गुरुवार, 26 अगस्त 2010

तुम्हारी खामोशी


तुम हो
मैं हूँ
और एक खामोशी
तुम कुछ कहते क्यूँ नहीं
तुम्हारे एक-एक शब्द
मेरे वजूद का
अहसास कराते हैं
तुम्हारी पलकों का
उठना व गिरना
तुम्हारा होठों में ही
मंद-मंद मुस्कुराना
तुम्हारा बेकाबू होती
साँसों की धड़कनें
तुम्हारे शरीर की खुशबू
तुम्हारी छुअन का अहसास
सब कुछ
इस खामोशी को
झुठलाता है।

21 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे शरीर की खुशबू
    तुम्हारी छुअन का अहसास
    सब कुछ
    इस खामोशी को
    झुठलाता है

    अद्भुत एहसास ...सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...

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  2. अति सुंदर रचना जी धन्यवाद

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  3. सर जी,इस खामोशी की बात ही निराली है....आपकी कविता की तरह......

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  4. ख़ूबसूरत एहसास के साथ भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  5. तुम्हारे शरीर की खुशबू
    तुम्हारी छुअन का अहसास
    सब कुछ
    इस खामोशी को
    झुठलाता है।

    ...So Romantic...Great Expressions.

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  6. तुम्हारे शरीर की खुशबू
    तुम्हारी छुअन का अहसास
    सब कुछ
    इस खामोशी को
    झुठलाता है।

    ...So Romantic...Great Expressions.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर मनमोहक भाव.बधाई!!!

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  8. बहुत सुन्दर कविता...प्रेम की सघन अनुभूति..बधाई.

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  9. बहुत कुछ अनकहा...यही तो प्यार है. सशक्त रचना..बधाई.

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  10. बहुत कुछ अनकहा...यही तो प्यार है. सशक्त रचना..बधाई.

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  11. मंगलवार 31 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  12. @ संगीता जी,

    इस चर्चा के लिए आभार !!

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  13. आप सभी लोगों ने इन भावों को पसंद किया...आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें.

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  14. तुम्हारे शरीर की खुशबू
    तुम्हारी छुअन का अहसास

    aise me khamoshi hi munasib hai... kuchh bolne se ehsason ko hum ek had me bandh denge...

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