देश भर में प्राप्त हो रहा है। पर कम ही लोगों को पता होगा कि दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा भी वर्ष 1911 में कुंभ के दौरान प्रयागराज में आरंभ हुई थी। 


डाक सेवाओं ने पूरी दुनिया में एक लम्बा सफर तय किया है। डाक विभाग देश के सबसे पुराने विभागों में से एक है जो कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह एक ऐसा संगठन है जो न केवल देश के भीतर बल्कि देश की सीमाओं से बाहर अन्य देशों तक पहुँचने में भी हमारी  मदद करता है। भूमंडलीकरण की अवधारणा सबसे पहले दुनिया भर में भेजे जाने वाले पत्रों के माध्यम से ही साकार हुई। भारत में ही प्रयागराज को यह सौभाग्य प्राप्त है कि दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा यहीं से आरम्भ हुई। यह ऐतिहासिक घटना 114 वर्ष पूर्व 18 फरवरी, 1911 को प्रयागराज में हुई थी। संयोगवश उस साल कुंभ का मेला भी लगा था। उस दिन दिन फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पिक्वेट (1888-1974)  ने एक नया इतिहास रचा था। वे अपने हंबर बाइप्लेन में प्रयागराज से नैनी के लिए लगभग 6,500 पत्रों और कार्ड से भरे बैग को अपने साथ लेकर उड़े। विमान था हैवीलैंड एयरक्राफ्ट और इसने दुनिया की पहली सरकारी डाक ढोने का एक नया दौर शुरू किया।

प्रयागराज में उस दिन डाक की उड़ान देखने के लिए लगभग एक लाख लोग इकट्ठे हुए थे जब एक विशेष विमान ने शाम को साढ़े पांच बजे यमुना नदी के किनारों से उड़ान भरी और वह नदी को पार करता हुआ 15 किलोमीटर का सफर तय कर नैनी जंक्शन के नजदीक उतरा जो प्रयागराज के बाहरी इलाके में सेंट्रल जेल के नजदीक था। आयोजन स्थल एक कृषि एवं व्यापार मेला था जो नदी के किनारे लगा था और उसका नाम ‘यूपी एक्जीबिशन’ था। इस प्रदर्शनी में दो उड़ान मशीनों का प्रदर्शन किया गया था। विमान का आयात कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने किया था। इसके कलपुर्जे अलग अलग थे जिन्हें आम लोगों की मौजूदगी में प्रदर्शनी स्थल पर जोड़ा गया। प्रयागराज से नैनी जंक्शन तक का हवाई सफ़र आज से 114 साल पहले मात्र  13 मिनट में पूरा हुआ था। हालांकि यह उड़ान महज छह मील की थी, पर इस घटना को लेकर प्रयागराज में ऐतिहासिक उत्सव सा वातावरण था। ब्रिटिश एवं कालोनियल एयरोप्लेन कंपनी ने जनवरी 1911 में प्रदर्शन के लिए अपना एक विमान भारत भेजा था जो संयोग से तब प्रयागराज आया जब कुम्भ का मेला भी चल रहा था। वह ऐसा दौर था जब जहाज देखना तो दूर लोगों ने उसके बारे में ठीक से सुना भी बहुत कम था। ऐसे में इस ऐतिहासिक मौके पर अपार भीड़ होना स्वाभाविक ही था। इस यात्रा में हेनरी ने इतिहास तो रचा ही पहली बार आसमान से दुनिया के सबसे बडे प्रयाग कुंभ का दर्शन भी किया।


वस्तुत: फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पेक्वेट इलाहाबाद में संयुक्त प्रांत प्रदर्शनी के लिए प्रदर्शन उड़ानें भरने के लिए भारत में थे। वाल्टर विंडहैम (1868-1942), एक ब्रिटिश विमानन अग्रणी, ने हवाई प्रदर्शनों का आयोजन किया। इस कार्यक्रम ने पहली बार भारत में हवाई जहाज उड़ाए। होली ट्रिनिटी चर्च, इलाहाबाद के पादरी रेव. डब्ल्यूईएस हॉलैंड की अपील ने इस कार्यक्रम को प्रेरित किया। उन्होंने एक नए युवा छात्रावास के लिए धन जुटाने में मदद के लिए विंडहैम से अपील की थी। विंडहैम ने हवाई डाक की कल्पना की और पहली बार हवाई मार्ग से कुछ मेल बैग भेजने के लिए डाक अधिकारियों से संपर्क किया जिस पर उस समय के डाक प्रमुख ने अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दी। डाक अधिकारियों ने विंडहैम से रद्दीकरण को डिजाइन करने के लिए कहा। मेल बैग पर ‘पहली हवाई डाक’ और ‘उत्तर प्रदेश प्रदर्शनी, इलाहाबाद’ लिखा था। इस पर एक विमान का भी चित्र प्रकाशित किया गया था। इस पर पारंपरिक काली स्याही की जगह मैजेंटा स्याही का उपयोग किया गया था। आयोजक इसके वजन को लेकर बहुत चिंतित थे, जो आसानी से विमान में ले जाया जा सके। प्रत्येक पत्र के वजन को लेकर भी प्रतिबंध लगाया गया था और सावधानीपूर्वक की गई गणना के बाद सिर्फ 6,500 पत्रों को ले जाने की अनुमति दी गई थी। विमान को अपने गंतव्य तक पहुंचने में 13 मिनट का समय लगा।

 इस पहली हवाई डाक सेवा का विशेष शुल्क छह आना रखा गया था और इससे होने वाली आय को आक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हॉस्टल, इलाहाबाद को दान में दिया गया। इस सेवा के लिए पहले से पत्रों के लिए खास व्यवस्था बनाई गई थी। 18 फरवरी को दोपहर तक इसके लिए पत्रों की बुकिंग की गई। पत्रों की बुकिंग के लिए ऑक्सफोर्ड कैंब्रिज हॉस्टल में ऐसी भीड़ लगी थी कि उसकी हालत मिनी जी.पी.ओ सरीखी हो गई थी। डाक विभाग ने यहाँ तीन-चार कर्मचारी भी तैनात किए थे। चंद रोज में हॉस्टल में हवाई सेवा के लिए 3,000 पत्र पहुँच गए। एक पत्र में तो 25 रूपये का डाक टिकट लगा था। पत्र भेजने वालों में प्रयागराज की कई नामी गिरामी हस्तियाँ तो थी हीं, राजा महाराजे और राजकुमार भी थे।

आज दुनिया भर में संचार के तमाम माध्यम हैं, परंतु पत्रों की जीवंतता का अपना अलग स्थान है। ये पत्र अपने समय का जीवंत दस्तावेज हैं। इन पत्रों में से न जाने कितने तो साहित्य के पन्नों में ढल गए। आज हवाई जहाज के माध्यम से देश-दुनिया में डाक पहुँच रही हैं, परंतु इसका इतिहास कुंभ और प्रयागराज से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। इन पत्रों ने भूमंडलीकरण की अवधारणा को उस दौर में परिभाषित किया, जब विदेश जाना भी एक दु:स्वप्न था। हवाई डाक सेवा ने न सिर्फ पत्रों को पंख लगा दिए, बल्कि लोगों के सपनों को भी उड़ान दी। देश-विदेश के बीच हुए तमाम ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी बातों और पहलुओं को एक-जगह से दूसरी जगह ले जाने में हवाई डाक सेवा का योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

कृष्ण कुमार यादव, पोस्टमास्टर जनरल, उत्तर गुजरात परिक्षेत्र, अहमदाबाद -380004  

ई-मेलः kkyadav.t@gmail.com

 
 
 

बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

सृजन की कसौटी पर हिंदी पत्रिका 'सरस्वती सुमन' का 'आकांक्षा यादव-कृष्ण कुमार यादव युगल अंक'

कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव पर आधारित सरस्वती सुमन का दिसंबर-2024 का अंक 'आकांक्षा-कृष्ण युगल अंक' पाकर हृदय गदगद हो गया। विश्वास ही नहीं होता कि भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव प्रशासनिक अधिकारी अधिक हैं या साहित्यकार। इस तरह का संयोग भी कम ही मिलता है जब दम्पति दोनों ही साहित्यकार हों-राजेंद्र यादव और मन्नू भंडारी, रवीन्द्र कालिया और ममता कालिया आदि कुछ नाम ही याद आते हैं। 


