मंगलवार, 25 मई 2010

कितने सुंदर हैं गुब्बारे

सरस पायस पर प्रकाशित मेरी बाल कविता कितने सुंदर हैं गुब्बारे का लुत्फ़ आप भी उठाइए। रावेन्द्रकुमार रवि जी ने इसमें कुछेक परिवर्तन कर इसे और भी रोचक बना दिया है... आभार !!

लाल-बैंगनी-हरे-गुलाबी,
रंग-बिरंगे हैं ये प्यारे।
एक नहीं हैं इतने सारे,
कितने सुंदर हैं गुब्बारे।

गुब्बारों की दुनिया होती,
कितनी-प्यारी और निराली।
हँस देते रोनेवाले भी,
खिल जाती चेहरे पर लाली।

हम सब दौड़ें इनके पीछे,
कसकर पकड़े इन्हें हाथ में।
सीना ताने घूम रहे हैं,
हम सब इनको लिए साथ में।

32 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर गुब्बारे..पढ़कर अपना बचपन याद आ गया, जब मेले में जाकर गुब्बारा जरुर खरीदते थे.

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  2. गुब्बारों की दुनिया होती,
    कितनी-प्यारी और निराली।
    हँस देते रोनेवाले भी,
    खिल जाती चेहरे पर लाली।

    ...यही तो गुब्बारों की महिमा है..सुन्दर बाल-कविता.

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  3. गुब्बारे तो मुझे भी बहुत प्रिय हैं. इन्हें देखते ही मेरा बचपना जग जाता है. भाई कृष्ण कुमार जी ने बड़ी मनभावन कविता लिखी..हार्दिक बधाई.

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  4. अले वाह कित्ते प्याले-प्याले गुब्बाले. ये तो मुझे भी चाहिए..

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  5. पापा ने तो बड़ी सुन्दर-सुन्दर कविता लिखी इन गुब्बालों पर..बढ़िया है.

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  6. यहाँ तो खूब गुब्बारे उड़ाए जा रहे हैं. आपकी बाल-कविता तो मन को भा गई. बैठकर अपनी भांजी को सुना रही हूँ.

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  7. लाल-बैंगनी-हरे-गुलाबी,
    रंग-बिरंगे हैं ये प्यारे।
    एक नहीं हैं इतने सारे,
    कितने सुंदर हैं गुब्बारे।
    ;;;कितने दिनों बाद गुब्बारों पर कोई कविता पढ़ी..मन प्रसन्नचित !!

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  8. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखी है गुब्बारों पर. वाकई काबिले तारीफ़ है! आपकी यह रचना पढ़कर मुझे अपना गाँव और फिर गुब्बारों की याद आ गयी! अब तो गुब्बारे हर जगह दिख जाते हैं, पर पहले तो ये यदा-कदा ही दिखते थे. रवि जी ने भी सरस पायस पर इसे खूबसूरती से प्रस्तुत किया है.

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  9. चलिए इसी बहाने एक बार फिर से बचपना तो लौटा. सड़कों के किनारे गुब्बारे लेकर दौड़ते बच्चों को देखता हूँ तो लगता है की एक बार फिर से वही यादें...

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  10. और मैं भी इसे रश्मि जी की तरह अपने बेटे को सुनाऊंगा.

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  11. हँस देते रोनेवाले भी,
    खिल जाती चेहरे पर लाली।
    ..बहुत सुन्दर व सटीक लिखा..बधाई.

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  12. गुनगुनाने लायक मनभावन शिशु- गीत...बधाई.

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  13. बेनामी25 मई, 2010

    लाल-बैंगनी-हरे-गुलाबी,
    रंग-बिरंगे हैं ये प्यारे।
    एक नहीं हैं इतने सारे,
    कितने सुंदर हैं गुब्बारे।
    *********************
    बड़ी प्यारी कविता लिखी अपने. कुछ गुब्बारे हमें भी दे दें.

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  14. बेनामी25 मई, 2010

    बिटिया पाखी को तो गुब्बारों से खेलने में बड़ा मजा आता होगा...

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  15. बेनामी25 मई, 2010

    ...गुब्बारों की निराली दुनिया भला किसे नहीं भाती.

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  16. यह तो खूब रही. सभी को अपना बचपन याद आ गया गुब्बारे देखकर...

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  17. @ Rashmi ji,

    यह भी बताइयेगा कि भांजी को कैसी लगी यह बाल कविता ??

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  18. @ Shyama ji,

    और आप भी बताइयेगा कि बेटे को कैसी लगी यह बाल कविता ??

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  19. @ अभिलाषा जी,

    पाखी तो खूब मस्ती करती हैं. आपने कह ही दिया कि गुब्बारों की निराली दुनिया भला किसे नहीं भाती.

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  20. हम सब दौड़ें इनके पीछे,
    कसकर पकड़े इन्हें हाथ में।
    सीना ताने घूम रहे हैं,
    हम सब इनको लिए साथ में।...khub rahi.

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  21. लीजिये, सरस-पायस पर भी आपका यह गीत पढ़ आये.

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  22. बहुत प्यारी बाल कविता..मजा आया.

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  23. पांचवी क्लास की हिन्दी की किताब में एक कहानी सह संस्मरण था , शीर्षक था -गुब्बारे वाला . उस कहानी में चाचा नेहरु का जिक्र था ,जो बच्चों के लिए एक गरीब गुब्बारे वाले से उसके सारे गुब्बारे खरीद लेते है.
    आपकी कविता पढ़कर मुझे बचपन की याद आ गयी.

    http://madhavrai.blogspot.com/
    http://qsba.blogspot.com/

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  24. पापा ( मृत्युंजय ) ने टिप्पड़ी दे दी है , मेरी जरुरत ही नहीं है

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  25. बहुत सुन्दर!!

    मन तरंगित हुआ गुब्बारे देख!

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  26. kavita padh laga main bhi bachha ho gaya hoo , sunder rang bher hai gobbaro me,
    sadhuwad ek achchi kavita ke liye,

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  27. At this stage this poem from u, shows your great concern with the children.

    too much interesting .............

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  28. आप सभी लोगों को हमारी यह बाल-कविता पसंद आई, आपने इसे सराहा..आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें !!

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