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रविवार, 1 जुलाई 2018

स्मृतियों में इलाहाबाद.... -कृष्ण कुमार यादव

जिंदगी के प्रवाह में कुछेक शहरों का आपकी जिंदगी में अहम स्थान होता है, मेरे लिए यह शहर इलाहाबाद है। एक ऐसा शहर जो कभी विद्यार्थियों के लिए अध्ययन का स्वर्ग था। कक्षा 12 पास करते-करते लोगों के मन की उड़ान अपनी कैरियर की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अनायास ही इलाहाबाद की तरफ उन्मुख हो जाती थी, सो हमारे साथ भी ऐसा हुआ। वर्ष 1994 में जब ग्रेजुएशन हेतु हमने इलाहाबाद में कदम रखा तो ममफोर्डगंज हमारी शरण स्थली बनी। यह पॉश इलाका तभी से हमारी आँखों में बस गया और वर्ष 2001 में आई.ए.एस. परीक्षा में सफल होने के बाद जब हमने इलाहाबाद छोड़ा, तब तक फौव्वारे चौराहे के पास ही किराये के कमरे में अकेले रहे। मुझे यह भी सौभाग्य प्राप्त हुआ कि जिस शहर में कभी एक विद्यार्थी के रूप में रहकर अपना कैरियर बनाया, उसी शहर में एक अधिकारी के रूप में निदेशक (डाक सेवाएँ), इलाहाबाद परिक्षेत्र के पद पर फरवरी 2012 से मार्च 2015 तक तीन वर्षों तक कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। वाकई यह अपने आप में एक सुखद अनुभव था।

इलाहाबाद शुरू से ही एक प्रगतिशील शहर रहा है। यहाँ की बोली की मिठास व तेवर इसे अन्य शहरों से अलग करते हैं। नेहरू व गाँधी परिवार की विरासत सहेजे आनद भवन से लेकर क्रांतिकारी आजाद की दास्ताँ सुनाते अल्फ्रेड पार्क की राहों पर न जाने कितनी चहलकदमी की होगी। यहाँ इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला। 

1887 में स्थापित ’पूरब का ऑक्सफोर्ड‘ कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अपनी अलग ही ऐतिहासिकता है।  इस संस्थान से शिक्षा प्राप्त कर देश-दुनिया को नई ऊँचाईयाँ प्रदान करने वालों की एक लम्बी सूची है। राजनीति से लेकर न्यायपालिका, प्रशासन तक ही नहीं बल्कि शिक्षा, साहित्य, कला व संस्कृति के क्षेत्र में भी। कभी इस विश्वविद्यालय को सिविल सर्विसेज की फैक्ट्री कहा जाता था। आज भी एक वाकया याद आता है। त्रिपाठी चौराहे पर स्थित बनारसी चाय की दुकान पर एक बार दोस्तों के साथ चाय पी रहा था कि एक कार आकर रुकी। कार से एक अधेड़ सज्जन उतरे और एक छात्र का नाम लेकर पूछा कि वह कहाँ मिलेगा ? हम लोगों ने कहा कि उसका कोई पता तो होगा। इस पर वे तुनककर बोले, अरे भाई ! वह इस बार आई. ए. एस. की परीक्षा में सफल हुआ है और तुम लोग उसे नहीं जानते। हम लोगों ने हँसते हुए जवाब दिया कि अंकल जी ! यहाँ तो हर साल आई.ए.एस. और पी.सी.एस. की नई फसल लहलहाती है, भला बिना पते व परिचय के कहाँ से ढूँढ पाएंगे। बात ही बात में पता चला की उन्होंने अपने शहर में अख़बार में पढ़ा कि उनके जिले से किसी छात्र का आई.ए.एस. में सलेक्शन हुआ है और फिर शादी के प्रयोजन से उससे मिलने सीधे इलाहाबाद ही आ गए। 


