गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

विश्वास..



ताले
यानी धातु की बनी एक वस्तु
कितने निश्चिन्त हो जाते हैं
इन्हें घरों में लगाकर
दरवाजों की कुंडियों में
मजबूती से लटकता हुआ
चोर भी एक बार देख
शरमा जाता है इसे
लेकिन
जब कभी वार
करता है इस पर
अंत तक लड़ता है
यह पहरेदार की तरह
मानो, धातु नहीं जीवंत हो
शायद वह जानता है
मालिक का कितना
विश्वास है उस पर।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  2. बहुत गहरी सोच का परिचायक है ये कविता।

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  3. शायद वह जानता है
    मालिक का कितना
    विश्वास है उस पर। ....बहुत खूब लिखा जी...बधाई.

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  4. शायद वह जानता है
    मालिक का कितना
    विश्वास है उस पर। ....बहुत खूब लिखा जी...बधाई.

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  5. इस रचना के माध्यम से ताले के जीवन को बेहतरीन तरीके से शब्दों में पिरोया है आपने... बेहतरीन प्रयास!!!

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  6. विश्वास है उस पर ,बहुत अच्छी प्रस्तुति....

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  7. लोहे का ताला, विश्वास का प्रतीक।

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  8. बहुत सुन्दर और समसामयिक पोस्ट...बधाई.

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  9. बेजोड़ कविता...इसे कहते हैं, जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि.

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