यदि आप दोनों की तुलना की जाए तो भी यह तय कर पाना मुश्किल है कि आप में से पूर्ण समर्पित साहित्यकार कौन है। आपने अपनी रचनाओं में भ्रूण-हत्या,बालिका शिक्षा,महिला,पर्यावरण, रिश्ते, कुरीति जैसे अनेक विषयों पर बेबाकी से लिखा है। कविता के बारे में कृष्ण कुमार कहते हैं -'बदल रही है आज की कविता, वह सिर्फ सौंदर्य नहीं गढ़ती, बल्कि समेटती है अपने में, सामाजिक सरोकारों को भी।' अंडमान के आदिवासियों की भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहते हैं -'चौंकती है हर आहट, खड़े हो जाते हैं हिरनों की तरह कान, कोई आ रहा है उनकी दुनिया में , सभ्यता का जामा पहने'। रिश्तों का अर्थशास्त्र में वह कहते हैं -'दरकते रिश्ते इस तरह के हो गए हैं, जैसे किसी उद्योगपति ने बेच दी हो घाटे वाली कंपनी।'

आकांक्षा यादव कहती हैं-' शब्द की नियति स्थिरता में नहीं, उसकी गति में है और जीवंतता में है, जीवंत होते शब्द रचते हैं इक इतिहास'।

आप दोनों ने बहुत अच्छी कविताएं,अच्छी लघु कथाएं, बहुत अच्छे लेख और कहानियां लिखी हैं। लेखों में बहुत ही अच्छी-अच्छी सारगर्भित जानकारियां दी हैं।आपके परिवार में आपके पिता, आप स्वयं दंपति और आपकी पुत्रियां भी साहित्य के प्रति समर्पित हैं, यह एक शुभ संकेत है। आप दोनों को बहुत-बहुत साधुवाद। आप इसी तरह से सृजन करते रहें।


-डाॅ. गोपाल राजगोपाल
वरिष्ठ आचार्य एवं राजभाषा सम्पर्क अधिकारी
आर.एन.टी.मेडिकल कॉलेज,उदयपुर, राजस्थान
मो.-9414342523
 



पत्रिका - सरस्वती सुमन/ मासिक हिंदी पत्रिका/ प्रधान सम्पादक-डॉ. आनंद सुमन सिंह/ सम्पादक-किशोर श्रीवास्तव/संपर्क -'सारस्वतम', 1-छिब्बर मार्ग, आर्य नगर, देहरादून, उत्तराखंड -248001, मो.-7579029000, ई-मेल :saraswatisuman@rediffmail.com

सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा की युगल रचनाधर्मिता पर केंद्रित 'सरस्वती सुमन' का संग्रहणीय विशेषांक

हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में आदिकाल से ही तमाम साहित्यकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किसी कवि, लेखक या साहित्यकार को अगर ऐसा जीवनसाथी मिल जाए जो खुद भी उसी क्षेत्र से जुड़ा हो तो यह सोने पर सुहागा जैसी बात होती है। एक तरीके से देखा जाए तो ऐसे लेखकों या लेखिकाओं को उनके घर में ही पहला श्रोता, प्रशंसक या आलोचक मिल जाता है। इसी कड़ी में देव भूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के देहरादून से प्रकाशित 'सरस्वती सुमन' मासिक पत्रिका ने हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय युगल जोड़ी आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता पर केंद्रित 80 पेज का शानदार विशेषांक दिसंबर-2024 में प्रकाशित किया है।

 इसमें दोनों की चयनित कविताओं, लघुकथाओं, कहानियों, लेखों को सात खंडों में शामिल किया गया है, वहीं विभिन्न पन्नों पर उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समेटती तस्वीरों के माध्यम से इसे और भी रोचक बनाया गया है। कवर पेज पर इस युगल की खूबसरत तस्वीर पहली ही नज़र में आकृष्ट करती है। अपने प्रकाशन के 23 वर्षों में 'सरस्वती सुमन' पत्रिका ने तमाम विषयों और व्यक्तित्वों पर आधारित विशेषांक प्रकाशित किये हैं, परंतु किसी साहित्यकार दंपति के युगल कृतित्व पर आधारित इस पत्रिका का पहला विशेषांक है। इसके लिए पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. आनंद सुमन सिंह और संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव हार्दिक साधुवाद के पात्र हैं। 'वेद वाणी' और 'मेरी बात' के तहत डॉ. आनंद सुमन सिंह ने साहित्य एवं संस्कृति के सारस्वत अभियान को आगे बढ़ाया है। अपने संपादकीय में डॉ. सिंह ने कृष्ण कुमार और आकांक्षा से अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में परिचय प्रगाढ़ता का भी जिक्र किया है। 


