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शनिवार, 31 दिसंबर 2011

जनवाणी में शब्द-सृजन की ओर की पोस्ट : सुनामी के आंसू





'शब्द सृजन की ओर' पर 26 दिसंबर, 2011 को प्रकाशित पोस्ट 'सुनामी के आंसू' को मेरठ से प्रकाशित प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक जनवाणी संवाद ने 28 दिसंबर 2011 को अपने नियमित स्तंभ ‘ब्लॉगवाणी’ में प्रकाशित किया है.... आभार !

इससे पहले 'शब्द सृजन की ओर' ब्लॉग की पोस्टों की चर्चा जनसत्ता, अमर उजाला, LN स्टार इत्यादि में हो चुकी है. मेरे दूसरे ब्लॉग 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग और इसकी प्रविष्टियों की चर्चा दैनिक हिंदुस्तान, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, राजस्थान पत्रिका, उदंती, LN STAR पत्र-पत्रिकाओं में हो चुकी है.

इस प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार !!

साभार : Blogs in Media

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

30 दिसंबर 1943 : जब नेताजी ने फहराया पहला राष्ट्रीय ध्वज

राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश के लिए बहुत मायने रखता है, विशेषकर एक पराधीन देश के लिए. इस रूप में आज का दिन काफी महत्वपूर्ण है. आज ही के दिन 30 दिसंबर 1943 को आजाद हिंद फ़ौज (Indian National Army) के सुप्रीम कमांडर के रूप में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सर्वप्रथम अंडमान में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था. तब हमारा देश अंग्रेजों का पराधीन था और अंडमान में जापान का कब्ज़ा था. जापान से नेता जी के उस समय मधुर सम्बन्ध थे।


नेता जी यहाँ अंडमान में सेलुलर जेल देखने आए थे और अंडमान-निकोबार को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र पहले क्षेत्र के रूप में घोषित कर उन्होंने यहाँ जिमखाना ग्राउंड (अब नेता जी स्टेडियम) में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था. नेता जी ने इन द्वीपों को 'शहीद' और 'स्वराज' नाम दिया था. उस समय नेता जी कि सरकार को 9 देशों की सरकार ने मान्यता दी थी. तब से हर साल 30 दिसंबर को यहाँ पोर्टब्लेयर, अंडमान में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराकर उस दिन को याद किया जाता है. आज उस ऐतिहासिक पल को 68 साल पूरे हो गए...!!

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30th December is a significant day in the history of India in general and the Andamans in particular. On this day in the year 1943, Netaji Subhash Chandra Bose hoisted the National Flag for the first time at Port Blair declaring the islands, the first Indian Territory to be liberated from the British rule, renamed them “Saheed” and “Swaraj”. His historic visit to the Andamans as the head of Provisional Government of Azad Hind during the Japanese occupation made a symbolic fulfillment of the his promise that INA would stand on the Indian soil by the end of 1943.Today the day is celebrated as “Andaman Day”, the day marks the anniversary of the unfurling of the first Indian Tricolour.

- कृष्ण कुमार यादव

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

सुनामी के आंसू...

