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शनिवार, 22 सितंबर 2018

थोड़ा स्मार्ट बनें तो लन्दन की तरह हों गोमती के किनारे और हजरतगंज

अपने लखनऊ ने काफी प्रगति की है। यहाँ की तहजीब और नफासत की बात ही निराली है। लखनवी अंदाज की बात भी खूब होती है। परंतु कुछ बातों पर ध्यान दिया जाये तो वाकई इसे और भी खूबसूरत, स्मार्ट सिटी और सिटीजन फ्रेंडली बनाया जा सकता है। मैंने अभी तक दुनिया के 8 देशों की यात्रा की है।  हर जगह की अपनी विशेषतायें हैं। अभी कुछेक साल पहले मैनेजमेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम की ट्रेनिंग के सिलसिले में लंदन जाना हुआ। ये  वाकई एक खूबसूरत व सुनियोजित शहर है । देखकर लगा कि काश, लखनऊ के लोगों में भी अपने शहर के प्रति यह सोच होती। इसे खूबसूरत बनाने में आम जन की भी उतनी भी प्रभावी भूमिका है, जितनी सरकार की। लखनऊ में ट्रैफिक की समस्या विकराल है, हर कोई बस अपनी परवाह करता है और प्रशासन को कोसता है। एक जिम्मेदार नागरिक के नाते ट्रैफिक की समझ  की बात ही नहीं होती।

वहीं लंदन में ट्रैफिक मैनेजमेंट से लेकर स्वच्छता तक, सामान्य नागरिक के व्यवहार से लेकर प्रशासन की तत्परता तक में स्मार्टनेस दिखाई देती है। हम अपने शहर को तो स्मार्ट सिटी के रूप में  देखना चाहते हैं, पर खुद स्मार्ट नहीं होना चाहते।  लंदन में टेम्स नदी के तटों को जिस तरह से साफ रखकर पर्यटकों के अनुकूल यानी टूरिज्म  फ्रेंडली बनाया गया है, उसी आधर पर गोमती नदी को विकसित किया जा सकता है। लंदन में पर्यटकों को घुमाने के लिये डबल डेकर बसें, गाईड पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं।  लखनऊ में भी इसे लागू किया जा सकता है। 

लखनऊ में पर्यटन की अपार संभावनाएं
लखनऊ में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। टयूब ट्रेन लंदन के पब्लिक ट्रांसपोर्ट की रीढ है, लखनऊ में भी मेट्रो को उसी तर्ज पर विकसित किया जा सकता है। लखनऊ में कचरा निस्तारण एक बड़ी समस्या है।  लोग अपने घरों का कचरा बाहर फेंककर स्वछ्ता की इतिश्री समझ लेते हैं।  हमें इस सोच को बदलना होगा। लंदन की सडकों और गलियों में आप बेफिक्र होकर घूम सकते हैं, पर गंजिंग के लिये मशहूर हज़रतगंज में तो शाम को तिल रखने भी जगह नहीं दिखती। यहाँ व्यवस्थित विकास करने की जरूरत है।  ब्रिटेन की  कैम्ब्रिज व ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी मशहूर है।  काश, लखनऊ के हमारे शैक्षणिक संस्थान उनसे कुछ सीख पाते। इन जगहों को इतना आकर्षक बनाया जाए कि बाहर से आने वाले यात्री इसे देखने के लिए आएं।  लखनऊ विश्विद्यालय की इमारत काफी पुरानी है, इसे भी विकसित किया जा सकता है।  डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्विद्यालय (एकेटीयू) का नया परिसर भी काफी आकर्षक बना है। 

