(गुजरात दंगों के दौरान लिखी यह कविता आज गाँधी जी की पुण्य-तिथि की पूर्व संध्या पर बरबस ही याद आ गई और इसे पोस्ट करने का मोह न छोड़ सका ........)
एक बार फिर
गाँधी जी खामोश थे
सत्य और अहिंसा के प्रणेता
की जन्मस्थली ही
सांप्रदायिकता की हिंसा में
धू-धू जल रही थी
क्या इसी दिन के लिए
हिन्दुस्तान व पाक के बंटवारे को
जी पर पत्थर रखकर स्वीकारा था !
अचानक उन्हें लगा
किसी ने उनकी आत्मा
को ही छलनी कर दिया
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई !!!
एक बार फिर
गाँधी जी खामोश थे
सत्य और अहिंसा के प्रणेता
की जन्मस्थली ही
सांप्रदायिकता की हिंसा में
धू-धू जल रही थी
क्या इसी दिन के लिए
हिन्दुस्तान व पाक के बंटवारे को
जी पर पत्थर रखकर स्वीकारा था !
अचानक उन्हें लगा
किसी ने उनकी आत्मा
को ही छलनी कर दिया
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई !!!
32 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर लिखा है, भाई!
सशक्त कविता .....बहुत सटीकता से आपने बहुत कुछ कह दिया ....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सशक्त और सटीक कविता.
रामराम.
अच्छी है......
किसी ने उनकी आत्मा
को ही छलनी कर दिया
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई !!!
बहुत ही सामायिक बात कही है आपने कविता में.सुंदर कविता.
कवि की यही तो खूबी होती है जब कहने को कुछ नहीं बचा होता वो बहुत कुछ शब्दों में ढाल लेता है
यादव जी, नमस्कार,
बहुत अच्छी कविता लिखी, सशक्त लेखन एवं स्वतन्त्र अभिव्यक्ति का बहुत अच्छा मिश्रण कर बहुत ही अच्छी भावः भरी कविता पेश करी,
धन्यवाद...
सस्नेह !
दिलीप गौड़
गांधीधाम!
बढिया रचना है।बधाई।
क्या बात है.....!!.......मजे की बात तो यही है कि भीड़ का कोई चेहरा भी कहाँ होता है....शायद इसीलिए तो उसे भीड़ कहते हैं....सोच-संवेदना-विचार या विवेक से बिल्कुल परे.........आपने खूब लिखा है भाई....!!
... प्रसंशनीय व प्रभावशाली रचना है।
बहुत सामायिक रचना.
भाई यादव जी ,अभिव्यक्ति की सार्थकता हमेशा कवित्त रूप मैं ज्यादा होती है ...गांधी जी के प्रति उनके पुण्यस्मरण को आपने जैसे जिया है इस भावना के जरिये ...शब्द और बानगी सरल है ....इसलिए भी शायद...बधाई,
भाई यादव जी ,अभिव्यक्ति की सार्थकता हमेशा कवित्त रूप मैं ज्यादा होती है ...गांधी जी के प्रति उनके पुण्यस्मरण को आपने जैसे जिया है इस भावना के जरिये ...शब्द और बानगी सरल है ....इसलिए भी शायद...बधाई,
Mujhe to ek purana filmi geet yaad aa gayaa.
देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा
अपने हृदय के ख़ून से बापू ने है सींचा
रक्खा है ये चराग़ शहीदों ने बाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
ऐटम बमों के ज़ोर पे ऐंठी है ये दुनिया
बारुद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनिया
तुम हर क़दम उठाना ज़रा देखभाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
puraane filmi shaayar bhi kaise-kaise gaane likh maarte the. kai baar to ye aaj-kal ke gair-filmi/sahityik geetoN/ghazaloN/kavitayoN par bhi bhaari pad jate haiN.
par kya khub likha hai aapne!
गाँधी जी को श्रद्धांजलिस्वरुप बहुत सुन्दर भावों से रचित कविता . के. के. जी ने इसे समसामयिक भी बना दिया है.
आज के हालात में गाँधी जी के बहाने रुचिकर कविता.
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई !!!
....अत्यंत मर्मस्पर्शी भाव. गाँधी जी का आज भी कोई विकल्प नहीं है.वे आज भी हमारे दिलों में जिन्दा हैं.
जहाँ हमारे राजनेता आज गाँधी जी को नारा बनाकर उछालते हैं., वहां एक लम्बे समय बाद किसी कविता को पढ़कर दिल उद्देलित हुआ है. कृष्ण जी को साधुवाद.
गुजरात दंगों के दौरान लिखी यह कविता आज गाँधी जी की पुण्य-तिथि की पूर्व संध्या पर बरबस ही याद आ गई और इसे पोस्ट करने का मोह न छोड़ सका ....के.के. जी यह आपकी परखी सोच और प्रतिबद्धता का प्रतीक है. लाजवाब प्रस्तुति के लिए बधाई.
अद्भुत कविता...अद्भुत भाव.....गाँधी जी अमर रहें.....!
आप सभी की सारगर्भित टिप्पणियों के लिए आभार. आपका प्रोत्साहन ही लेखनी को धार देता है. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखें.
पुण्यतिथि पर गाँधी जी को श्रद्धांजलि. सारा राष्ट्र आपके दिखाए आदर्शों का कायल है.
म. गाँधी के बारे में जितना भी कहा जाये, कम ही होगा.आज भी उनकी प्रासंगिकता उतनी ही है. अनुपम कविता के माध्यम से उनका पुण्य-स्मरण प्रभावित करता है.
के. के. जी के ही आलेख से--
विश्व पटल पर महात्मा गाँधी सिर्फ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक है। महात्मा गाँधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह एवं शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि -‘‘हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था।’’ संयुक्त रा’ट्र संघ ने वर्ष 2007 से गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा करके शान्ति व अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता को एक बार पुनः सिद्ध कर दिया है।
गांधीजी को समर्पित एक बहुत सुंदर रचना.
आज के दौर में गाँधी जी पर अतिसुन्दर लिखा है आपने.
पुण्यतिथि पर गाँधी जी को श्रद्धांजलि.
एक बार फिर
गाँधी जी खामोश थे
...ये दो पंक्तियाँ ही बहुत कुछ कह जाती हैं. सुन्दर भाव....सुन्दर कविता.
yadav ji ,
this is the ultimate writing ..
bahut badhai aapko
sir, meri nai post padhiyenga
aapka
vijay
युवा शक्ति को समर्पित हमारे ब्लॉग पर भी आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
सार्थक कविता, जो हमारे समय की विद्रूपताओं को बखूबी बयां करती है।
कल 30/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
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