इलाहाबाद एक अत्यन्त पवित्र नगर है, जिसकी पवित्रता गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम के कारण है। वेद से लेकर पुराण तक और कवियों से लेकर लोकसाहित्य के रचनाकारों तक ने इस संगम की महिमा का गान किया है। विद्यार्थी जीवन में न जाने कितनी बार संगम गए होंगे। सुबह के समय समानांतर चलते जल-पक्षियों के साथ बोटिंग का आनंद और फिर किले के अंदर इतिहास के पन्नों से गुजरते हुए अक्षयवट का दर्शन एक रोमांच पैदा करता। कुम्भ के दौरान तो मानो यह लघु भारत बन जाता है। यहाँ गंगा मईया से लेकर लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन कर बस यही माँगते थे कि जल्दी से कैरियर की गाड़ी अपने मुकाम पर पहुँचे।    
साहित्य, कला, संस्कृति की त्रिवेणी इलाहाबाद में प्राचीन काल से ही प्रवाहित है। इन विधाओं में यहाँ की विभूतियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की है। इलाहाबाद में अध्ययन के दौरान ही साहित्य के प्रति समझ भी अच्छी तरह से विकसित हुई और लिखने-पढ़ने का शौक भी खूब जमा। रात भर में किसी कहानी या नॉवेल की पुस्तक को पढ़कर ख़त्म करने का जूनून रहता था। यहीं रहते हुए विभिन्न अख़बारों में "पाठकों के पत्र" कॉलम में  राजनीतिक, सामाजिक व सामयिक विषयों पर खूब लिखा, तब तो सोचा भी नहीं था कि एक दिन सिविल सर्विसेज की परीक्षा में यह लिखना बेहद काम आएगा। यहीं से पढ़ने-लिखने का जो शौक लगा तो फिर साहित्य जीवन का अभिन्न अंग ही बन गया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं के अलावा अब तक विभिन्न विधाओं में मेरी सात पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।  साहित्य के क्षेत्र में इलाहाबाद की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि यहाँ से अब तक पाँच लोगों को ज्ञानपीठ सम्मान से विभूषित किया जा चुका है।  इनमें  सुमित्रानंदन पंत, रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता और अमरकांत का नाम शामिल है।
मैं कहीं भी रहूँ, पर इलाहाबाद मेरे अंदर सदैव जीवंत रहेगा। इस पर जितना भी लिखा जाये, कम ही होगा। यहीं रहते हुए फ़िल्में देखने की जो आदत लगी, वह आज तक नहीं छूटी। यह संयोग ही है कि इलाहाबाद हिंदी फिल्मों में भी खूब दिख रहा है, फिर चाहे वह पिछले दिनों रिलीज हुई 'शादी में जरूर आना' में हो  या  'पद्मावत' में अलाउद्दीन खिलजी के  कड़ा नगर और रेस-3 में हंडिया नगर की चर्चा है। इलाहाबाद का स्वाद भी खूब है। नेतराम की कचौड़ियों से लेकर लोकनाथ के समोसों की खुशबू अभी भी जेहन में है। इलाहाबादी अमरुद के तो क्या कहने ! शायर अकबर इलाहाबादी ने खूब कहा है-

’’ कुछ इलाहाबाद में सामां नहीं बहबूद के
 धरा क्या है सिवा अकबर-ओ-अमरूद के।‘‘


फरवरी 2012 में इलाहाबाद में निदेशक डाक सेवाएं रूप में एक अधिकारी होकर आया जरूर, पर अपने अंदर के विद्यार्थी को सदैव जिन्दा रखा।  विद्यार्थी के रूप में जिन समस्याओं से हम यहाँ रूबरू हुए थे, सदैव कोशिश  यही रही कि उनमें सुधार हों।  जब इलाहाबाद की सड़कों और गलियों से गुजरता तो विद्यार्थी जीवन की स्मृतियाँ चलचित्र की भाँति पटल पर अंकित होती रहतीं।  पत्नी आकांक्षा के साथ दोनों बेटियों अक्षिता और अपूर्वा भी उस जगह को देखकर रोमांचित होतीं, जहाँ से  सफलता की चढ़ाईयां चढ़ते हुए मैं  जीवन में इस मुकाम पर पहुँचा था। इलाहाबाद से पहले मैं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक  पदस्थ था, जहाँ समुद्र के बीच छोटे-छोटे द्वीपों का अपना रोमांच था तो इलाहाबाद के बाद राजस्थान पश्चिमी राजस्थान, जोधपुर में निदेशक के पद पर कार्यरत हूँ, जिसे मरुस्थली कहा जाता है। समुद्र से  संगम और फिर रेतीला मरुस्थल...... शायद मनुष्य की ज़िंदगी का सच भी इन्हीं के बीच छिपा हुआ है, जहाँ जीवन में ऐसे ही भिन्न-भिन्न रंग देखने को मिलते हैं। 

- कृष्ण कुमार यादव 
निदेशक डाक सेवाएं
राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर -342001