राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लम्बे समय से चल रही है। यद्यपि जोधपुर-राजस्थान के अपने 11 महीने के कार्यकाल में राजस्थानी भाषा में प्रकाशित वाली पत्र-पत्रिकाएँ विरले ही देखने को मिलीं, वो भी तब जबकि अधिकतर दैनिक से लेकर मासिक पत्र-पत्रिकाओं तक के पोस्टल रजिस्ट्रेशन की माँग डाक विभाग में आती रहती हैं। अपने इस विचार को हमने स्थानीय बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों-पत्रकारों से भी व्यक्त किया। ... खैर, कल 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' था और इस बीच यहाँ से पिछले 35 वर्षों से राजस्थानी भाषा में प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका 'माणक' से रूबरू होने का मौका मिला, जिसके संपादक पदम मेहता ने माणक के 35 वर्षों के सफरनामे को लेकर प्रकाशित अंक हमें भेंट किया। आशा करता हूँ कि आने वाले दिनों में राजस्थानी भाषा में निकलने वाली अन्य पत्र-पत्रिकाएँ से भी रूबरू होने का सु-अवसर मिलेगा !!
इस ब्लॉग पर आप रूबरू होंगे कृष्ण कुमार यादव की साहित्यिक रचनात्मकता और अन्य तमाम गतिविधियों से...
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सोमवार, 22 फ़रवरी 2016
रविवार, 14 फ़रवरी 2016
प्यार का भी भला कोई दिन होता है ...
प्यार का भी भला कोई दिन होता है। इसे समझने में तो जिंदगियां गुजर गईं और प्यार आज भी बे-हिसाब है। कबीर ने यूँ ही नहीं कहा कि 'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय' . प्यार का न कोई धर्म होता है, न जाति, न उम्र, न देश और न काल। … बस होनी चाहिए तो अंतर्मन में एक मासूम और पवित्र भावना। प्यार लेने का नहीं देने का नाम है, तभी तो प्यार समर्पण मांगता है। कभी सोचा है कि पतंगा बार-बार दिये के पास क्यों जाता है, जबकि वह जानता है कि दीये की लौ में वह ख़त्म हो जायेगा, पर बार-बार वह जाता है, क्योंकि प्यार मारना नहीं, मर-मिटना सिखाता है। तभी तो कहते हैं प्यार का भी भला कोई नाम होता है। यह तो सबके पास है, बस जरुरत उसे पहचानने और अपनाने की है न कि भुनाने की।
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