इस ब्लॉग पर आप रूबरू होंगे कृष्ण कुमार यादव की साहित्यिक रचनात्मकता और अन्य तमाम गतिविधियों से...
मंगलवार, 15 जून 2010
मानवता के दुश्मन
रात का सन्नाटा अचानक चीख पड़ती हैं मौतें किसी ने हिन्दुओं को दोषी माना तो किसी ने मुसलमां को पर किसी ने नहीं सोचा कि न तो ये हिंदू थे न मुसलमां बस मानवता के दुश्मन थे।
waah bahut khoob...
जवाब देंहटाएंचन्द पंक्तिया और सच का सामना
जवाब देंहटाएंयही तो होता आया है
बहुत सुन्दर
बिलकुल सच्ची बात
जवाब देंहटाएंsach kah diya aapne
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
अंतिम पंक्तियों ने दिल को छू लिया.... बहुत सुंदर.....
जवाब देंहटाएंऐ आसमान तेरे,
जवाब देंहटाएंखुदा का नहीं है खौफ।
डरते हैं ऐ ज़मीन,
तेरे इन्सान से हम।
गज़ब्……………………बिल्कुल सही कहा।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक किन्तु सत्य का चित्रण
जवाब देंहटाएंबधाई
गज़ब के.के. जी ..मान गए आपकी रचनात्मकता को..शत-शत बधाई !!
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में धारदार बात...कायल हूँ आपका.
जवाब देंहटाएंएक सच, जो हम रोज समाज में देखते हैं..अनुपम कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत बड़ी बात कह दी आपने कृष्ण कुमार जी . काश कि हर कोई ऐसा ही सोचता.
जवाब देंहटाएंन तो ये हिंदू थे न मुसलमां
जवाब देंहटाएंबस मानवता के दुश्मन थे।
....आपने तो हमारे मन की बात कह दी...बधाई.
मुझे भी पसंद आई पापा की यह कविता...
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों को हमारी यह कविता पसंद आई, आपने इसे सराहा..आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सोच...बेहतरीन रचना.
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