रविवार, 22 जून 2008

तुम



सूरज के किरणों की पहली छुअन

थोडी अल्हड़ -सी

शरमाई हुई सकुचाई हुई

कमरे में कदम रखती है
वही किरण

अपने तेज व अनुराग से
वज्र पत्थर को भी
पिघला जाती है
शाम होते ही
ढलने लगती हैं किरणे
जैसे की अपना सारा निचोड़
उन्होंने धरती को दे दिया हो
ठीक ऐसे ही तुम हो।
***कृष्ण कुमार यादव ***

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी17 दिसंबर, 2008

    सूरज के किरणों की पहली छुअन
    थोडी अल्हड़ -सी
    शरमाई हुई सकुचाई हुई
    कमरे में कदम रखती है
    .....लाजवाब पंक्तियाँ, अतिसुन्दर.

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