सम्प्रति उत्तर गुजरात परिक्षेत्र, अहमदाबाद के पोस्टमास्टर जनरल पद पर कार्यरत, मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद निवासी श्री कृष्ण कुमार यादव जहाँ भारतीय डाक सेवा के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं, वहीं उनकी जीवनसंगिनी श्रीमती आकांक्षा यादव एक कॉलेज में प्रवक्ता रही हैं। पर सोने पर सुहागा यह कि दोनों ही जन साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भी समान रूप से प्रवृत्त हैं। देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ ही इंटरनेट पर भी इस युगल की रचनाओं के बखूबी दर्शन होते हैं। विभिन्न विधाओं में श्री कृष्ण कुमार यादव की अब तक कुल 7 पुस्तकें प्रकाशित हैं, वहीं श्रीमती आकांक्षा की 4 पुस्तकें प्रकाशित हैं। 

 


 

प्रधान संपादक डॉ. आनंद सुमन सिंह ने इस युगल विशेषांक के संबंध में लिखा है, " यह युगल विगत लगभग 20 वर्षों से सरस्वती सुमन पत्रिका के साथ निरंतर जुड़ा है। इसलिए जब 'युगल विशेषांक' निकालने का विचार बना तो सबसे पहले उन्हीं से शुरुआत की जा रही है। अब तो इस युगल की दोनों पुत्रियाँ-अक्षिता और अपूर्वा भी लेखन क्षेत्र में पूरी निष्ठा के साथ जुटी हैं और अपनी शिक्षा-दीक्षा के साथ-साथ साहित्य सेवा में भी सक्रिय हैं। 'युगल विशेषांक' का उद्देश्य केवल एक साहित्यिक परिवार से साहित्य सेवियों को परिचित करवाना है और उनके लेखन की हर विधा को पाठकों के सम्मुख रखना है। अनुजवत कृष्ण कुमार यादव और उनकी सहधर्मिणी आकांक्षा यादव दोनों ही उच्च कोटि के साहित्यसेवी हैं और उनके विवाह की वर्षगांठ (28 नवंबर, 2024) पर यह अंक साहित्य प्रेमियों के लिए उपयोगी होगा ऐसी हमारी मान्यता है।  


देश-विदेश में तमाम सम्मानों से अलंकृत यादव दंपति पर प्रकाशित यह विशेषांक साहित्य प्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय अंक है। साहित्य समाज का दर्पण है। इस दर्पण में पति-पत्नी के साहित्य को समाज के सामने लाकर 'सरस्वती सुमन' ने एक नया विमर्श भी खोला है। आशा की जानी चाहिये कि अन्य पत्रिकाएँ भी इस तरह के युगल विशेषांक प्रकाशित करेंगी।  निश्चितत: इस तरह के प्रयास न केवल साहित्य में बल्कि दांपत्य जीवन में भी रचनात्मकता को और प्रगाढ़ करते हैं।

समीक्ष्य पत्रिका - सरस्वती सुमन/ मासिक हिंदी पत्रिका/ प्रधान सम्पादक-डॉ. आनंद सुमन सिंह/ सम्पादक-किशोर श्रीवास्तव/संपर्क -'सारस्वतम', 1-छिब्बर मार्ग, आर्य नगर, देहरादून, उत्तराखंड -248001, मो.-7579029000, ई-मेल :saraswatisuman@rediffmail.com

समीक्षक : प्रोफेसर (डॉ.) गीता सिंह, अध्यक्ष-स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, डी.ए.वी  पी.जी कॉलेज, आजमगढ़ (उ.प्र.), मो.-9532225244







मंगलवार, 7 जनवरी 2025

'यादव सेवा समाज-समग्र भारत' का अहमदाबाद में आयोजित हुआ 13वां वार्षिक सम्मेलन, पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव ने किया शुभारंभ

