ज्ञान-अध्यात्म-दर्शन की त्रिवेणी के साथ-साथ काशी में साहित्य-कला-संस्कृति की त्रिवेणी भी सदियों से निरंतर प्रवाहमान है। गंगा नदी के तट पर अवस्थित काशी नगरी अपने कण-कण में पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक ज्ञान की अमृत धारा लिए हुए है। यही कारण है कि इसे भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है। आधुनिक हिन्दी के विकास में काशी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उक्त उद्गार वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने ज्ञान गरिमा सेवा न्यास के तत्वावधान में 'उपनिधि' पत्रिका के काशी विशेषांक के विमोचन अवसर पर बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किये।
सरस्वती इण्टरमीडिएट कालेज, सुड़िया, बुला नाला, वाराणसी के प्रांगण में 14 अप्रैल, 2024 को आयोजित समारोह में 'उपनिधि' पत्रिका के काशी विशेषांक का विमोचन वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव, वरिष्ठ लेखिका डॉ. मुक्ता, विद्याश्री न्यास के अध्यक्ष श्री दयानिधि मिश्रा, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राम सुधार सिंह, डॉ. जय प्रकाश मिश्र, सम्पादक श्री सुबोध कुमार दुबे 'शारदानंदन' द्वारा किया गया। इस अवसर पर काशी से जुड़े साहित्यकारों और कवियों को सम्मानित भी किया गया, वहीं काव्य-सरिता भी बही।
पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि काशी संत कबीर, संत रैदास, संत तुलसीदास से लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद की भूमि रही है। काशी की संस्कृति सबको सहेजते हुए सदियों से लोगों की चेतना को स्पंदित करती रही है। धर्म और अध्यात्म नहीं बल्कि साहित्यिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक गतिविधियों का भी सदियों से केंद्र रहा है। उपनिधि के काशी विशेषांक में संकलित सामग्री काशी के अतीत से लेकर वर्तमान में हुए विकास तक की वृहद गाथा का प्रामाणिक दस्तावेज है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की प्रपौत्री एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मुक्ता ने बतौर मुख्य अतिथि 'उपनिधि' पत्रिका द्वारा काशी के विभिन्न आयामों को सहेजते हुए विशेषांक निकालने की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य के विकास में लघु पत्रिकाओं का योगदान अतुलनीय है। आज का दौर भले ही सोशल मीडिया का हो लेकिन पत्र-पत्रिकाओं का महत्व अपनी जगह स्थायी है। लघु पत्रिकाओं का प्रसार क्षेत्र भले ही सीमित रहा हो लेकिन उनमें साहित्य सेवा की संभावनाएं सदैव से असीमित रही हैं। उसी क्रम में 'उपनिधि' पत्रिका का काशी विशेषांक भी है। काशी अत्यन्त प्राचीन, धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहरों से पूर्ण है, ऐसे में यह विशेषांक मील का पत्थर साबित होगा।
अध्यक्षीय संबोधन में साहित्य भूषण डा. दयानिधि मिश्र ने कहा कि काशी स्वयंभू है और संसार को जब-जब किसी समस्या विशेष के समाधान की आवश्यकता हुई है तब-तब काशी ने आगे बढ़कर मार्गदर्शन किया है। यही काशी की मूल पहचान है। उन्होंने कहा कि कोई भी पत्रिका लघु नहीं होती, क्योंकि वह एक व्यापक स्वरुप को अपने में समेटती है। काशी की धरती से तमाम पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ है और ये सभी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत दस्तावेज का काम करेंगी।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राम सुधार सिंह ने कहा कि उपनिधि पत्रिका ने काशी पर विशेषांक निकालकर यहाँ की संस्कृति और साहित्यिक विरासत से युवाओं को जोड़ने का कार्य किया है। ज्ञान गरिमा सेवा न्यास अध्यक्ष श्री सुबोध कुमार दुबे ने बताया कि उपनिधि पत्रिका ने अपने 25 वर्षों के सफर में तमाम महत्वपूर्ण विषयों पर अंक प्रकाशित किये।
कार्यक्रम में काशी के वरिष्ठ एवं युवा साहित्यकारों का सम्मान ज्ञान गरिमा सेवा न्यास की ओर से किया गया। सम्मानित किए जाने वाले रचनाकारों में डा. शशिकला त्रिपाठी, डा. जयप्रकाश मिश्र, नवगीतकार सुरेंद्र वाजपेयी, गजलकार धर्मेंद्र गुप्त साहिल एवं अरविन्द मिश्र हर्ष', सूर्य प्रकाश मिश्र, डा. आनंद पाल राय, गौतम चंद्र अरोड़ा 'सरस' शामिल रहे। कार्यक्रम के अंत में काव्य संगम समारोह का भी आयोजन किया गया। तमाम कवियों ने अपनी रचनाओं से शमां बांधा और श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया। संचालन श्री राम किशोर तिवारी ने किया।
आधुनिक हिन्दी के विकास में काशी का महत्वपूर्ण योगदान - पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
ज्ञान-अध्यात्म-दर्शन की त्रिवेणी के साथ-साथ काशी में साहित्य-कला-संस्कृति की त्रिवेणी भी सदियों से प्रवाहमान- पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
हिंदी साहित्य के विकास में लघु पत्रिकाओं का योगदान अतुलनीय - डॉ. मुक्ता
'उपनिधि' पत्रिका के काशी विशेषांक का हुआ विमोचन
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