.....पद्मभूषण गोपाल दास 'नीरज' जी आज ८४ साल के हो गए. मंचों के बादशाह माने जाने वाले नीरज जी आज भी हिंदी कविता की लोकप्रियता की कसौटी हैं. काव्य-साधना के ६८ वर्षीय जीवन में नीरज जी को तमाम सम्मान-पुरस्कार हासिल हुए, पर उनके गीतों ने लोकप्रियता का जो रंग बिखेरा है, वह कम ही लोगों को मिलता है. अपने गीतों में प्रेम को उन्होंने नए आयाम दिए हैं. बकौल नीरज जी-''आज भले भी कुछ कह लो तुम, पर कल विश्व कहेगा सारा, नीरज से पहले गीतों में सब कुछ था पर प्यार नहीं था." जीवन के विविध पक्षों को सहज भाषा में स्वर देने वाले नीरज जी जीवन में भी उतने ही सहज हैं. मेरी उनसे मुलाकात अब तक सिर्फ एक बार हुयी है, पर यह अविस्मरनीय याद अभी भी जेहन में मौजूद है।
अपने प्रथम काव्य-संग्रह ‘‘अभिलाषा‘‘ के प्रकाशन के सन्दर्भ में 7 मार्च 2005 को प्रख्यात गीतकार व कवि गोपाल दास ‘नीरज‘ जी से मेरी मुलाकात हुई। उस समय मैं लखनऊ में असिस्टेंट पोस्टमास्टर जनरल के पद पर तैनात था. लखनऊ के वी.वी.आई.पी. गेस्ट हाउस में हमारी मुलाकात हुयी. जिस गर्मजोशी से नीरज जी ने मेरा स्वागत किया, उससे मुझे उनके बड़प्पन का एहसास हुआ. लुंगी-बनियान में बैठे इस शख्शियत को देखकर मुझे उनकी सादगी का भी एहसास हुआ. काफी देर तक पारिवारिक और अन्य मुद्दों पर उनसे बात होती रही. बहुत संकोच में अपनी कवितायेँ मैंने उन्हें दिखायीं तो वे काफी खुश हुए और बोले - अरे! आप तो प्रशासन में होते हुए भी इतना अच्छा लिखते हैं. फिर तो बैठे-बैठे उन्होंने मेरी कई कवितायेँ सुनीं और उनकी सराहना की. जिस निश्छल भाव से वह मुझे सुनते, उसी भाव से मैं उनका मुरीद होता जाता।
इस बीच मैंने नीरज जी से अपने काव्य-संग्रह ''अभिलाषा'' की चर्चा की तो सहर्ष वे उसके लिए दो-शब्द लिखने को तैयार हो गए. लगभग एक घंटा साथ रहने के बाद मैं अपने ऑफिस लौट आया. देर शाम तक नीरज जी ने लगभग दो पृष्ठों में ''अभिलाषा'' की भूमिका लिखकर भिजवा दी. इसमें समकालीन साहित्यिक परिवेश पर भी उन्होंने प्रकाश डाला था. इसे पढ़कर नीरज जी की ही पंक्तियाँ याद आ गई-''मत उसे ढूँढिये शब्दों के नुमाइश घर में, हर पपीहा यहाँ नीरज का पता देता है.''......फ़िलहाल नीरज जी के मेरे बारे में लिखे शब्द आज भी मेरी रचनाधर्मिता की पूंजी हैं-
''कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरन्तर बेचैन रहता है। वे यद्यपि छन्दमुक्त कविता से जुड़े हुये हैं लेकिन उनके समकालीनों में जो अत्यधिक बौद्धिकता एवं दुरुहता दिखाई पड़ती है, उससे वे सर्वथा अलग हैं। उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व सन्तुलन है। उनकी रचनायें जहाँ हमें सोचने के लिए विवश करती हैं, वहीं हृदय को भी रसाद्र करती हैं। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ कवि हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षडयन्त्रों और पाखण्डों का बड़ी मार्मिकता के साथ उद्घाटन करते हैं। श्री यादव की कविताएं पढ़कर भविष्य में एक श्रेष्ठ रचनाकार के जन्म की आहट हमें मिलती है।''