युवाओं की सशक्त और सजग भागीदारी ही समाज और राष्ट्र को समृद्ध बना सकती है। महान कर्मयोगी भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में इसीलिए कर्म के भाव को ही अपनाने पर जोर दिया। ऐसे में युवाओं की महती जिम्मेदारी है कि वे अपनी इस भूमिका को पहचानें और इस दिशा में सकारात्मक पहल करते हुए नए आयाम रचें। उक्त उद्गार ख़्यात साहित्यकार व ब्लॉगर एवं उत्तर गुजरात परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने 'यादव सेवा समाज-समग्र भारत' के वस्त्राल, अहमदाबाद में आयोजित 13वें वार्षिक सम्मेलन व स्नेह मिलन कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किये। उन्होंने अपने उद्बोधन में युवाओं में शिक्षा, कौशल विकास और देश निर्माण में उनकी बढ़ती महती भूमिका की चर्चा करते हुये समाज में उनके नये कर्तव्य निर्माण की ओर भी ध्यान आकर्षित किया।



पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि गुजरात की धरती द्वारकाधीश के लिए जानी जाती है। द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभासम्पन्न राजनीतिवेत्ता ही नहीं, एक महान कर्मयोगी और दार्शनिक प्राप्त हुआ, जिनका गीता-ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक है। आज देश के युवाओं को श्रीकृष्ण के विराट चरित्र के वृहद अध्ययन की जरूरत है। श्री यादव ने कहा कि श्रीकृष्ण ने कभी कोई निषेध नहीं किया। उन्होंने पूरे जीवन को समग्रता के साथ स्वीकारा है। संसार के बीच रहते हुये भी उससे तटस्थ रहकर वे पूर्ण पुरुष कहलाए। यही कारण है कि उनकी स्तुति लगभग सारी दुनिया में किसी न किसी रूप में की जाती है।




इस अवसर पर गुजरात के विभिन्न जिलों के कक्षा 10 और 12 सहित उच्चतर कक्षाओं में उत्कृष्ट स्थान प्रदान करने वाले यदुवंशी विद्यार्थियों, चिकित्सा, इंजीनियरिंग और विभिन्न सेवाओं में चयनित प्रतिभाओं, समाज सेवा में तत्पर महानुभावों को स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। नए सदस्यों और आजीवन सदस्यता ग्रहण करने वाले सदस्यों को भी सम्मानित किया गया।  



'यादव सेवा समाज-समग्र भारत' के गुजरात अध्यक्ष श्री सत्यदेव यादव ने बताया कि देश के विभिन्न राज्यों से व्यवसाय और आजीविका के लिए यदुवंशी लोग गुजरात में आते हैं। उन सभी में समन्वय करते हुए उनमें मिलाप कराना, उनकी सेवाओं को सम्मानित करना, होनहार प्रतिभाओं को पुरस्कृत करना, सामाजिक-सांस्कृतिक समारोह, वैवाहिक परिचय कार्यक्रम एवं समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपनी समृद्ध भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयोजन से इस वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इस दौरान सर्वश्री सत्यदेव यादव, शिव मूर्ति यादव, मुलायम सिंह यादव, एडवोकेट अशोक यादव, शिव शंकर यादव, सुभाष चंद्र यादव, रामाधार यादव, मुकेश यादव, भीम सिंह यादव, राम बक्श यादव, जितेंद्र यादव सहित तमाम लोगों ने अपनी सक्रिय भागीदारी से लोगों का हौसला बढ़ाया।


યુવાનોની સશક્ત અને સજાગ ભાગીદારીથી જ રાષ્ટ્ર બનશે સમૃદ્ધ - પોસ્ટમાસ્ટર જનરલ શ્રી કૃષ્ણ કુમાર યાદવ

‘યાદવ સેવા સમાજ-સમગ્ર ભારત’ નું અમદાવાદમાં 13મું વાર્ષિક સંમેલન યોજાયું,  પોસ્ટમાસ્ટર જનરલ શ્રી કૃષ્ણ કુમાર યાદવ દ્વારા શુભારંભ

દેશના યુવાનોને દ્વારકાધીશ શ્રીકૃષ્ણના મહાન ચરિત્રનો વિગતવાર અભ્યાસ કરવાની જરૂર  - પોસ્ટમાસ્ટર જનરલ શ્રી કૃષ્ણ કુમાર યાદવ


