1857 के गदर को गुजरे सदी बीत गई, पर गाहे-बगाहे चर्चा में बना रहता है। सोचकर कितना अजीब लगता है कि 1857 के गदर में अंग्रेजों के जुल्मों के शिकार हुए 282 भारतीय सैनिकों को 157 साल बाद 'आजादी' नसीब हो पाई है। अमृतसर के अजनाला में शहीदां वाला खूह (शहीदों का कुआं) की खुदाई में इन वीर सैनिकों की अस्थियां मिल रही हैं। इन अस्थियों को पूरे सम्मान के साथ हरिद्वार और गोइंदवाल साहिब ले जाकर विसर्जित किया जाएगा, जिससे शहीदों की आत्माओं को शांति मिल सके। कुएं की खुदाई का काम गुरुद्वारा शहीदगंज की शहीदां वाला खूह प्रबंधक कमेटी द्वारा कराया जा रहा है।
इतिहास के पन्ने पलटें तो, 30 जुलाई 1857 को मेरठ छावनी से निकली विद्रोह की चिंगारी लाहौर की मियामीर छावनी तक पहुंच गई थी। बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 26 रेजिमेंट के 500 सैनिकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। इसकी सूचना अंग्रेजों को मिली तो विद्रोह को दबाने के लिए अगले दिन 218 सैनिकों को अजनाला के पास रावी नदी इलाके में गोली मार दी गई। 282 सैनिकों को अमृतसर का डिप्टी कमिश्नर फैड्रिक हेनरी कूपर गिरफ्तार करके अजनाला ले गया। यहां सुबह 237 सैनिकों को गोली मारकर कुएं में फेंक दिया गया, जबकि 45 सैनिकों को जिंदा ही कुएं में दफना दिया गया। इसके बाद कुएं को मिट्टी से भर दिया गया। तब से लेकर आज तक इनकी किसी ने खैर-खबर नहीं ली। स्वतंत्रता संग्राम के ये रणबांकुरे शहीद होने के 157 साल तक 'आजादी' को तरसते रहे। आखिरकार अब जाकर शहीदां वाला खूह की खुदाई की जा रही है, जिससे इन शहीद सैनिकों की आत्माओं को शांति नसीब होगी।
कुएं को महज 8 फुट ही खोदा गया कि अस्थियों का मिलना शुरू हो गया। इस कार्य में सैकड़ों महिलाएं भी लगीं हैं। पूरा काम इस हिसाब से किया जा रहा है कि दफन शहीदों की अस्थियों को नुकसान पहुंचे। खुदाई वाले इलाके का माहौल भावुक बना हुआ है। जैसे ही कोई अस्थि मिलती है पूरा माहौल भावुक हो जाता है। यहाँ तक कि बारिश के बावजूद भी कुएं की खुदाई का काम जारी रहा, ऐसा लगा मानो प्रकृति भी इस अवसर पर ग़मगीन है। कुएं की खुदाई तब तक जारी रहेगी, जब तक अस्थियां पूरी तरह नहीं मिल जातीं। सेवकों ने कुएं से निकाली गई मिट्टी को एक जगह इकट्ठा कर लिया है। इस मिट्टी का इस्तेमाल इन शहीदों की याद में बनाए जाने वाले स्मारकों के लिए किया जाएगा। कार सेवा कर रही गुरुद्वारा शहीदगंज की शहीदां वाला खूह प्रबंधक कमिटी अब इन अस्थियों को कलश में भरकर सम्मानपूर्वक जुलूस की शक्ल में हरिद्वार और गोइंदवाल साहिब लेकर जाएगी। इसके बाद अस्थियों की जांच करवाई जाएगी। सरकार की ओर से शहीदों के संस्कार और उनकी समाधियों के निर्माण के लिए उचित जगह मिलने पर इनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
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