अपने प्रथम काव्य-संग्रह ‘‘अभिलाषा‘‘ के प्रकाशन के सन्दर्भ में 7 मार्च 2005 को प्रख्यात गीतकार व कवि गोपाल दास ‘नीरज‘ जी से मेरी मुलाकात हुई। उस समय मैं लखनऊ में असिस्टेंट पोस्टमास्टर जनरल के पद पर तैनात था. लखनऊ के वी.वी.आई.पी. गेस्ट हाउस में हमारी मुलाकात हुयी. जिस गर्मजोशी से नीरज जी ने मेरा स्वागत किया, उससे मुझे उनके बड़प्पन का एहसास हुआ. लुंगी-बनियान में बैठे इस शख्शियत को देखकर मुझे उनकी सादगी का भी एहसास हुआ. काफी देर तक पारिवारिक और अन्य मुद्दों पर उनसे बात होती रही. बहुत संकोच में अपनी कवितायेँ मैंने उन्हें दिखायीं तो वे काफी खुश हुए और बोले - अरे! आप तो प्रशासन में होते हुए भी इतना अच्छा लिखते हैं. फिर तो बैठे-बैठे उन्होंने मेरी कई कवितायेँ सुनीं और उनकी सराहना की. जिस निश्छल भाव से वह मुझे सुनते, उसी भाव से मैं उनका मुरीद होता जाता।
इस बीच मैंने नीरज जी से अपने काव्य-संग्रह ''अभिलाषा'' की चर्चा की तो सहर्ष वे उसके लिए दो-शब्द लिखने को तैयार हो गए. लगभग एक घंटा साथ रहने के बाद मैं अपने ऑफिस लौट आया. देर शाम तक नीरज जी ने लगभग दो पृष्ठों में ''अभिलाषा'' की भूमिका लिखकर भिजवा दी. इसमें समकालीन साहित्यिक परिवेश पर भी उन्होंने प्रकाश डाला था. इसे पढ़कर नीरज जी की ही पंक्तियाँ याद आ गई-''मत उसे ढूँढिये शब्दों के नुमाइश घर में, हर पपीहा यहाँ नीरज का पता देता है.''......फ़िलहाल नीरज जी के मेरे बारे में लिखे शब्द आज भी मेरी रचनाधर्मिता की पूंजी हैं-
''कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरन्तर बेचैन रहता है। वे यद्यपि छन्दमुक्त कविता से जुड़े हुये हैं लेकिन उनके समकालीनों में जो अत्यधिक बौद्धिकता एवं दुरुहता दिखाई पड़ती है, उससे वे सर्वथा अलग हैं। उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व सन्तुलन है। उनकी रचनायें जहाँ हमें सोचने के लिए विवश करती हैं, वहीं हृदय को भी रसाद्र करती हैं। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ कवि हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षडयन्त्रों और पाखण्डों का बड़ी मार्मिकता के साथ उद्घाटन करते हैं। श्री यादव की कविताएं पढ़कर भविष्य में एक श्रेष्ठ रचनाकार के जन्म की आहट हमें मिलती है।''
25 टिप्पणियां:
नीरज जी का अंदाज ही जुदा है.
नीरज जी को जन्म दिन पर याद करने के लिए साधुवाद. नीरज जी द्वारा आपके बारे में लिखे शब्द आपकी प्रतिभा को ही उजागर करते हैं. हमारी तरफ से भी बधाई.
गोपालदास नीरज को कौन नहीं जानता भला मैं तो उनकी रचनाओं का बहुत प्रशंसक भी रहा हूं। आपकी जो प्रशंसा उन्होने की है तो आप उसके काबिल भी हैं ही आपकी रचनाएं भी बहुत अच्छी है। मेरी शुभकामनाएं।
नीरज जी को नीरज का नमन...नीरज जी एक ऐसे गीतकार हैं जो सदियों तक अपने गीतों के माध्यम से जन जन में जीवित रहेंगे...बिना भारी भरकम शब्दों के प्रयोग से उन्होंने आम बोलचाल की भाषा में ऐसे गीत रचे हैं जो अमर रहेंगे...आज आप के ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा...आप निसंदेह बहुत उच्च कोटि के लेखक हैं...सृजन का प्रवाह हमेशा यूँ ही बना रहे ये ही कामना है...
नीरज
नीरज जी को हम लोगों ने स्कूली किताबों तक में पढ़ा है. आज भी उनका कोई विकल्प नहीं है. आप पर उनका आशीष है..आप भाग्यवान हैं.