યુવાનોની સશક્ત અને સજાગ ભાગીદારી જ સમાજ અને રાષ્ટ્રને સમૃદ્ધ બનાવી શકે છે. આથી જ મહાન કર્મયોગી ભગવાન શ્રી કૃષ્ણે ગીતામાં કર્મના ભાવને અપનાવા પર ભાર મુક્યો હતો. આવી સ્થિતિમાં, યુવાનોની મોટી જવાબદારી છે કે તેઓ તેમની આ ભૂમિકા ઓળખે અને આ દિશામાં સકારાત્મક પહેલ કરીને નવા આયામ સર્જે. ઉપરોક્ત નિવેદન જાણીતા સાહિત્યકાર અને બ્લોગર તેમજ ઉત્તર ગુજરાત પરિક્ષેત્રના પોસ્ટમાસ્ટર જનરલ શ્રી કૃષ્ણ કુમાર યાદવે 'યાદવ સેવા સમાજ-સમગ્ર ભારત'ના વસ્ત્રાલ, અમદાવાદમાં આયોજિત 13મા વાર્ષિક સંમેલન અને સ્નેહ મિલન કાર્યક્રમમાં મુખ્ય મહેમાન તરીકે વ્યક્ત કર્યા. તેમણે તેમના સંબોધનમાં યુવાનોમાં શિક્ષણ, કૌશલ્ય વિકાસ અને દેશ નિર્માણમાં તેમની વધતી જતી મહત્ત્વપૂર્ણ ભૂમિકા પર ચર્ચા કરતાં સમાજમાં તેમના નવા કર્તવ્ય નિર્માણ તરફ પણ ધ્યાન આકર્ષિત કર્યું.

પોસ્ટમાસ્ટર જનરલ શ્રી કૃષ્ણ કુમાર યાદવે કહ્યું કે ગુજરાતની ધરતી દ્વારકાધીશ માટે જાણીતી છે. દ્વારકાધીશ શ્રી કૃષ્ણના વ્યક્તિત્વમાં ભારતને માત્ર એક પ્રતિભાશાળી રાજનેતા જ નહિ, પણ એક મહાન કર્મયોગી અને તત્વચિંતક મળ્યાં છે, જેમનું ગીતા-જ્ઞાન સમસ્ત માનવજાત અને દરેક કાળ અને દેશો માટે માર્ગદર્શક છે. આજના દેશના યુવાનોને શ્રી કૃષ્ણના વિરાટ ચરિત્રનું વિગતવાર અભ્યાસ કરવાની જરૂર છે. શ્રી યાદવે જણાવ્યું કે શ્રી કૃષ્ણે ક્યારેય કોઈ પ્રતિબંધ લાગુ ન કર્યો. તેમણે સમગ્ર જીવનને સંપૂર્ણતા સાથે સ્વીકાર્યું છે. સંસારના વચ્ચે રહેવા છતાં પણ તેમાંથી તટસ્થ રહીને તેઓ પૂર્ણ પુરુષ કહેવાયા. એજ કારણ છે કે તેમની સ્તુતિ લગભગ આખી દુનિયામાં કોઈ ને કોઈ રૂપમાં કરવામાં આવે છે.

આ પ્રસંગે ગુજરાતના વિવિધ જિલ્લાના વિદ્યાર્થીઓ કે જેમણે ધોરણ 10 અને 12 સહિત ઉચ્ચ વર્ગોમાં ઉત્કૃષ્ટ સ્થાન મેળવ્યું છે, મેડિકલ, એન્જિનિયરિંગ અને વિવિધ સેવાઓમાં પસંદગી પામેલ પ્રતિભાઓ અને સમાજ સેવા માટે તત્પર મહાન વ્યક્તિઓનું સ્મૃતિચિહ્ન અને પ્રશસ્તિપત્ર આપી સન્માન કરવામાં આવ્યું. નવા સભ્યો અને આજીવન સભ્યપદ મેળવનાર સભ્યોનું પણ સન્માન કરવામાં આવ્યું.

'યાદવ સેવા સમાજ-સમગ્ર ભારત'ના ગુજરાત પ્રમુખ શ્રી સત્યદેવ યાદવે જણાવ્યું હતું કે, દેશના વિવિધ રાજ્યોમાંથી લોકો વેપાર અને આજીવિકા માટે ગુજરાતમાં આવે છે. આ વાર્ષિક સંમેલન તે બધા વચ્ચે સમન્વય સાધવા, તેમની સેવાઓનું સન્માન કરવા, આશાસ્પદ પ્રતિભાઓને પુરસ્કાર આપવા, સામાજિક-સાંસ્કૃતિક કાર્યક્રમોનું આયોજન, લગ્ન પરિચય કાર્યક્રમો અને સમાજ અને રાષ્ટ્રના નિર્માણમાં તેમની સમૃદ્ધ ભાગીદારીને સુનિશ્ચિત કરવાના ઉદ્દેશ્ય સાથે આયોજન કરવામાં આવ્યું.

