शनिवार, 30 अगस्त 2008

बचपन

मैं डरता हूँ
अपना बचपना खोने से
सहेज कर रखा है उसे
दिल की गहराइयों में
जब भी कभी व्यवस्था
भर देती है आक्रोश मुझमें
जब भी कभी सच्चाई
कड़वी लगती है मुझे
जब भी कभी नहीं उबर पता
अपने अंतर्द्वंदों से
जब भी कभी घेर लेती है उदासी
तो फिर लौट आता हूँ
अपने बचपन की तरफ
और पाता हूँ एक मासूम
और निश्छल सा चेहरा
सारे दुःख -दर्दों से परे
अपनी ही धुन में सपने बुनता।
***कृष्ण कुमार यादव***

6 टिप्‍पणियां:

  1. कृष्ण जी बहुत खूब लिखा है आप ने बधाई ..

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  2. बचपन को आपने सहेज कर रखा है, बधाई.

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  3. जब भी कभी घेर लेती है उदासी
    तो फिर लौट आता हूँ
    अपने बचपन की तरफ
    शायद यही हर किसी कि दास्ताँ है !!

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  4. बेनामी03 दिसंबर, 2008

    very nice and heart touching, god bless you

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  5. जब भी कभी सच्चाई
    कड़वी लगती है मुझे
    जब भी कभी नहीं उबर पता
    अपने अंतर्द्वंदों से
    जब भी कभी घेर लेती है उदासी
    तो फिर लौट आता हूँ
    अपने बचपन की तरफ
    ........sahaj bhav, sundar prastuti.

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