26 दिसंबर 2004 को अंडमान-निकोबार में भयंकर सुनामी आई थी. आज उस घटना को सात साल पूरे हो गए हैं. अभी 20और 21 दिसंबर, 2011 को जब मैं निकोबार गया था तो वहाँ सुनामी मेमोरियल भी गया. सुनामी मेमोरियल के अन्दर प्रदर्शित एक पट्टिका पर उन लोगों के नाम दर्ज हैं, जो सुनामी की भेंट चढ़ गए. इस पर लगभग 700 लोगों के नाम अंकित हैं. इसमें मात्र उन्हीं लोगों के नाम शामिल हैं, जिनका मृत-शरीर पाया गया. जिनका मृत शरीर नहीं पाया गया, उनके बारे में यह पट्टिका मौन है.हमारी कार का ड्राइवर राधा-कृष्णन बता रहा था कि उसकी पत्नी और दोनों बच्चे सुनामी में ख़त्म हो गए. पर लाश सिर्फ एक बच्चे की मिली. यहाँ पट्टिका पर सिर्फ उस बच्चे का नाम दर्ज है, पत्नी और एक बच्चे का नहीं. यह कहते हुए वह फफक-फफक कर रो पड़ा. हमारी भी आँखों की कोर गीली हो गईं.सुनामी के आंसू अभी भी नहीं सूखे हैं..रह-रह कर मन में टीस देते हैं. यह भी एक अजीब विडम्बना है. हमारी तरफ से उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि, जो प्रकृति की इस क्रूर-लीला का शिकार हो गए !!
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के मुख्य गेट के समक्ष कृष्ण कुमार यादव. सुनामी मेमोरियल, निकोबार के समक्ष कृष्ण कुमार यादव. सुनामी मेमोरियल, निकोबार के अन्दर प्रदर्शित पट्टिका, जिस पर लिखा है कि आगामी पीढ़ियों को इस विभीषिका को कभी नहीं भूलना चाहिए. सुनामी मेमोरियल, निकोबार के अन्दर प्रदर्शित पट्टिका, जिस पर उन लोगों के नाम दर्ज हैं, जो सुनामी की भेंट चढ़ गए. इस पर लगभग 700 लोगों के नाम अंकित हैं. इसमें मात्र उन्हीं लोगों के नाम शामिल हैं, जिनका मृत-शरीर पाया गया. जिनका मृत शरीर नहीं पाया गया, उनके बारे में यह पट्टिका मौन है. हमारी कार का ड्राइवर राधा-कृष्णन बता रहा था कि उसकी पत्नी और दोनों बच्चे सुनामी में ख़त्म हो गए. पर लाश सिर्फ एक बच्चे की मिली. यहाँ पट्टिका पर सिर्फ उस बच्चे का नाम दर्ज है, पत्नी और एक बच्चे का नहीं. यह कहते हुए वह फफक-फफक कर रो पड़ा. हमारी भी आँखों की कोर गीली हो गईं.यह भी एक अजीब विडम्बना है. हमारी तरफ से उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि, जो प्रकृति की इस क्रूर-लीला का शिकार हो गए !!निकोबारी गाँव में एक निकोबारी-हट में लगी उन लोगों की नाम पट्टिका, जो सुनामी की विभीषिका में ख़त्म हो गए.निकोबारी गाँव में एक निकोबारी-हट में लगी उन लोगों की नाम पट्टिका, जो सुनामी की विभीषिका में ख़त्म हो गए. जब इस वृद्ध निकोबारी से बात किया, तो उसकी ऑंखें छलक आईं. किसने सोचा था की एक दिन सुनामी का यह कहर उनके अपनों को लील जायेगा. सुनामी की लहर में कुछेक द्वीपों से तो लोग बहते हुए समुद्र तट पर आ गये और फिर अपनी बसी-बसाई गृहस्थी की यादों और नारियल के बगान छोड़कर इधर ही बस गए. वृद्ध निकोबारी के साथ कृष्ण कुमार यादव .निकोबारी गाँव में निकोबारी-हट के समक्ष कृष्ण कुमार यादव.
निकोबारी-हट के अन्दर कृष्ण कुमार यादव.
निकोबारी हट के समक्ष कृष्ण कुमार यादव. हर निकोबारी कबीले में ऐसी एक हट होती है, जिसे वे सामुदायिक-गृह के रूप में प्रयोग करते हैं. शादी-ब्याह, उत्सव के दौरान मेहमानों के ठहरने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. यह दो मंजिला होती है.सुनामी से पहले बनी निकोबारी-झोपड़ियाँ, जो अब नष्टप्राय हो गई हैं. इसके बदले में प्रशासन ने निकोबरियों को नए घर उपलध कराए हैं.सुनामी पश्चात् निकोबरियों को सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए नए मकान.
सुनामी के दौरान पुरानी जेट्टी स्थित समुद्र तट के पास अवस्थित कई मकान इत्यादि ध्वस्त हो गए, पर मुरूगन देवता का यह मंदिर सलामत रहा. यही कारण है कि लोग इस मंदिर के प्रति काफी आस्था रखते हैं.निकोबार में समुद्र तट के किनारे पड़ी, निकोबारी लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाती रहीं डोंगी (बोट). सुनामी के दौरान ये सब ख़राब हो गईं.सुनामी के दौरान निकोबार में काफी नुकसान हुआ. इसी दौरान एक जलयान (Ship) पानी में डूब गया. उसके अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं.निकोबार की पुरानी जेट्टी, जो सुनामी में नष्ट हो गई. अब यहाँ नई जेट्टी बनाने का कार्य चल रहा है.सुनामी ने यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा और जैव विविधता को काफी नुकसान पहुँचाया. समुद्र के किनारे और जंगलों तक में नष्ट हो गई कोरल्स बिखरी पड़ी हैं.ऐसी ही कोरल्स के साथ कृष्ण कुमार यादव. अंडमान-निकोबार के समुद्र तट (Beach) अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ मोतियों जैसे चमकते सफ़ेद बालू के लिए भी जाने जाते हैं. इनका आकर्षण ही कुछ अलग होता है.इस आकर्षण का लुत्फ़ उठाते कृष्ण कुमार यादव . निकोबार में एक तट का रमणीक दृश्य.निकोबार में नारियल वृक्षों का एक रमणीक दृश्य. निकोबारी नारियल-फल को इकठ्ठा कर मुख्य भूमि भेजते हैं और यह इनकी आय का प्रमुख स्रोत है.
निकोबार में मात्र दो जनजातियाँ पाई जाती हैं-निकोबारी और शौम्पेन. इनमें से निकोबारी अब सभ्य हो चुके हैं. वे बकायदा शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और तमाम रोजगारों में भी हैं. निकोबारी बालकों के साथ कृष्ण कुमार यादव.दितीय विश्व-युद्ध के दौरान अंडमान-निकोबार पर जापानियों का कब्ज़ा रहा. उन्होंने शत्रु-राष्ट्रों से मुकाबले के लिए अंडमान-निकोबार की अवस्थिति के चलते इसे एक महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र के रूप में इस्तेमाल किया. यहाँ पर अभी भी कई बंकर और तोपों के अवशेष देखे जा सकते हैं. ऐसी ही एक तोप के समक्ष खड़े कृष्ण कुमार यादव.1942-45 के दौरान दितीय विश्व युद्ध के समय जापानियों का अंडमान-निकोबार पर कब्ज़ा रहा. इस दौरान उन्हें सबसे ज्यादा भय अंग्रेजी बोलने वालों और शिक्षित लोगों से था. ऐसे लोगों को वे अंग्रेजों का मुखबिर समझते थे. ऐसे तमाम लोगों को जापानियों ने न्रीशन्षता -पूर्वक मौत के घाट उतार दिया. सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष ऐसे लोगों की सूची, जिन्हें जापानियों ने ख़त्म कर दिया.
सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष बिशप डा. जान रिचर्डसन (1884- 3 जून 1978) की मूर्ति. बिशप डा. जान रिचर्डसन को निकोबरियों को सभ्य बनाने का श्रेय जाता है. भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित बिशप जान रिचर्डसन संसद हेतु अंडमान-निकोबार से प्रथम मनोनीत सांसद भी थे.सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष बिशप डा. जान रिचर्डसन (1884- 3 जून 1978) की समाधि.सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार में एक निकोबारी बालक और अपने मित्र के साथ कृष्ण कुमार यादव.
कार-निकोबार में अवस्थित जान रिचर्डसन स्टेडियम. इसका उद्घाटन 15 अप्रैल, 1994 को तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री पी. वी. नरसिम्हा राव जी द्वारा किया गया था. अंडमान-निकोबार लोक निर्माण विभाग के अतिथि-गृह में कृष्ण कुमार यादव.अंडमान-निकोबार लोक निर्माण विभाग के अतिथि-गृह के समक्ष कृष्ण कुमार यादव.कार-निकोबार में किमूस-नाला के ऊपर बने इस 180 फीट के वैली-ब्रिज का उद्घाटन दिसंबर माह में ही अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के मुख्य सचिव श्री शक्ति सिन्हा द्वारा किया गया है. इस पुल के बन जाने से आवागमन में काफी सुविधा उत्पन्न हो गई है.


