गुजरात-दंगों के दौरान यह कविता मैंने लिखी थी. गौरतलब है कि गुजरात, गाँधी जी की जन्मस्थली भी है. आज गाँधी-जयंती पर इसे ही यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ-
एक बार फिर
गाँधी जी खामोश थे
सत्य और अहिंसा के प्रणेता
की जन्मस्थली ही
सांप्रदायिकता की हिंसा में
धू-धू जल रही थी
क्या इसी दिन के लिए
हिन्दुस्तान व पाक के बंटवारे को
जी पर पत्थर रखकर स्वीकारा था!
अचानक उन्हें लगा
किसी ने उनकी आत्मा
को ही छलनी कर दिया
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई।
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
जवाब देंहटाएंपर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई।
...मार्मिक भाव....प्रभावित हूँ.
गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.
जवाब देंहटाएंगाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.
जवाब देंहटाएंइक्कीसवीं सदी में हे राम कहना भी मुश्किल हो गया है । कम से कम राम के नाम पर तो राजनीति नहीं होनी चाहिए ।
जवाब देंहटाएंमहात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री जी को शत शत नमन ।
राष्ट्रपिता को नमन।
जवाब देंहटाएंa real tribute to Mahatma
जवाब देंहटाएंthanx sir for such heart rendering poem
संवेदनशील प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसत्य और अहिंसा के प्रणेता
जवाब देंहटाएंकी जन्मस्थली ही
सांप्रदायिकता की हिंसा में
धू-धू जल रही थी
....यही तो देश का दुर्भाग्य है....कविता बेजोड़ है..बधाई.
गाँधी और शास्त्री जयंती पर ऐसे महापुरुषों को शत-शत नमन !!
जवाब देंहटाएंअब तो लोगों ने 'राम' का नाम भी बदनाम कर दिया है.......गांधी जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआज के दौर में काफी प्रासंगिक है यह कविता...बधाई.
जवाब देंहटाएंbhai k k yadav ji badhai sundar vicharottejak kavita ke liye
जवाब देंहटाएंगाँधी-जयंती पर बहुत ही सुन्दर कविता मार्मिक भावों से भरी हुई......
जवाब देंहटाएंसुन्दर और मार्मिक भाव। बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंअद्भुत...शब्दों को सुन्दर धार दी है. आपके शब्द-शिल्प का कद्रदान हूँ.
जवाब देंहटाएंदिलचस्प कविता...!!
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