सोमवार, 1 अगस्त 2011

प्रकृति के नियम


प्रकृति ने इस धरा पर
जीने के नियम बनाये
साथ ही हर नियम को
किसी न किसी जीव से जोड़ दिया
मुर्गा बांग देकर
सुबह होना बताता है
कौआ मंुडेर पर काँव-काँव कर
पाहुन का आना बताता है
मोर नाच-नाच कर
सावन की बहार बताता है
कोयल कू-कू कर
बसन्त का आगमन बताती है
गौरेया की चीं-चीं
आँगन में खुशियों का
सन्देश लाती है
शायद मानवता का
उनसे कोई गहरा नाता है।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन कविता..बधाई हो कृष्ण जी.

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  2. बेहतरीन कविता..बधाई हो कृष्ण जी.

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  3. प्रकृति ने इस धरा पर
    जीने के नियम बनाये
    साथ ही हर नियम को
    किसी न किसी जीव से जोड़ दिया

    ...Nice Expressions..congts.

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  4. बहुत ही सुंदर कविता बधाई और शुभकामनायें भाई के० के० यादव जी

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  5. बहुत ही सुंदर कविता बधाई और शुभकामनायें भाई के० के० यादव जी

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  6. प्रकृति का यह चक्र चलता रहे, यह देखना भी हमारी जिम्मेदारी है. जिस तरह से पशु-पक्षी और जैव विविधता विलुप्त हो रही है, वह इसे खतरे में डाल सकती है.

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  7. वाह बहुत ही शानदार कविता है।

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  8. विषय के साथ न्याय परिलक्षित है आपकी पंक्तियों में।

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  9. लेकिन मनुष्य ने प्रकृति के नियमों को तोड़ कर अपने लिए मुसीबत खड़ी कर ली है।

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  10. waah lajawab......bahut acche tarike se prakriti ko paribhashit kiya hai....

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  11. सुंदर.
    प्राकृतिक रूप से, अंडमान विश्व के सबसे सुंदर स्थानों में से एक है, अधिकांश भारतीयों ने केवल इसके बारे में सुन रखा है (और वह भी केवल काले पानी के संदर्भ में), बहुत कम हैं जिन्हें यहां आना नसीब हुआ है.

    आशा है, आप इसकी प्राकृतिक छटा से भी अन्य ब्लागरों को समय समय पर नियमित रूप से अवगत करवाते रहेंगे.

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