-कृष्ण कुमार यादव

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

आकांक्षा यादव को भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 'डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चित ब्लागर आकांक्षा यादव को ‘’डा0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। उक्त सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला द्वारा प्रदान किया गया.

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनो / पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं. पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं. व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ , ‘सप्तरंगी प्रेम’ ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. 'क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने ‘बाल साहित्य समीक्षा‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं. श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’ , अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि. जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा 'राष्ट्रीय भाषा रत्न' इत्यादि शामिल हैं.

आकांक्षा यादव जी को इस सम्मान-उपलब्धि पर हार्दिक बधाइयाँ !!

दुर्गविजय सिंह 'दीप'
उपनिदेशक- आकाशवाणी (समाचार)
पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.

रविवार, 4 दिसंबर 2011

हाइकु-दिवस पर कृष्ण कुमार यादव के हाइकु

हाइकु हिंदी-साहित्य में तेजी से अपने पंख फ़ैलाने लगा है. कम शब्दों (5-7-5)में मारक बात. भारत में प्रो० सत्यभूषण वर्मा का नाम हाइकु के अग्रज के रूप में लिया जाता है. यही कारण है कि उनका जन्मदिन हाइकु-दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज 4 दिसम्बर को उनका जन्म-दिवस है, अत: आज ही हाइकु दिवस भी है। इस बार हाइकुकार इसे पूरे सप्ताह तक (4 दिसम्बर - 11 दिसम्बर 2011 तक) मना रहे हैं. इस अवसर पर मेरे कुछ हाइकु का लुत्फ़ उठाएं-

टूटते रिश्ते
सूखती संवेदना
कैसे बचाएं

विद्या की अर्थी
रोज ही निकलती
योग्यता त्रस्त।

हर किसी का
फिक्स हो गया रेट
रिश्वतखोरी।

पावन शब्द
अवर्णनीय प्रेम
सदा रहेंगे।

प्रकृति बंधी
नियमों से अटल
ललकारो ना।