बहुत दिनों बाद ट्रेन की यात्रा की और वो भी दिन में। 'गोदान' एक्सप्रेस द्वारा इलाहाबाद से गोरखपुर तक की यात्रा। किसी ने ठीक ही कहा है कि असली भारत को समझना है तो ट्रेन से सफ़र कर लीजिए। नजरों के सामने तेजी से आते खेत-खलिहान और उनमें काम करते लोग, गाँव के दृश्य, कई बार कूड़े और गन्दगी का ढेर और उनमें से कुछ चुनते भारत के भावी नौनिहाल और भी बहुत कुछ दृश्य। इन्हें देखकर लगता है कि वाकई 'आम' आदमी तो ये लोग हैं, जिनके लिए कोई टोपी नहीं पहनता, कोई आवाज़ नहीं उठाता। जिस तरह से 'आम आदमी' शब्द की ब्रांडिंग हो रही है, उससे तो ये कोसों दूर है। काश वाकई कोई इस 'आम आदमी' के लिए आवाज़ उठाता ......!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें