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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बनने वाले पहले हिंदी साहित्यकार बने विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्ध कवि, आलोचक व लेखक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी का चयन और हिन्दी परामर्श मंडल के संयोजक रूप में प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित जी का चयन पूरे हिंदी-साहित्य समाज के लिए गौरव की बात है। संयोगवश पिछले दिनों मुझे इन दोनों महानुभावों के साथ सम्मानित होने का सु-अवसर भी प्राप्त हुआ।

 1 नवम्बर, 2012 को विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी के साथ मुझे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा सपत्नीक 'अवध सम्मान' लेने का गौरव प्राप्त हुआ,

 14 सितम्बर 2012 को प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित जी के साथ साहित्यमंडल श्रीनाथद्वारा में मेरा सम्मान हुआ।

दोनों विद्वत जन को इस सु-चयन हेतु मेरी तरफ से हार्दिक बधाइयाँ।आशा है कि हिंदी साहित्य आपके दिशानिर्देशन में नए मुकाम हासिल कर सकेगा - कृष्ण कुमार यादव

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हिन्दी साहित्य के अनवरत साधक एवं प्रसिद्ध कवि, आलोचक व लेखक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को  सोमवार को साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया है। वह अकादमी के अध्यक्ष बनने वाले हिन्दी के पहले साहित्यकार हैं। इस पद के लिए उनका चयन सर्वसम्मति से हुआ । वे अकादमी के 12वें अध्यक्ष होंगे। इनकी नियुक्ति नियमानुसार पांच वर्ष के लिए है।
 
साहित्य अकादमी की कार्यकारी परिषद की बैठक में प्रसिद्ध साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को अकादमी का 12वां अध्यक्ष चुना गया। इसके अलावा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कन्नड के लेखक चंद्रशेखर कंबर को अकादमी का उपाध्यक्ष और सूर्य प्रसाद दीक्षित को हिन्दी परामर्श मंडल का संयोजक चुना गया।

अकादमी के रवीन्द्र सभागार में हुई कार्यकारी परिषद की बैठक में बोर्ड के 86 सदस्यों में से 79 सदस्य उपस्थित थे। सभी का चुनाव निर्विरोध रूप से किया गया। साहित्य अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष और बांग्ला लेखक सुनील गंगोपाध्याय का 23 अक्तूबर 2012 को दक्षिण कोलकाता स्थित उनके आवास में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। इसके बाद उपाध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी बतौर कार्यकारी अध्यक्ष काम कर रहे थे।
 
तिवारी को वर्ष 2010 में बिरला फाउंडेशन व्यास सम्मान व उत्तर प्रदेश के हिन्दी गौरव व साहित्य भूषण का सम्मान मिल चुका है। उनकी रचनाओं में सात हिन्दी कविता संग्रह शोध व आलोचना की 11 पुस्तकें शामिल हैं। दस्तावेज जैसी प्रमुख पत्रिका के अलावा इन्होंने 14 पुस्तकों का संपादन भी किया है।
 
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जन्में तिवारी ने कहा कि भारतीय साहित्य को लेकर विशेष कार्य करने की जरुरत है। इसके तहत भारतीय भाषाओं की कृतियों व लेख को विदेशों में भी लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि हम नोबेल पुरस्कार प्राप्त कृतियों को देखते हैं तो भारतीय साहित्य उनसे किसी भी मायने में कमतर नहीं हैं।  उन्होंने बताया कि अकादमी का मुख्य कार्य साहित्य का प्रचार-प्रसार करना है। इसके लिए सभी भाषाओं के योग्य लेखकों को मंच पर आमंत्रित किया जाएगा। मालूम हो कि वर्ष 2001 में गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर व अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त तिवारी वर्ष 2008 में साहित्य अकादमी के हिन्दी संरक्षक व कार्यकारी उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्यरत रहे हैं।

गौरतलब है कि साहित्य अकादमी की स्थापना 12 मार्च 1954 में की गयी थी। इसके पहले अध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे, जो 1954 से 1964 तक सर्वाधिक लंबे समय तक अकादमी के अध्यक्ष रहे। पहले उपाध्यक्ष डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे, जो 1954 से 1960 तक इस पद पर रहे।

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हिन्दी जगत के लिये सुख की लहर..

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Congts. to all great Personilities.