गोपाल दास 'नीरज' जितने महान कवि हैं, उतने ही महान व्यक्ति भी.वे शतायु हों,यही हमारी कामना है.
इस खूबसूरत संस्मरण को बाँटने हेतु साधुवाद.
नीरज जी को याद करना अच्छा लगा. इस संस्मरण में नीरज जी की नए कवियों के प्रति सदाशयता झलकती है.
बहुत संकोच में अपनी कवितायेँ मैंने उन्हें दिखायीं तो वे काफी खुश हुए और बोले - अरे! आप तो प्रशासन में होते हुए भी इतना अच्छा लिखते हैं. फिर तो बैठे-बैठे उन्होंने मेरी कई कवितायेँ सुनीं और उनकी सराहना की. जिस निश्छल भाव से वह मुझे सुनते, उसी भाव से मैं उनका मुरीद होता जाता....यह नीरज जी का बड़प्पन और पारखी नजर है की आपकी प्रतिभा को पहली ही नजर में पहचान गए...badhai.
संस्मरण के बहाने नीरज जी की चर्चा अच्छी लगी.
Yahan akar achha laga.Neeraj ji aur apse bhi mulakat ho gayi.
Bhaiya pranam.Bada sundar blog hai apka.NEERAJ Ji jaise manishiyon ka ap par ashish hai, so apki kalam men bhi usi roop men dhar hai.
Thank u friends for ur inspiring comments.
अच्छा लगा आपका संस्मरण. नीरज जी की बात जुदा है. मुझे भी उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त है.
बहुत खूब संस्मरण लिखा है.आपका प्रोफाइल पढ़कर और भी अच्छा लगा.
सचमुच आपको नीरज जी से मिलकर अच्छा लगा और मुझे आपका कमेन्ट मिलकर.
आपका धन्यवाद .
आपका मेरे ब्लॉग पर फिर स्वागत है.
''स्वामी विवेकानंद जयंती'' और ''युवा दिवस'' पर ''युवा'' की तरफ से आप सभी शुभचिंतकों को बधाई. बस यूँ ही लेखनी को धार देकर अपनी रचनाशीलता में अभिवृद्धि करते रहें.
अभी कुछ दिनों पहले लखनउ में उनपर एक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें चर्चित रचनाकारों ने नीरज जी की उपस्थिति में उनके गीत गाए। बहुत शानदार रहा कार्यक्रम। आपका आलेख पढकर स्मृतियॉं ताजा हो गयीं।
बहुत सुन्दर लेख है,
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
Aap dhanya hain ki Neraj jee se aapki mulaaqaat huee...kaash mereebhi aisee qismat hotee...sabse adhik pasandeeda kaviyonmese ek wo hain...unke geet ajramar hain...aur uswaqt filmon ke parshvgaayan me aawaazen aisee daivee thee ki sonepe suhaga ! Unke geetonko jinkee aawaaze milee wo bhee dhanya ho gaye(gaanewale) aur unke galese nikale suron ne Neeraj jeeko janmanas tak pohochaa diya.
Mujhe Neeraj jike baareme padhke behad khushee huee.
Pehlee baar aapke blogpe aayee hun...mere blogpe aaneka snehil nimantran detee hun !
Niraj ji ko naman hai. Ab to kafi bujurg ho chuke hain. Ek mhan hasti se mulakat k liye BDHAI....!
aapke blog par hazir ho gaye.Neeraj par sunder likh aapne. main bhi Neeraj ke geeton ka prashansak hun.shokiyon men ghola jaaye..... ke to kya kahne.
अपनी बात के लिए शहर बदल लेने का हौसला रखने वालों के बारे में सुना ही है, आपके यहाँ आते ही आपके व्यक्तित्व को देखते हुए कुछ ज्यादा अपेक्षाएं पाल बैठा, पोस्ट बहुत संक्षिप्त रही या फ़िर मेरी ये जानने कि इच्छा बड़ी है कि एक वरिष्ठ कवि ने दूसरे कवि से साहित्य के इतर क्या बातें की होंगी।
नीरज जी से मिल आये हैं और उन्होने आपके कविता संग्रह के बारे में कुछ लिखा१
वाकई बहुत किस्मत वाले हैं, नीरज जी ने तरीफ कर दी यह क्या कम बड़ा पुरस्कार है?
बधाई स्वीकार करें।
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