सूर्योपासना की अपने यहाँ दीर्घ परंपरा रही है। 'छठ पूजा' का महापर्व तो पूर्णतया सूर्य उपासना पर ही आधारित है। गुजरात के महेसाणा जनपद स्थित 'मोढेरा' का सूर्य मंदिर भारत के चार सूर्य मंदिरों में से एक है। अन्य में उड़ीसा का कोणार्क सूर्य मन्दिर, जम्मू का मार्तंड सूर्य मंदिर, उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा का कटारमल सूर्य मन्दिर शामिल हैं। पुष्पावती नदी के किनारे प्रतिष्ठित यह सूर्य मंदिर भारतवर्ष में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प-कला का बेजोड़ उदाहरण है।
इसके मंडप में सुन्दरता से गढ़े पत्थर के स्तम्भ अष्टकोणीय योजना में खड़े किये गये है जो अलंकृत तोरणों को आधार प्रदान करते हैं।
इन स्तंभों पर देवी-देवताओं के चित्र तथा रामायण, महाभारत आदि के प्रसंगों को अद्भुत सुन्दरता व बारीकी से उकेरा गया है। इस मन्दिर की स्थापत्य कला अति विशिष्ट है। इसका निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मन्दिर के गर्भगृह में प्रवेश करती है। मोढेरा के इस सूर्य मन्दिर को 'गुजरात का खजुराहो' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस मन्दिर की शिलाओं पर भी खजुराहो जैसी ही नक़्क़ाशीदार अनेक शिल्प कलाएँ मौजूद हैं। पूरे मन्दिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने प्रयोग नहीं हुआ है। कमल का फूल भगवान सूर्य का फूल माना जाता है। इसलिए पूरा मंडप औंधे कमल के आकार के आधार पर निर्मित किया गया है।
सभामण्डप के सामने तोरण द्वार के ठीक सामने एक आयताकार कुंड है, जिसे "सूर्य कुण्ड" कहते हैं (स्थानीय लोग इसे "राम कुण्ड" कहते हैं।) कुण्ड के जल-स्तर तक पहुँचने के लिये इसके अंदर चारों ओर प्लेटफार्म तथा सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा सन् 1026-1027 ई. में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। सूर्यवंशी सोलंकी वंश भगवान सूर्य को कुल देवता के रूप में पूजता था, इसी कारण उन्होंने यहाँ इस विशाल सूर्य मन्दिर की स्थापना करवाई थी। समय के थपेडों को सहते हुए भी यह मन्दिर अपनी भव्यता का प्रमाण प्रस्तुत करता है। वर्तमान समय में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और फ़िलहाल इस मंदिर में किसी प्रकार की पूजा नहीं होती है।
विभिन्न पुराणों में भी मोढेरा का उल्लेख मिलता है। 'स्कंदपुराण' और 'ब्रह्मपुराण' के अनुसार प्राचीन काल में मोढेरा के आस-पास का पूरा क्षेत्र 'धर्मरण्य' के नाम से जाना जाता था। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण के संहार के बाद अपने गुरु वशिष्ठ को एक ऐसा स्थान बताने के लिए कहा, जहाँ पर जाकर वह अपनी आत्मा की शुद्धि कर सकें और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पा सकें। तब गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को 'धर्मरण्य' जाने की सलाह दी थी। कहा जाता है भगवान राम ने ही धर्मारण्य में आकर एक नगर बसाया जो आज मोढेरा के नाम से जाना जाता है। श्रीराम यहाँ एक यज्ञ भी किया था। वर्तमान में यही वह स्थान है, जहाँ पर यह सूर्य मन्दिर स्थापित है।
मोढेरा भारत का पहला सोलर विलेज भी है।