भारतीय ज्ञानपीठ ने 2015 का ज्ञानपीठ पुरस्कार गुजरात के प्रसिद्ध साहित्यकार रघुवीर चौधरी को देने की घोषणा की है। यह निर्णय मंगलवार को ज्ञानपीठ चयन बोर्ड की बैठक में लिया गया। 1938 में जन्में रघुवीर चौधरी गुजराती साहित्य में एक विशेष स्थान रखते हैं और उपन्यासकार होने के साथ ही कवि, क्रिटिक भी हैं।
गुजराती साहित्य के जानेमाने नाम रघुवीर चौधरी द्वारा लिखी हुई रूद्र महालय गुजराती ऐतिहासिक उपन्यास लेखन में मील पत्थर की तरह जाना जाता है। वर्ष 1977 में उनकी रचना उप्रवास कथात्रई के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने अब तक 80 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं जिनमें अमृता, सहवास, अन्तर्वास, पूर्वरंग, वेणु वात्सल, तमाशा और वृक्ष पतनमा प्रमुख हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से वार्षिक आधार पर दिया जाने वाला यह पुरस्कार संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित 22 भारतीय भाषाओं में लेखन कार्य करने वाले साहित्यकार को उसके जीवनभर के साहित्यिक योगदान को देखते हुए दिया जाता है।
चौधरी से पहले गुजराती में यह पुरस्कार 1967 में उमा शंकर जोशी, 1985 में पन्नालाल पटेल और वर्ष 2001 में राजेंद्र शाह को दिया गया था। वर्ष 2014 का ज्ञानपीठ पुरस्कार मराठी साहित्यकार भालचंद्र नेमाड़े को प्रदान किया गया था। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मलयाली साहित्यकार जी. शंकर कुरूप को वर्ष 1965 में दिया गया था। इसके तहत साहित्यकारों को नकद पुरस्कार, एक प्रशस्ति पत्र और सरस्वती की प्रतिमा प्रदान की जाती है।