शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

हे राम...


गुजरात-दंगों के दौरान यह कविता मैंने लिखी थी. गौरतलब है कि गुजरात, गाँधी जी की जन्मस्थली भी है. आज गाँधी-जयंती पर इसे ही यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ-

एक बार फिर
गाँधी जी खामोश थे
सत्य और अहिंसा के प्रणेता
की जन्मस्थली ही
सांप्रदायिकता की हिंसा में
धू-धू जल रही थी
क्या इसी दिन के लिए
हिन्दुस्तान व पाक के बंटवारे को
जी पर पत्थर रखकर स्वीकारा था!
अचानक उन्हें लगा
किसी ने उनकी आत्मा
को ही छलनी कर दिया
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई।

16 टिप्‍पणियां:

  1. उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
    पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
    उन्हें रौंदती चली गई।

    ...मार्मिक भाव....प्रभावित हूँ.

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  2. गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.

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  3. गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.

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  4. इक्कीसवीं सदी में हे राम कहना भी मुश्किल हो गया है । कम से कम राम के नाम पर तो राजनीति नहीं होनी चाहिए ।
    महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री जी को शत शत नमन ।

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  5. a real tribute to Mahatma

    thanx sir for such heart rendering poem

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  6. सत्य और अहिंसा के प्रणेता
    की जन्मस्थली ही
    सांप्रदायिकता की हिंसा में
    धू-धू जल रही थी

    ....यही तो देश का दुर्भाग्य है....कविता बेजोड़ है..बधाई.

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  7. गाँधी और शास्त्री जयंती पर ऐसे महापुरुषों को शत-शत नमन !!

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  8. अब तो लोगों ने 'राम' का नाम भी बदनाम कर दिया है.......गांधी जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक शुभकामनाएं

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  9. आज के दौर में काफी प्रासंगिक है यह कविता...बधाई.

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  10. गाँधी-जयंती पर बहुत ही सुन्दर कविता मार्मिक भावों से भरी हुई......

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  11. सुन्दर और मार्मिक भाव। बहुत बहुत बधाई

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  12. अद्भुत...शब्दों को सुन्दर धार दी है. आपके शब्द-शिल्प का कद्रदान हूँ.

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