बढ़ते अपराध पर रोकथाम जरुरी 
राजधानी होने के बावजूद लखनऊ में अपराध काम नहीं हो रहे हैं।  अपराध की रोकथाम से लेकर महिलाओं के प्रति सोच तक में हम पिछड़े  हुए हैं। 1090 की पहल सराहनीय है, लेकिन इसे और प्रभावी बनाना होगा। अभी भी शाम को बाजार में निकलने वाली महिलाओं को घूरने वालों पर कार्रवाई अपेक्षित है। अंग्रेजों की पुलिसिंग दुनिया में उत्कृष्ट मानी जाती है, उससे सीखने की जरुरत है। इस तरह की सख़्त पुलिसिंग हमें स्मार्ट शहर के रूप में आगे बढ़ाने में मदद करेगी। 

-कृष्ण कुमार यादव
निदेशक डाक सेवाएँ 
लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र, उत्तर प्रदेश

(प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक पत्र "अमर उजाला" के लखनऊ संस्करण में "लखनवी परदेस में' के तहत 17 सितंबर, 2018 को प्रकाशित)













बुधवार, 29 अगस्त 2018

डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव ने उत्कृष्ट कार्य करने वाली लखनऊ की विभूतियों को किया सम्मानित

संस्कार और संवेदना मानव समाज की रीढ़ हैं। सामाजिक व्यवस्था के सुचारु संचालन हेतु युवा पीढ़ी में इनका संचरण जरुरी है। सोशल मीडिया के इस दौर में जहाँ हर कोई अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए भी कट-पेस्ट का सहारा ले रहा है, वहाँ संस्कारों को बचाकर रखना जरुरी हो गया है।  उक्त उद्गार चर्चित लेखक एवं लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र, उत्तर प्रदेश  के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने संस्कार भारती, गोमती इकाई, लखनऊ के नटराजन पूजन एवं कला गुरु सम्मान कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन के रूप में व्यक्त किये। 


डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि युवा पीढ़ी में रचनात्मक प्रवृत्ति को विकसित करना होगा। साहित्य, कला, संगीत जैसी विधाएँ किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति को समुन्नत बनाती हैं। संस्कारों को सहेजने के लिए नैतिक मूल्यों की स्थापना पर भी जोर देना होगा।   



इस अवसर पर निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने साहित्य, कला, संगीत व नाट्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली विभूतियों को सम्मानित भी किया। साहित्य हेतु वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. कौशलेन्द्र पांडेय, चित्रकला हेतु अमर नाथ गौड़, नाट्य के क्षेत्र में ललित सिंह पोखरिया तथा संगीत के लिए भातखण्डे संगीत विद्यापीठ की रजिस्ट्रार सुश्री मीरा माथुर को कला गुरु सम्मान से सम्मानित किया गया। 


 रानी लक्ष्मीबाई मेमोरियल स्कूल, इंदिरानगर, लखनऊ के ऑडिटोरियम  में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारम्भ  निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव और संस्थापक सेंट जोजफ विद्यालय समूह श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल ने दीप प्रज्वलन करके किया। विषय प्रवर्तन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. किशोरी शरण शर्मा ने किया।  समवेत गणेश वंदना, ध्येय गीत गायन के बाद मा. सारा, निखिल, अनादि, नारायन सिंह, आर्यन आदि ने देशभक्तिपरक रचनाएँ  प्रस्तुत करके लोगों की सराहना प्राप्त की।  
चर्चित गायिका संगीता श्रीवास्तव, सरोज खुल्बे, राखी अग्रवाल व् ममता त्रिपाठी ने सुबोध दुबे के निर्देशन में खूबसूरत गीतों की प्रस्तुति कर शमां बाँधा। कार्यक्रम का संचालन इकाई के अध्यक्ष ई. अखिलेश्वर नाथ पांडेय व  आभार गौरीशंकर वैश्य 'विनम्र' ने किया। इस अवसर पर राज्य ललित कला एकेडमी के उपाध्यक्ष सीताराम कश्यप, शारदा पांडेय,  दुर्गेश्वर राय, रीता अग्रवाल, नीरा माथुर इत्यादि  मौजूद रहे।



संस्कार व संवेदना मानव समाज की रीढ़ हैं - डाक निदेशक केके यादव 

डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव  ने उत्कृष्ट कार्य करने वाली लखनऊ की विभूतियों को किया सम्मानित 

संस्कार भारती, गोमती शाखा, लखनऊ  द्वारा कला गुरु सम्मान का आयोजन 

रविवार, 1 जुलाई 2018

स्मृतियों में इलाहाबाद.... -कृष्ण कुमार यादव

जिंदगी के प्रवाह में कुछेक शहरों का आपकी जिंदगी में अहम स्थान होता है, मेरे लिए यह शहर इलाहाबाद है। एक ऐसा शहर जो कभी विद्यार्थियों के लिए अध्ययन का स्वर्ग था। कक्षा 12 पास करते-करते लोगों के मन की उड़ान अपनी कैरियर की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अनायास ही इलाहाबाद की तरफ उन्मुख हो जाती थी, सो हमारे साथ भी ऐसा हुआ। वर्ष 1994 में जब ग्रेजुएशन हेतु हमने इलाहाबाद में कदम रखा तो ममफोर्डगंज हमारी शरण स्थली बनी। यह पॉश इलाका तभी से हमारी आँखों में बस गया और वर्ष 2001 में आई.ए.एस. परीक्षा में सफल होने के बाद जब हमने इलाहाबाद छोड़ा, तब तक फौव्वारे चौराहे के पास ही किराये के कमरे में अकेले रहे। मुझे यह भी सौभाग्य प्राप्त हुआ कि जिस शहर में कभी एक विद्यार्थी के रूप में रहकर अपना कैरियर बनाया, उसी शहर में एक अधिकारी के रूप में निदेशक (डाक सेवाएँ), इलाहाबाद परिक्षेत्र के पद पर फरवरी 2012 से मार्च 2015 तक तीन वर्षों तक कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। वाकई यह अपने आप में एक सुखद अनुभव था।

इलाहाबाद शुरू से ही एक प्रगतिशील शहर रहा है। यहाँ की बोली की मिठास व तेवर इसे अन्य शहरों से अलग करते हैं। नेहरू व गाँधी परिवार की विरासत सहेजे आनद भवन से लेकर क्रांतिकारी आजाद की दास्ताँ सुनाते अल्फ्रेड पार्क की राहों पर न जाने कितनी चहलकदमी की होगी। यहाँ इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला। 

1887 में स्थापित ’पूरब का ऑक्सफोर्ड‘ कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अपनी अलग ही ऐतिहासिकता है।  इस संस्थान से शिक्षा प्राप्त कर देश-दुनिया को नई ऊँचाईयाँ प्रदान करने वालों की एक लम्बी सूची है। राजनीति से लेकर न्यायपालिका, प्रशासन तक ही नहीं बल्कि शिक्षा, साहित्य, कला व संस्कृति के क्षेत्र में भी। कभी इस विश्वविद्यालय को सिविल सर्विसेज की फैक्ट्री कहा जाता था। आज भी एक वाकया याद आता है। त्रिपाठी चौराहे पर स्थित बनारसी चाय की दुकान पर एक बार दोस्तों के साथ चाय पी रहा था कि एक कार आकर रुकी। कार से एक अधेड़ सज्जन उतरे और एक छात्र का नाम लेकर पूछा कि वह कहाँ मिलेगा ? हम लोगों ने कहा कि उसका कोई पता तो होगा। इस पर वे तुनककर बोले, अरे भाई ! वह इस बार आई. ए. एस. की परीक्षा में सफल हुआ है और तुम लोग उसे नहीं जानते। हम लोगों ने हँसते हुए जवाब दिया कि अंकल जी ! यहाँ तो हर साल आई.ए.एस. और पी.सी.एस. की नई फसल लहलहाती है, भला बिना पते व परिचय के कहाँ से ढूँढ पाएंगे। बात ही बात में पता चला की उन्होंने अपने शहर में अख़बार में पढ़ा कि उनके जिले से किसी छात्र का आई.ए.एस. में सलेक्शन हुआ है और फिर शादी के प्रयोजन से उससे मिलने सीधे इलाहाबाद ही आ गए। 


इलाहाबाद एक अत्यन्त पवित्र नगर है, जिसकी पवित्रता गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम के कारण है। वेद से लेकर पुराण तक और कवियों से लेकर लोकसाहित्य के रचनाकारों तक ने इस संगम की महिमा का गान किया है। विद्यार्थी जीवन में न जाने कितनी बार संगम गए होंगे। सुबह के समय समानांतर चलते जल-पक्षियों के साथ बोटिंग का आनंद और फिर किले के अंदर इतिहास के पन्नों से गुजरते हुए अक्षयवट का दर्शन एक रोमांच पैदा करता। कुम्भ के दौरान तो मानो यह लघु भारत बन जाता है। यहाँ गंगा मईया से लेकर लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन कर बस यही माँगते थे कि जल्दी से कैरियर की गाड़ी अपने मुकाम पर पहुँचे।    
साहित्य, कला, संस्कृति की त्रिवेणी इलाहाबाद में प्राचीन काल से ही प्रवाहित है। इन विधाओं में यहाँ की विभूतियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की है। इलाहाबाद में अध्ययन के दौरान ही साहित्य के प्रति समझ भी अच्छी तरह से विकसित हुई और लिखने-पढ़ने का शौक भी खूब जमा। रात भर में किसी कहानी या नॉवेल की पुस्तक को पढ़कर ख़त्म करने का जूनून रहता था। यहीं रहते हुए विभिन्न अख़बारों में "पाठकों के पत्र" कॉलम में  राजनीतिक, सामाजिक व सामयिक विषयों पर खूब लिखा, तब तो सोचा भी नहीं था कि एक दिन सिविल सर्विसेज की परीक्षा में यह लिखना बेहद काम आएगा। यहीं से पढ़ने-लिखने का जो शौक लगा तो फिर साहित्य जीवन का अभिन्न अंग ही बन गया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं के अलावा अब तक विभिन्न विधाओं में मेरी सात पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।  साहित्य के क्षेत्र में इलाहाबाद की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि यहाँ से अब तक पाँच लोगों को ज्ञानपीठ सम्मान से विभूषित किया जा चुका है।  इनमें  सुमित्रानंदन पंत, रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता और अमरकांत का नाम शामिल है।
मैं कहीं भी रहूँ, पर इलाहाबाद मेरे अंदर सदैव जीवंत रहेगा। इस पर जितना भी लिखा जाये, कम ही होगा। यहीं रहते हुए फ़िल्में देखने की जो आदत लगी, वह आज तक नहीं छूटी। यह संयोग ही है कि इलाहाबाद हिंदी फिल्मों में भी खूब दिख रहा है, फिर चाहे वह पिछले दिनों रिलीज हुई 'शादी में जरूर आना' में हो  या  'पद्मावत' में अलाउद्दीन खिलजी के  कड़ा नगर और रेस-3 में हंडिया नगर की चर्चा है। इलाहाबाद का स्वाद भी खूब है। नेतराम की कचौड़ियों से लेकर लोकनाथ के समोसों की खुशबू अभी भी जेहन में है। इलाहाबादी अमरुद के तो क्या कहने ! शायर अकबर इलाहाबादी ने खूब कहा है-

’’ कुछ इलाहाबाद में सामां नहीं बहबूद के
 धरा क्या है सिवा अकबर-ओ-अमरूद के।‘‘


फरवरी 2012 में इलाहाबाद में निदेशक डाक सेवाएं रूप में एक अधिकारी होकर आया जरूर, पर अपने अंदर के विद्यार्थी को सदैव जिन्दा रखा।  विद्यार्थी के रूप में जिन समस्याओं से हम यहाँ रूबरू हुए थे, सदैव कोशिश  यही रही कि उनमें सुधार हों।  जब इलाहाबाद की सड़कों और गलियों से गुजरता तो विद्यार्थी जीवन की स्मृतियाँ चलचित्र की भाँति पटल पर अंकित होती रहतीं।  पत्नी आकांक्षा के साथ दोनों बेटियों अक्षिता और अपूर्वा भी उस जगह को देखकर रोमांचित होतीं, जहाँ से  सफलता की चढ़ाईयां चढ़ते हुए मैं  जीवन में इस मुकाम पर पहुँचा था। इलाहाबाद से पहले मैं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक  पदस्थ था, जहाँ समुद्र के बीच छोटे-छोटे द्वीपों का अपना रोमांच था तो इलाहाबाद के बाद राजस्थान पश्चिमी राजस्थान, जोधपुर में निदेशक के पद पर कार्यरत हूँ, जिसे मरुस्थली कहा जाता है। समुद्र से  संगम और फिर रेतीला मरुस्थल...... शायद मनुष्य की ज़िंदगी का सच भी इन्हीं के बीच छिपा हुआ है, जहाँ जीवन में ऐसे ही भिन्न-भिन्न रंग देखने को मिलते हैं। 

- कृष्ण कुमार यादव 
निदेशक डाक सेवाएं
राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर -342001


सोमवार, 7 मई 2018

भारतीय उपमहाद्वीप में साहित्य के एकमात्र नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्र नाथ टैगोर जी की जयंती


नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से,
मुझे बचाओ, त्राण करो
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

नहीं मांगता दुःख हटाओ
व्यथित ह्रदय का ताप मिटाओ
दुखों को मैं आप जीत लूँ
ऐसी शक्ति प्रदान करो
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

कोई जब न मदद को आये
मेरी हिम्मत टूट न जाये।
जग जब धोखे पर धोखा दे
और चोट पर चोट लगाये -
अपने मन में हार न मानूं, 
ऐसा, नाथ, विधान करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

नहीं माँगता हूँ, प्रभु, मेरी
जीवन नैया पार करो
पार उतर जाऊँ अपने बल
इतना, हे करतार, करो।
नहीं मांगता हाथ बटाओ
मेरे सिर का बोझ घटाओ
आप बोझ अपना संभाल लूँ
ऐसा बल-संचार करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

सुख के दिन में शीश नवाकर
तुमको आराधूँ, करूणाकर।
औ' विपत्ति के अन्धकार में, 
जगत हँसे जब मुझे रुलाकर--
तुम पर करने लगूँ न संशय, 
यह विनती स्वीकार करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं, 
इतना, हे भगवान, करो।

- रवीन्द्रनाथ टैगोर-

आज रवीन्द्र नाथ टैगोर जी (7  मई 1861-7 अगस्त 1941) की जयंती है।  दो-दो देशों (भारत और बांग्लादेश) के राष्ट्रगान के रचयिता, आधुनिक भारत के असाधारण सृजनशील कलाकार, साहित्यकार-संगीतकार-लेखक-कवि-नाटककार-संस्कृतिकर्मी एवं भारतीय उपमहाद्वीप में साहित्य के एकमात्र नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर जी की 157वीं  जयंती पर शत-शत नमन !!

-कृष्ण कुमार यादव @ शब्द-सृजन की ओर 

मंगलवार, 1 मई 2018

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस : मेहनत को पहचान मिले


मेहनत को पहचान मिले,
मजदूरों को सम्मान मिले,
जो ऊंच-नीच की खाई भर दे,
काश ऐसा कोई इन्सान मिले !!

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श्रमिक दिवस-मजदूर दिवस
International Labours Day

सिविल सर्विसेज में नवोदय विद्यालय के विद्यार्थी

वर्ष 2001 में जब सिविल सर्विसेज में हमारा चयन हुआ था तो उस समय सिविल सेवाओं में जवाहर नवोदय विद्यालय के विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व लगभग शून्य ही था। वक़्त के साथ नवोदयी विद्यार्थियों ने सिविल सेवाओं में भी अपनी सफलता के परचम फहराने आरम्भ किये और इस वर्ष 2018 में जारी रिजल्ट में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार नवोदय विद्यालय के लगभग 27 विद्यार्थी चयनित हुए हैं। वाकई हम सभी नवोदयी विद्यार्थियों के लिये गौरव के क्षण। सभी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं !!

Bipasha Kalita, Rank 41
JNV Moregaon Assam

Sang Priy, Rank 92
JNV Kanpur Dehat UP

Jayendra Kumar, Rank 150
JNV Mahoba UP

Dr Jitendra Kumar Yadav, Rank 170
JNV Raigarh Chattisgarh

VijayPal Bishnoi, Rank 290
JNV Bikaner Rajasthan

Kumar Deepak, Rank 338
JNV Samastipur, Bihar

Rajeev Kumar Choudhary, 371
JNV Alwar Rajasthan

Jag Pravesh, Rank 483
JNV Dausa Rajasthan

Pradeep Kumar Dwivedi, Rank 491
JNV Chatarpur MP

Yogesh Patel, Rank 571
JNV Mahasamund Chattisgarh

Mukesh Kumar Lunayat, Rank 587
JNV Jaipur Rajasthan

Sujit Kumar Bharti, Rank 588
JNV Madhubani Bihar

Akshay Kumar Terawal, Rank 615
JNV Betul MP

Preetham S. Rank 654
JNV Chikmanglur Karnataka

Dr Manoj Chaudhary, Rank 675
Alumnus JNV Basti UP.

Jagdish Prasad Meena, Rank 685
JNV Jaipur Rajasthan

Chetan Meghraj Shelke, Rank 781
JNV Nashik Maharashtra

Urwashi KUmari, Rank 788
JNV Muzaffarpur Bihar

Santosh Kumar Meena, Rank 856
JNV Dausa Rajasthan

Yogesh Kumar Meena, Rank 874
JNV Alwar Rajasthan

Vanya Are, Rank 916
JNV Karnool AP

Samay Singh Meena, Rank 919
JNV Dausa Rajasthan

Sudhanshu Nayak, Rank 931
JNV Gorakhpur UP

Supriya Ghaytadak, Rank 961
JNV Aurangabad Maharashtra

Rajkesh Meena, Rank 971
JNV Dausa Rajasthan

Ajeet Singh Meena, Rank 972
JNV Jaipur Rajasthan

Sangeeta Meena, Rank 973
#JNV Jaipur Rajasthan

@ Krishna Kumar Yadav

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

जोधपुर में साहित्यकार व लेखक

जोधपुर की धरती कहने को तो मरुस्थली है, पर साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध है। यहाँ आने पर तमाम साहित्यकारों से मुलाकात हुई। हाल ही में हमारे आवास पर हुई एक मुलाकात की ग्रुप फोटो : प्रसिद्ध समालोचक और संपादक डॉ. रमाकांत शर्मा, रिटायर्ड जज और वरिष्ठ साहित्यकार श्री मुरलीधर वैष्णव, वरिष्ठ लेखक डॉ. हरिदास व्यास, चर्चित कवयित्री व लेखिका डॉ. पद्मजा शर्मा, चर्चित ब्लॉगर लेखिका आकांक्षा यादव, साहित्यकार व ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएं, राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर, और प्यारी बेटियाँ नन्ही ब्लॉगर और राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा। 

जोधपुर में एक आत्मीय मुलाकात

नए शहर में जाइए तो तमाम नए लोगों से मुलाकात होती है। प्रशासन से लेकर साहित्य-कला-संस्कृति में अभिरुचि रखने वालों से। इनमें से कई ऐसे होते हैं, जिनकी रचनाधर्मिता से हम अक्सर रूबरू होते हैं, पर मुलाकात का कोई सुयोग नहीं बना होता है। सोशल मीडिया और वर्चुअल लाइफ से परे इसी क्रम में जोधपुर में मुलाकात हुई रिटायर्ड जज और वरिष्ठ साहित्यकार श्री मुरलीधर वैष्णव जी से। उम्र के इस पड़ाव पर भी आपकी सक्रियता देखते बनती है। बेहद आत्मीय और संवेदनशील व्यक्तित्व !!

