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सोमवार, 4 मार्च 2013

'प्रिय प्रवास' के शताब्दी वर्ष में कवि सम्राट पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' पर विशेष आवरण जारी

पिछले दिनों अपने गृह जनपद आजमगढ़ में था। मौका था आजमगढ़ में 9 साल बाद आयोजित दो दिवसीय आजमगढ़ डाक टिकट प्रदर्शनी” (आजमपेक्स-2013, 2-3 मार्च 2013) का। प्रदर्शनी के साथ-साथ इस अवसर पर पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' और वीर रस के कवि श्याम नारायण पाण्डेय पर विशेष डाक-आवरण भी जारी किया गया।
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आज़मगढ़ ने तमाम साहित्यिक विभूतियों को पल्लवित-पुष्पित किया है। इन्हीं में से एक प्रमुख नाम है- कवि सम्राट पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' का। 'हरिऔध' जी की स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 2 मार्च, 2013 को "आजमगढ़ डाक टिकट प्रदर्शनी” (आजमपेक्स-2013) के दौरान एक विशेष डाक आवरण और विरूपण जारी किया। उत्तर प्रदेश परिमंडल के चीफ पोस्टमास्टर जनरल कर्नल कमलेश चन्द्र ने इलाहाबाद/गोरखपुर परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ एवं चर्चित साहित्यकार व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव की अध्यक्षता में आयोजित एक कार्यक्रम में इस विशेष डाक आवरण का विमोचन किया।

चीफ पोस्टमास्टर जनरल कर्नल कमलेश चन्द्र ने कहा कि पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी द्वारा रचित खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य 'प्रिय प्रवास' का इस समय शताब्दी वर्ष भी मनाया जा रहा है, ऐसे में डाक विभाग द्वारा उन पर विशेष आवरण जारी किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम माना जाना चाहिए।

चर्चित साहित्यकार एवं ब्लागर व सम्प्रति निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव ने इस अवसर पर हरिऔध जी के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि हरिऔध जी ने गद्य और पद्य दोनों ही क्षेत्रों में हिंदी की सेवा की। वे द्विवेदी युग के प्रमुख कवि रहे है। उन्होंने सर्वप्रथम खड़ी बोली में काव्य-रचना करके यह सिद्ध कर दिया कि उसमें भी ब्रजभाषा के समान खड़ी बोली की कविता में भी सरसता और मधुरता आ सकती है।

श्री यादव ने कहा कि हरिऔध जी आधुनिक हिंदी खड़ी बोली के पितामह हैं। उन्होंने खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य 'प्रिय प्रवास' की रचना करके साहित्य-जगत में शीर्ष स्थान प्राप्त किया । आज भी हरिऔध जी का काव्य ग्रंथ 'प्रिय प्रवास' तथा 'वैदेही वनवास' हिंदी खड़ी भाषा के मील के पत्थर के रुप में स्वीकार किये जाते हैं। उन्होंने कहा कि हरिऔध जी ने विविध विषयों पर काव्य रचना की है। यह उनकी विलक्षण विशेषता है कि उन्होंने राम-सीता, कृष्ण-राधा जैसे धार्मिक विषयों के साथ-साथ आधुनिक समस्याओं को भी अपनी रचनाओं में लिया है और उन पर नवीन ढंग से अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। वास्तव में देखा जाये तो प्राचीन और आधुनिक भावों के मिश्रण से 'हरिऔध' जी के काव्य में एक अद्भुत चमत्कार उत्पन्न हो गया है।

कार्यक्रम में साहित्यकार डा0 कन्हैया सिंह ने हरिऔध जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान में हुआ। सन १८८९ में हरिऔध जी को सरकारी नौकरी मिल गई। वे कानूनगो हो गए। इस पद से सन १९३२ में अवकाश ग्रहण करने के बाद हरिऔध जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रूप से कई वर्षों तक अध्यापन कार्य किया। सन १९४१ तक वे इसी पद पर कार्य करते रहे। उसके बाद यह निजामाबाद वापस चले आए। इस अध्यापन कार्य से मुक्त होने के बाद हरिऔध जी अपने गाँव में रह कर ही साहित्य-सेवा कार्य करते रहे। अपनी साहित्य-सेवा के कारण हरिऔध जी ने काफी ख़्याति अर्जित की। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें एक बार सम्मेलन का सभापति बनाया और विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। सन १९४५ ई० में निजामाबाद में आपका देहावसान हो गया।

 
                              (साभार : समाचार-पत्रों में प्रकाशित समाचार से )

 

 

 

 

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कवियों के सम्मान ने डाक विभाग को गौरवान्वित किया है।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Main bhi to Azh. ki hoon. Nice .