बहुत पहले
एक कहानी पढ़ी थी
सूरज ने पूछा
मेरे बाद
कौन देगा प्रकाश?
एक टिमटिमाते
दीये ने कहा
मैं दूँगा।
पर देखता हूँ
इस समाज में
लोगों का झुण्ड चला जाता है
कंधों से कंधा टकराते
हर कोई सूरज की
पहली किरण को
लेना चाहता है
अपने आगोश में
पर नहीं चाहता वह
नन्हा दीया बनना
जो सूरज के बाद भी
दे सके प्रकाश।
13 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति |
बधाई ||
सुन्दर परिपक्व रचना,
सभी लाभार्थी होना चाहते हैं।
एक वास्तविक सोच के साथ संवेदनशील काव्य के के जी बधाई
अगर ऐसा संभव हो जाए तो फिर जरुरत ही कहाँ रह जायेगी किसी को सूरज को आगोश में लेने की .......!
जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
लिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |
लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |
पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||
आइये शुक्रवार को भी --
http://charchamanch.blogspot.com/
पर नहीं चाहता वह
नन्हा दीया बनना
जो सूरज के बाद भी
दे सके प्रकाश। ...Khubsurat bhavabhivyakti..badhai !!
पर नहीं चाहता वह
नन्हा दीया बनना
जो सूरज के बाद भी
दे सके प्रकाश। ...Khubsurat bhavabhivyakti..badhai !!
बहुत ही गहन भावों की अभिव्यक्ति ....... सुंदर कविता.
.
पुरवईया : आपन देश के बयार
It's beautiful poem, encouraging to us for become a little lamp for making social change for bright future of humanity.
पर नहीं चाहता वह
नन्हा दीया बनना
जो सूरज के बाद भी
दे सके प्रकाश।
...आज के दौर में काफी प्रासंगिक बात..उत्तम कविता ..बधाई.
पर नहीं चाहता वह
नन्हा दीया बनना
जो सूरज के बाद भी
दे सके प्रकाश।
...आज के दौर में काफी प्रासंगिक बात..उत्तम कविता ..बधाई.
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
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