આ દરમિયાન સર્વશ્રી સત્યદેવ યાદવ, શિવ મૂર્તિ યાદવ, મુલાયમ સિંહ યાદવ, એડવોકેટ અશોક યાદવ, શિવ શંકર યાદવ, રામાધાર યાદવ, મુકેશ યાદવ, ભીમ સિંહ યાદવ, રામ બક્ષ યાદવ, જિતેન્દ્ર યાદવ સહિત ઘણા લોકોએ તેમની સક્રિય ભાગીદારીથી લોકોને પ્રોત્સાહિત કર્યા.


Nation will prosper only through empowered and vigilant participation of Youth- Postmaster General Shri Krishna Kumar Yadav

13th Annual Conference of 'Yadav Seva Samaj-Samagra Bharat' held in Ahmedabad, Inaugurated by Postmaster General Shri Krishna Kumar Yadav

Postmaster General Shri Krishna Kumar Yadav urges Youth to deeply explore the grand character of Dwarkadhish Lord Krishna


Nation will prosper only through empowered and vigilant participation of Youth. Lord Shri Krishna, emphasized the importance of adopting the spirit of karma in the Bhagavad Gita. In this context, the youth have a significant responsibility to recognize their role and take positive initiatives to create new dimensions in society. These thoughts were expressed by renowned author, blogger, and Postmaster General of North Gujarat Region, Shri Krishna Kumar Yadav, as the Chief Guest at the 13th Annual Conference and Sneh Milan Program of 'Yadav Seva Samaj-Samagra Bharat,' held in Vastral, Ahmedabad. In his address, Shri Krishna Kumar Yadav emphasis on the significance of education, skill development, and the increasing role of youth in nation-building.

Postmaster General Shri Krishna Kumar Yadav said that the land of Gujarat is known for Dwarkadhish. In the divine personality of Dwarkadhish Shri Krishna, India was blessed not only a brilliant leader but also a great Karmayogi and philosopher, whose teachings in the Bhagavad Gita serve as a holy light for all of humanity, across all times. Today, the youth of the country need to undertake a comprehensive study of Lord Krishna's vast character. Shri Yadav further stated that Lord Krishna never imposed any prohibitions. He embraced life in its entirety. Despite living in the world, he remained detached from it and was regarded as the perfect being. This is why his praise is offered in one form or another across the world.

On this occasion, topper students of class 10th & 12th from various districts of Gujarat, Students selected for medical, engineering, and other services, as well as distinguished individuals actively engaged in social service, were felicitated with mementos and certificates of appreciation. New members and those receiving lifetime membership were also felicitated.

Gujarat President of 'Yadav Seva Samaj-Samagra Bharat, Shri Satyadev Yadav stated that Yadav community people from various states of the country come to Gujarat for business and livelihood. The purpose of this annual conference is to coordinate among them, facilitate their interaction, honor their services, reward talented individuals, organize social and cultural events, matrimonial introduction programs, and ensure their prosperous participation in the development of society and the nation.

During this event, Yadav community people from various part of Gujarat gathered including Satyadev Yadav, Shiv Murti Yadav, Mulayam Sinh Yadav, Advocate Ashok Yadav, Shiv Shankar Yadav, Subhash Chandra Yadav, Ramadhar Yadav, Mukesh Yadav, Bhim Sinh Yadav, Ram Baksh Yadav, Jitendra Yadav, and others, actively participated and motivated the attendees.

 
 
 












 


 

युवाओं की  सशक्त और सजग भागीदारी से ही राष्ट्र बनेगा समृद्ध-पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव

'यादव सेवा समाज-समग्र भारत' का अहमदाबाद में आयोजित हुआ 13वां वार्षिक सम्मेलन, पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने किया शुभारंभ

देश के युवाओं को द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के विराट चरित्र के वृहद अध्ययन की जरूरत-पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव