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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

अख़बारों में भी छाया '16 आने 16 लोग'


विश्व पुस्तक मेले में निदेशक Krishna Kumar Yadav की किताब का हुआ विमोचन।
(साभार : अमृत प्रभात, 24 फरवरी 2014)
 


'16 आने 16 लोग' का हुआ विमोचन।
(साभार : दैनिक जागरण, 24 फरवरी 2014)
 



समकालीन सरोकारों से जोड़ती है किताब : निश्चल 
16 आने 16 लोग' पुस्तक का विमोचन।
(साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्ट, 24 फरवरी 2014)



'16 आने 16 लोग' का विमोचन।
(साभार : युनाइटेड भारत, 24 फरवरी 2014)

सराही गई किताब '16 आने 16 लोग'
(साभार : पायनियर, 24 फरवरी 2014)
 



विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पित हुई Krishna Kumar Yadav की पुस्तक।
(साभार : स्वतंत्र चेतना , 24 फरवरी 2014)
 


सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में लोकार्पित हुई कृष्ण कुमार यादव की पुस्तक ’16 आने 16 लोग’


इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं एवं लेखक व साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव की किताब ’’16 आने 16 लोग’’ का विमोचन नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में किया गया। किताब का विमोचन करते हुए वरिष्ठ आलोचक एवं कवि ओम निश्चल ने कहा कि साहित्य की संवेदना और प्रशासनिक दायित्व का जीवंत मिश्रण कृष्ण कुमार यादव की लेखनी में बखूबी मिलता है। इस किताब में साहित्य-कला और संस्कृति के क्षेत्र की 16 महान विभूतियों के पुनर्पाठ के बहाने श्री यादव ने उन्हें समकालीन सरोकारों के साथ व्याख्यायित किया है, जो इस किताब को महत्वपूर्ण बनाती है। 

महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्विद्यालय, वर्धा से पधारे बहुवचन के संपादक अशोक मिश्र ने कहा कि इस संग्रह में शामिल सभी लेखक अपने समय के सशक्त स्तम्भ रहे हैं और समय-समय पर कृष्ण कुमार ने विभिन्न स्तम्भों में इन विभूतियों पर प्रकाशित अपने आलेखों को जिस तरह एक पुस्तक में गूँथा है, वह इस पुस्तक को शोधार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण बनाती है। 

वरिष्ठ लेखिका पुष्पिता अवस्थी ने इस बात को उद्धृत किया कि किताब में अमृता प्रीतम और कुर्रतुल ऐन हैदर जैसी लेखिकाओं केे बहाने महिला साहित्यकारों के अवदान को शामिल करके उन मुद्दों को भी उठाया गया है जो आज नारी विमर्श की पडताल करते हैं। 

नेशनल बुक ट्रस्ट में संपादक लालित्य ललित ने कहा कि पुनर्पाठ की परम्परा में पुस्तक में शामिल साहित्यकारों के साथ संवेदनात्मक सहजता व अनुभवीय आत्मीयता जोडते हुए कृष्ण कुमार ने उनका सटीक विश्लेषण किया है। 

इस अवसर पर कृष्ण कुमार यादव ने अपनी सृजनधर्मिता के आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने किताब के बारे मेें बताया कि इसमें रवीन्द्रनाथ टैगोर, नागार्जुन, निराला, प्रेमचंद, राहुल सांकृत्यायन, गणेश शंकर विद्यार्थी, अज्ञेय, कमलेश्वर, मनोहर श्याम जोशी, अहमद फराज, कैफी आजमी, अमृता प्रीतम और कुर्रतुल ऐन हैदर जैसी अमर शख्सियतों के अलावा वर्तमान समय में सक्रिय अब्दुल रहमान राही, कुंवर नारायण, गोपालदास नीरज के अवदानों की भी चर्चा की गयी है। 

इस अवसर पर चर्चित कवि मदन कश्यप, दूसरी परम्परा के संपादक सुशील सिद्धार्थ इत्यादि ने भी विचार व्यक्त किए।  कार्यक्रम का संयोजन हिन्द युग्म के शैलेश भारतवासी द्वारा किया गया।








बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में 'हिंद युग्म' के स्टॉल पर कृष्ण कुमार यादव यादव की पुस्तक ’16 आने 16 लोग’


प्रगति मैदान, नई दिल्ली में चल  रहे विश्व पुस्तक मेला (15-23 फरवरी) में इलाहाबादियों की भी उपस्थिति दिखेगी। इस दौरान यहाँ से जुड़े लोगों की भी तमाम पुस्तकें जारी/लोकार्पित की जायेंगी। इनमें इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव की पुस्तक ''16 आने 16 लोग'' भी शामिल है। हिन्द युग्म प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में उन्होंने विभिन्न कालखंड के 16 चिंतकों, साहित्यकारों, लेखकों को समकालीन सरोकारों  से जोड़ते हुए उनकी रचनाधर्मिता के फलक को विस्तृत किया है। श्री कृष्ण कुमार यादव ने इस सम्बन्ध में बताया कि यह उनकी 7वीं पुस्तक/कृति होगी। इस पुस्तक में रवीन्द्रनाथ टैगोर, नागार्जुन, निराला, प्रेमचंद, राहुल सांकृत्यायन, गणेश शंकर विद्यार्थी, अज्ञेय, कमलेश्वर, मनोहर श्याम जोशी, अहमद फराज, कैफी आजमी जैसी अमर शख्सियतों के अलावा वर्तमान समय में सक्रिय अब्दुल रहमान राही, कुंवर नारायण, गोपालदास नीरज के अवदानों की भी चर्चा की गयी है। इसके अलावा इस पुस्तक में अमृता प्रीतम और कर्रतुल ऐन हैदर जैसी लेखिकाओं के व्यक्तित्व और कृतित्व के बहाने आज के स्त्री-विमर्श को जानने-समझने का भी गंभीर प्रयत्न है।

गौरतलब है कि सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी चर्चित श्री यादव की अब तक कुल 6 पुस्तकें 'अभिलाषा' (काव्य-संग्रह, 2005) 'अभिव्यक्तियों के बहाने' व 'अनुभूतियाँ और विमर्श'  (निबंध-संग्रह, 2006 व 2007), 'India Post : 150 Glorious Years'(2006),'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' व जंगल में क्रिकेट (बाल-गीत संग्रह,2012) प्रकाशित हो चुकी हैं। विभिन्न सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा शताधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त कृष्ण कुमार यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर 'बाल साहित्य समीक्षा'(सं. डा. राष्ट्रबंधु, कानपुर, सितम्बर 2007) और 'गुफ्तगू' (सं. मो. इम्तियाज़ गाज़ी, इलाहाबाद, मार्च 2008 द्वारा विशेषांक जारी किया जा चुका है। उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक 'बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव'  (सं0 डा0 दुर्गाचरण मिश्र, 2009, आलोक प्रकाशन, इलाहाबाद) भी प्रकाशित हो चुकी  है। श्री यादव देश-विदेश से प्रकाशित तमाम रिसर्च जनरल, पत्र पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर भी प्रमुखता से प्रकाशित होते रहते हैं।

विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पित होगी कृष्ण कुमार यादव Krishna Kumar Yadav की पुस्तक। 
(साभार : पायनियर, 15 फरवरी 2014) 

दिल्ली के पुस्तक मेले में कृष्ण कुमार यादव Krishna Kumar Yadav की पुस्तक भी शामिल।
(साभार : पंजाब केसरी, 16 फरवरी 2014)
 


Krishna Kumar Yadav's '16 Aane 16 Log' to be released at World Book Fair, New Delhi. (Courtesy : Hindustan Times, 15 February 2014) 

विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में 'हिंद युग्म' के स्टॉल पर हमारी  पुस्तक ’’16 आने 16 लोग’’ विक्रय और प्रदर्शन के लिए उपलब्ध है। एकबार अवश्य पधारें ।

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान द्वारा कृष्ण कुमार यादव ‘’साहित्य गौरव‘‘ से सम्मानित


विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान ने इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ एवं युवा साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव को हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद में 16 फरवरी 2014 को आयोजित 11वें साहित्य मेला सम्मेलन में हिन्दी के संवर्द्धन एवं विशिष्ट साहित्य सेवा हेतु ‘’साहित्य गौरव‘‘ की मानद उपाधि से सम्मानित किया। विभिन्न विधाओं में अब तक कुल 7 पुस्तकें लिख चुके श्री यादव को इससे पूर्व विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकीं हैं। 



इस अवसर पर सुश्री बीएस शांताबाई, प्रधान सचिव, कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, प्रोफेसर नित्यानंद पाण्डेय, पूर्व निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा, जाने-माने कवि-चित्रकार संदीप राशिनकर, श्री गोकुलेश्वर द्विवेदी, डा राम आसरे गोयल, हितेश पांडेय, नरेश पाण्डेय ’चकोर’ सहित तमाम साहित्यकार, पत्रकार व बुद्धिजीवी उपस्थित थे।


     गौरतलब है कि श्री कृष्ण कुमार यादव को इससे पूर्व उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा ’’अवध सम्मान’’, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लागर दम्पति’’ सम्मान, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डा0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, वैदिक क्रांति परिषद, देहरादून द्वारा ‘’श्रीमती सरस्वती सिंहजी सम्मान‘’, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा ‘‘प्यारे मोहन स्मृति सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ”महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ सम्मान”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती रत्न‘‘, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति मथुरा द्वारा ‘‘कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान‘‘, भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ द्वारा ’’पं0 बाल कृष्ण पाण्डेय पत्रकारिता सम्मान’’, सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।   


डाक निदेशक Krishna Kumar Yadav को 'साहित्य गौरव' सम्मान।
(साभार : पायनियर, 18 फरवरी 2014)
 

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

जब मैं छोटा था ...

भूमंडलीकरण और हाई-टेक होते इस समय में बहुत कुछ है जो पीछे छूट रहा है। वक़्त की भागमभाग में बहुत सारी चीजें हम विस्मृत करते जा रहे हैं।  जिन चीजों के साथ हम बड़े हुए, उन्हें ही आज बिसरा दिया।  वास्तविक सम्बन्धों पर वर्चुअल रिलेशन हावी हो गए, खतों की खुशबू कब एसएम्एस और चैट में तब्दील हो गई, पता ही नहीं चला। बाल सुलभ जिज्ञासाओं पर गूगल बाबा कुछ इतने हावी हुए कि  हर कुछ इंटरनेट पर ही खंगालने लगे।  शब्दों के अर्थ बदलने लगे, भावनाएं सिमटने लगी, मानवीय  इच्छाओं पर आभासी रंग चढ़ने लगा। वाट्स-एप पर एक मित्र ने जब नीचे लिखी पंक्तियाँ शेयर कीं तो ऐसा ही लगा -

वक़्त की भागमभाग के साथ 
शायद ज़िंदगी बदल रही है
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी। 

मुझे याद है मेरे घर से
'स्कूल' तक का वो रास्ता, 
क्या क्या नहीं था वहाँ 
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब  वहाँ 'मोबाइल शॉप','वीडियो पार्लर' हैं,
फिर भी सब सूना है
शायद अब दुनिया सिमट रही है। 

जब मैं छोटा था,
शायद शामें बहुत लम्बी 
हुआ करती थीं
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,

वो लम्बी 'साइकिल रेस',
वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,

अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है
और सीधे रात हो जाती है
शायद वक्त सिमट रहा है। 


जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना,
वो साथ हँसना और रोना। 

अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी 'ट्रैफिक सिग्नल' पर  मिलते हैं
हाय-हैलो  हो जाती है,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं। 

होली, दीवाली, जन्मदिन, नए साल
अब  बस एसएमएस  आ जाते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं। 


जब मैं छोटा था, 
तब खेल भी खूब हुआ करते थे,
छुपम-छुपाई, लँगड़ी  टाँग।
पोषम पा, कट केक, 
टिप्पी टीपी टाप.

अब वीडियो गेम, फेसबुक  से 
फुर्सत ही नहीं मिलती। 
शायद ज़िन्दगी बदल रही है। 


जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है।  
जो अक्सर कब्रिस्तान के बाहर
बोर्ड पर लिखा होता है
"मंजिल तो यही थी, 
बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते।"


ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है 
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है 

अब बच गए इस पल में
तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं.
कुछ रफ़्तार धीमी करो, 
मेरे दोस्त,

और इस ज़िंदगी को जियो
खूब जियो मेरे दोस्त … !!

- कृष्ण कुमार यादव @ शब्द-सृजन की ओर 
- फेसबुक पेज : https://www.facebook.com/KKYadav1977/


शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

हाँ, यही प्यार है

डायरी के पुराने पन्नों को पलटिये तो बहुत कुछ सामने आकर घूमने लगता है. ऐसे ही इलाहाबाद विश्विद्यालय में अध्ययन के दौरान प्यार को लेकर एक कविता लिखी थी. आज आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ-



दो अजनबी निगाहों का मिलना
मन ही मन में गुलों का खिलना
हाँ, यही प्यार है............ !!

आँखों ने आपस में ही कुछ इजहार किया
हरेक मोड़ पर एक दूसरे का इंतजार किया
हाँ, यही प्यार है............ !!

आँखों की बातें दिलों में उतरती गई
रातों की करवटें और लम्बी होती गई
हाँ, यही प्यार है............ !!

सूनी आँखों में किसी का चेहरा चमकने लगा
हर पल उनसे मिलने को दिल मचलने लगा
हाँ, यही प्यार है............ !!

चाँद व तारे रात के साथी बन गये
न जाने कब वो मेरी जिन्दगी के बाती बन गये
हाँ, यही प्यार है............ !!



- कृष्ण कुमार यादव

फेसबुक पर भी मिलें - https://www.facebook.com/krishnakumaryadav1977

प्यार का भी भला कोई दिन होता है। इसे समझने में तो जिंदगियां गुजर गईं और प्यार आज भी बे-हिसाब है। कबीर ने यूँ ही नहीं कहा कि 'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय' . प्यार का न कोई धर्म होता है, न जाति, न उम्र, न देश और न काल। … बस होनी चाहिए तो अंतर्मन में एक मासूम और पवित्र भावना। प्यार लेने का नहीं देने का नाम है, तभी तो प्यार समर्पण मांगता है। कभी सोचा है कि पतंगा बार-बार दिये के पास क्यों जाता है, जबकि वह जानता है कि दीये की लौ में वह ख़त्म हो जायेगा, पर बार-बार वह जाता है, क्योंकि प्यार मारना नहीं, मर-मिटना सिखाता है। तभी तो कहते हैं प्यार का भी भला कोई नाम होता है। यह तो सबके पास है, बस जरुरत उसे पहचानने और अपनाने की है न कि भुनाने की। -- कृष्ण कुमार यादव


मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

सृजनशीलता और उल्लास का प्रतीक है 'वसंत'

वसंत का आगमन हो चुका है।  फिजा में चारों तरफ मादकता और उल्लास का अहसास है।  कभी पढ़ा करते कि 6 ऋतुएं होती हैं- जाड़ा, गर्मी, बरसात, शिशिर, हेमत, वसंत।  पर ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव ने इन्हें इतना समेट दिया कि पता ही नहीं चलता कब कौन सी ऋतु निकल गई। पूरे वर्ष को जिन छः ऋतुओं में बांटा गया है, उनमें वसंत मनभावन मौसम है,  न अधिक गर्मी है न अधिक ठंड। यह तो शुक्र है कि अपने देश भारत में कृषि एवम् मौसम के साथ त्यौहारों का अटूट सम्बन्ध है। रबी और खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही साल के दो सबसे सुखद मौसमों वसंत और शरद में तो मानों उत्सवों की बहार आ जाती है। वसंत में वसंतोत्सव, सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि, रंग पंचमी, होली और शीतला सप्तमी के अलावा चैत्र नवरात्रि में  नव संवत्सर आरंभ, गुड़ी पड़वा,घटस्थापना, रामनवमी, चैती दशहरा, महावीर जयंती इत्यादि त्यौहार मनाये जाते हैं। वास्तव में ये पर्व सिर्फ एक अनुष्ठान भर नहीं हैं, वरन् इनके साथ सामाजिक समरसता और नृत्य-संगीत का अद्भुत दृश्य भी जुड़ा हुआ है। वसंत ऋतु में चैती, होरी, धमार जैसे लोक संगीत तो माहौल को और मादक बना देते हैं। 

माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा वसंत का आरंभ हो जाता है। वसंत का उत्सव प्रकृति और श्रृंगार का उत्सव है। इसी समय से प्रकृति के सौंदर्य में निखार दिखने लगता है। वसंत में उर्वरा शक्ति अर्थात उत्पादन क्षमता अन्य ऋतु की अपेक्षा बढ़ जाती है।  वन में टेसू के फूल आग के अंगारे की तरह लहक उठते हैं, खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल वसंत ऋतु की पीली साड़ी- सदृश दिखते हैं। किसी कवि ने कहा है कि वसंत तो अब गांवों में ही दिखता है, शहरों में नहीं। यदि शहरों में देखना है तो इस दिन पीले कपड़े पहने लड़कियां ही वसंत का अहसास कराती हैं। यह सच भी है क्योंकि क्योंकि वसंत में सरसों पर आने वाले पीले फूलों से समूची धरती पीली नजर आती है। इसी कारण इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने का चलन है।इन दिनों बोगनवेलिया, टेसू (पलाश), गुलाब, कचनार, कनेर आदि फूलने लगते हैं। आमों में बौर आ जाते हैं, गुलाब और मालती आदि के फूल खिलने लगते हैं। आम-मंजरी और फूलों पर भौंरे मँडराने लगते हैं और कोयल की कुहू-कुहू की आवाज प्राणों को उद्वेलित करने लगती है। वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनमें नए-नए गुलाबी रंग के पल्लव मन को मुग्ध करते हैं। सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति वसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है। जौ-गेहूँ में बालियाँ आने लगती हैं और वन वृक्षों की हरीतिमा मन को अपनी ओर आकर्षित करती है। पक्षियों के कलरव, पुष्पों पर भौरों का गुंजन तथा कोयल की कुहू-कुहू मिलकर एक मादकता से युक्त वातावरण निर्मित करते हैं। यौवन हमारे जीवन का वसंत है तो वसंत इस सृष्टि का यौवन है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में वसंत का अति सुंदर व मनोहारी चित्रण किया है। भगवान कृष्ण ने गीता में 'ऋतूनां कुसुमाकरः' कहकर ऋतुराज वसंत को अपनी विभूति माना है। कविवर जयदेव तो वसंत का वर्णन करते थकते ही नहीं। 

हमारे यहाँ त्यौहारों को केवल फसल एवं ऋतुओं से ही नहीं वरन् दैवी घटनाओं से जोड़कर धार्मिक व पवित्र भी बनाया गया है। यही कारण है कि भारतीय पर्व और त्यौहारों में धार्मिक देवी-देवताओं, सामाजिक घटनाओं व विश्वासों का अद्भुत संयोग प्रदर्शित होता है। वसंत पंचमी को त्योहार के रूप में मनाए जाने के पीछे भी कई ऐसे दृष्टान्त हैं। पीत वस्त्र धारण कर, पीत भोजन सेवन कर वसंत का स्वागत आज भी इसी दिन से होता है। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसीलिए इस दिन विद्या तथा संगीत की देवी की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि वसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार सरस्वती की पूजा की थी और तब से वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा करने का विधान हो गया। छोटे बच्चों को अक्षरारंभ कराने के लिए भी यह अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।

चरक संहिता में कहा गया है कि इस दिन कामिनी और कानन में अपने आप यौवन फूट पड़ता है। यही कारण है कि वसंत पंचमी का उत्सव मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है और तदनुसार  वसंत के सहचर कामदेव तथा रति की भी पूजा होती है। इस अवसर पर ब्रजभूमि में भगवान्‌ श्रीकृष्ण और राधा के आनंद-विनोद का उत्सव मुख्य रूप से मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता हैं। वसंत पंचमी के दिन से ही होली आरंभ हो जाती है और उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाई जाती है। इस दिन से होली और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। लोग वासंती वस्त्र धारण कर गायन, वाद्य एवं नृत्य में विभोर हो जाते हैं। ब्रज में तो इसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन किसान नए अन्न में घी और गुड़ मिलाकर अग्नि तथा पितृ तर्पण भी करते हैं।
 रामचरित मानस के अयोध्याकांड में भी ऋतुराज वसंत कि महिमा गाई गई है - 
रितु वसंत हबह त्रिबिध बयारी। 
सब कहं सुलभ पदारथ चारी॥ 
स्त्रक चंदन बनितादिक भोग। 
देखि हरष बिसमय बस लोग॥ 

- अर्थात् वसंत ऋतु है। शीतल, मंद, सुगंध तीन प्रकार की हवा बह रही है। सभी को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पदार्थ सुलभ हैं। माला, चंदन, स्त्री आदि भोगों को देखकर सब लोग हर्ष और विस्मय के वश हो रहे हैं।

वसंत में मौसम खुशनुमा और ऊर्जावान होता है, न ज्यादा ठंडा होता है और न गर्म। यही कारण है कि इस दौरान रचनात्मक व कलात्मक कार्य अधिक होते हैं। इस दौरान प्रकृति लोगों की  कार्यक्षमता में भी वृद्धि करती है, तभी तो लोगों की सृजन क्षमता बढ़ जाती है। ऐसे में भला कैसे सम्भव है कि वसंत पर कोई भी सृजनधर्मी कलम न चलाये।

ऐसा मानते हैं कि वसंत का उत्सव अमर आशावाद का प्रतीक है। वसंत का सच्चा पुजारी जीवन में कभी निराश नहीं होता। पतझड़ में जिस प्रकार वृक्ष के पत्ते गिर जाते हैं, उसी प्रकार वह अपने जीवन में से निराशा और असफलताओं को झटक देता है। निराशा से घिरे हुए जीवन में वसंत आशा का संदेश लेकर आता है। निराशा के वातावरण में आशा की अनोखी किरण फूट पड़ती है।

त्यौहारों की रंगत और उल्लास अपनी जगह है, पर क्या इसे बहाने हम प्रकृति में हो रहे बदलावों के प्रति भी सचेत हैं. ऋतुओं का असमय आना-जाना यदि इसी तरह चलता रहा तो हम तारीखों में ही इन्हें ढूंढते रह जायेंगें. इन त्यौहारों के बहाने यह भी सीखने की जरुरत है कि वसंत का पीलापन और होली के टेसू कैसे बचाए जाएँ...!!