भारत के आदिवासी : चुनौतियाँ एवं सम्भावनाएँ

वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक "भारत के आदिवासी : चुनौतियाँ एवं सम्भावनाएँ" प्राप्त हुई। इस पुस्तक में मेरा लेख "अस्तित्व के लिए जूझते अण्डमान-निकोबार के आदिवासी" भी शामिल है। पुस्तक के सम्पादक डॉ. जनक सिंह मीना, असिस्टेंट प्रोफेसर, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर एवं जनरल सेक्रेटरी, न्यू पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन सोसायटी ऑफ़ इण्डिया ने इस पुस्तक में काफी श्रम किया है। 243 पृष्ठों की इस पुस्तक में आदिवासी विमर्श पर कुल 23 लेख समाहित हैं।




बुधवार, 24 जनवरी 2018

भारत सरकार के राजभाषा विभाग की पत्रिका "राजभाषा भारती" भी हुई साहित्यिक चोरी का शिकार

हिंदी साहित्य में आजकल रचनाओं की चोरी धड़ल्ले से हो रही है। इसका सबसे आसान जरिया बना है इंटरनेट, जहाँ आपकी रचना के प्रकाशन या सोशल मीडिया पर आपके मौलिक विचारों के प्रस्फुटन के साथ ही कुछेक साहित्यिक चोर धड़ल्ले से उन्हें कॉपी-पेस्ट कर अपने नाम से अन्यत्र प्रकाशित करवा साहित्यकार और लेखक होने का दम्भ भरने लगते हैं। ऐसे लोग एक जगह पकड़े जाते हैं, उनकी लानत-मलानत होती है...पर अपनी आदत से मजबूर फिर वही कार्य दोहराने लगते हैं।
उज्जैन (मध्यप्रदेश) के एक तथाकथित साहित्यकार  डॉ. प्रभु चौधरी ने सितंबर, 2016 में मेरे (कृष्ण कुमार यादव) एक लेख "विदेशों में भी पताका फहरा रही है हिंदी" को शीर्षक में कुछ बदलाव कर "विश्व में भी अपनी पहचान बना रही है हिंदी" शीर्षक से अपने नाम से जबलपुर से प्रकाशित "प्राची" पत्रिका के सितंबर अंक में प्रकाशित कराया था।  सबसे रोचक बात तो यह रही कि 'प्राची' पत्रिका में ही 4 वर्ष पूर्व मेरा यह लेख प्रकाशित हो चुका था। खैर, पत्रिका के संपादक श्री राकेश भ्रमर ने अगले महीने ही संपादकीय में इस तथाकथित साहित्यकार डॉ. प्रभु चौधरी की जमकर क्लास ली और यह घोषित भी किया कि उसकी रचनाएँ पत्रिका में अब प्रकाशित नहीं की जाएँगी। 

 और अब पुनः मेरे  (कृष्ण कुमार यादव) उसी लेख "विदेशों में भी पताका फहरा रही है हिंदी" को उक्त डॉ. प्रभु चौधरी ने भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिका राजभाषा भारती के अप्रैल-जून 2017 अंक में अपने नाम से प्रकाशित कराया है। ऐसी निर्लज्जता पर क्या कहा जाए ? इस प्रकार के साहित्यिक डॉक्टरों का क्या इलाज है ?? 
ख़ैर, इस मामले को जब हमने सोशल मीडिया पर शेयर किया और तमाम साहित्यिक मित्रों से भी इसकी चर्चा की व साथ में राजभाषा भारती पत्रिका के संपादक को भी लिखा तो उक्त डॉ. प्रभु चौधरी का माफ़ीनामा आया 

..........आप भी देखिए, कहीं प्रभु चौधरी जैसे चोर लेखक आपकी रचनाओं और विचारों को अपने नाम से प्रकाशित करवा अपनी पीठ न थपथपा रहे हों !!