मंगलवार, 19 जनवरी 2010

कानपुर से अंडमान के सफ़र की तैयारी

जब भी आप किसी जगह से स्थानांतरित/प्रोन्नति होते हैं, तो हमसफ़र साथी भी बड़े जोश के साथ विदाई देते हैं। कुछ को गम होता है तो कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो खुश होते हैं कि चलो इससे छुट्टी मिली। यह मानवीय प्रवृत्ति का परिचायक है। सुख-दुःख, राग-द्वेष जीवन के अभिन्न अंग हैं व्यक्ति एक सफ़र पूरा कर नए के लिए तैयार होता है और साथ में ले जाता है खट्टी-मीठी यादें। वक़्त के साथ नए परिवेश में ढलकर कुछ दिनों तक वहां का हो जाता है, फिर अगले पड़ाव की तैयारी करने लगता है। सरकारी नौकरी का यह तो अभिन्न भाग है फ़िलहाल कानपुर में मेरे अधिकारी साथियों ने मुझे जो प्यार-स्नेह दिया, उसे विस्मृत नहीं कर सकता (यहाँ पर कार्यालय में आयोजित विदाई-समारोह (18 जनवरी, 2010) के कुछ दृश्य आप देख सकते हैं।)

8 टिप्‍पणियां:

  1. बस यादें रह जाती हैं...खुबसूरत चित्र.

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  2. बधाई. आपका अगला सफ़र मंगलमय हो.

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  3. Yahi to jiwan hai. Vyakti ke jiwan men prawah bana rahna chahiye.

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  4. Jindadil log hi agle safar ki taiyari karte hain, kitne log to ek hi safar men thakkar baith jate hain.

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  5. आप तो राहुल सांकृत्यायन जी के जिले से हैं और उनकी तरह ही घुमक्कड़ी भी हैं. इस यायावर-प्रकृति में ही कुछ नए सृजन की सम्भावना बनती है. हमारी तरफ से मुबारकवाद.

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  6. कुछ को गम होता है तो कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो खुश होते हैं कि चलो इससे छुट्टी मिली। यह मानवीय प्रवृत्ति का परिचायक है।
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    दार्शनिक अंदाज़ में लिखी महत्वपूर्ण बात...नए पद की बधाइयाँ.

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  7. सुन्दर यादें..खूबसूरत दृश्य.

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