
'शब्द सृजन की ओर' पर 6 अक्तूबर, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट
अस्तित्व के लिए जूझते अंडमान के आदिवासी को प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक पत्र 'जनसत्ता' ने २२ नवम्बर 2010 को अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर नियमित स्तम्भ 'समान्तर' में स्थान दिया ... आभार ! इससे पूर्व जनसत्ता के इसी स्तम्भ में 'शब्द सृजन की ओर' पर 22 अप्रैल, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट
प्रलय का इंतजार को भी स्थान दिया गया था...बहुत-बहुत आभार !!
बहुत-बहुत बधाई !!
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति यादव जी ... बधाई ....
जवाब देंहटाएं... बधाई ....
जवाब देंहटाएंआपको बधाई.
जवाब देंहटाएंभैया आपका यह आलेख हमने जनसत्ता में पढ़ा था...वाकई अंडमान में आदिवासियों की स्थिति विचलित कर देती है.
जवाब देंहटाएंभैया आपका यह आलेख हमने जनसत्ता में पढ़ा था...वाकई अंडमान में आदिवासियों की स्थिति विचलित कर देती है.
जवाब देंहटाएंफिर से पढ़ लेते हैं जी...बधाई.
जवाब देंहटाएंCongts.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई. आपका लेखन बहुत ही उम्दा किस्म का है. लिखते रहिये......
जवाब देंहटाएंउपेन्द्र
( www.srijanshikhar.blogspot.com ) पर " राजीव दीक्षित जी का जाना "
बहुत अच्छा लेख ....बधाई ...
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई ........
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई हो आपको।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई स्वीकार करें........ देर से ही सही..... पर बेहतरीन को अपना स्थान मिल जाता है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाईयाँ।
जवाब देंहटाएंहमने भी इसे जनसत्ता में पढ़ा था..मुबारकवाद.
जवाब देंहटाएंवाकई अंडमान में आदिवासियों की स्थिति विचलित कर देती है.
जवाब देंहटाएंबधाई व शुभकामनाएं!!!
जवाब देंहटाएंCongts. to Papa.
जवाब देंहटाएंआपका लेखन प्रभावशाली है, अत: चर्चा स्वाभाविक है...बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंजनसत्ता में आपके ब्लॉग की पोस्ट की चर्चा पर बधाई. बड़ा विचारोत्तेजक विषय आपने उठाया है.
जवाब देंहटाएंआपके और आकांक्षा जी के लेख अक्सर अंतर्जाल और प्रतिष्ठित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में पढता रहता हूँ. वाकई आप दोनों खूब लिखते हैं.
जवाब देंहटाएंअंडमानी आदिवासियों का विलुप्त होना चिंताजनक है, आपने अच्छा ध्यानाकर्षण किया.
जवाब देंहटाएंजनसत्ता में आपके लेख के प्रकाशन पर बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंजनसत्ता में तो नहीं, , पर यहाँ जरुर पढ़ लिया...बेहद रोचक जानकारी.
जवाब देंहटाएंअंडमानी आदिवासियों का विलुप्त होना चिंताजनक है, आपने अच्छा ध्यानाकर्षण किया.
जवाब देंहटाएं