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बुधवार, 26 जनवरी 2011

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

नेता बिकते हैं मूल्यों में..

आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस है. आज ही के दिन निर्वाचन योग का गठन हुआ था. चूँकि देश में पहली बार यह दिवस मनाया जा रहा है, तो शोशेबजियाँ भी हैं. बहुत पहले जब इलाहाबाद विश्विद्यालय से स्नातक कर रहा था, तो चार पंक्तियाँ लिखी थीं, जो दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित हुई थी, आज इस राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर फिर वहीँ चार पंक्तियाँ याद आ रही हैं-

जनता नेताओं को चुनती है
अमूल्य मतों से
और नेता बिकते हैं
मूल्यों में !!

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

अब पानी पर भी दौड़ेगा प्लेन...


अंडमान में रहते हुए परिवहन के विभिन्न साधनों का एक साथ आनंद लिया जा सकता है. हवाई जहाज, हेलीकाप्टर, क्रूज, जलयान (शिप) और अब सी-प्लेन. द्वीपों के लिए देश का पहला सी प्लेन पोर्टब्लेयर में 30 दिसम्बर, 2010 को को उपराज्यपाल द्वारा समर्पित किया गया। देखने में हैलीकॉप्टर की तरह लगने वाला सीप्लेन पानी पर भी लैंड कर सकता है और पानी से टैक ऑफ भी कर सकता है अर्थात पानी और हवा दोनों में फर्राटे भरने का जुनून. ‘जल हंस’ सी प्लेन स्थल व जल सेसना कारावन 208 ए विमान है, जिसमें आधुनिक नौचालन उपकरण भी लगे हुए हैं और इसमें दो क्रू मेंबर के अलावा 8 यात्री सफर का लुफ्त उठा सकते हैं। यह विमान एक घंटे में करीब 250 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकता है और अपने चक्के के समनुरूप इस विमान को जमीन पर भी उतारा जा सकता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के पवन हंस हेलीकाॅप्टर्स लिमिटेड (पी॰ एच॰ एच॰ एल॰) तथा अंडमान निकोबार प्रशासन के साझा सहयोग से शुरू की गई सी प्लेन की यह सेवा फिलहाल 21 जनवरी से पोर्टब्लेयर और हैवलाॅक के बीच आरंभ किये जाने की सम्भावना है. प्रारम्भिक दौर में 15 दिनों तक इसका किराया एक तरफ के लिए 2,000 रूपये और तत्पश्चात 3,000 रूपये निर्धारित किया गया है. बाद में इस सेवा का उपयोग उत्तर व मध्य अंडमान के अन्य द्वीपों के लिए भी किया जाएगा। सम्भावना है कि यह बैरन आइलैंड (भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी स्थल) का चक्कर काटते हुए डिगलीपुर (दक्षिण अंडमान का अंतिम क्षोर, जहाँ पिछले रेल बजट में पोर्टब्लेयर से डिगलीपुर तक ट्रेन चलने कि बात कही गई थी) तक जायेगा और एक तरफ का किराया संभवत: 10,000 रूपये होगा. सी प्लेन पोर्टब्लेयर एयरपोर्ट से उड़ान भरने के बाद हैवलॉक और डिगलीपुर में समुद्र में बने एयरपोर्ट पर उतरेगा और फिर यहीं से उड़ान भरेगा। यात्रियों को सुरक्षित सेवा देने के लिए और किनारों से विमान तक पहुंचाने के लिए 10 यात्रियों की क्षमता वाली स्पीडबोट भी तैनात की जाएंगी. इसके अलावा अन्य नावें भी वहां तैनात की जा रही हैं.

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया सी प्लेन फ़िलहाल लोगों में कौतुहल का विषय बना हुआ है. यदि अंडमान में यह प्रयोग सफल रहा तो आने वाले दिनों में इसे देश के दूसरे इलाकों लक्षद्वीप, गोवा और उड़ीसा में भी संचालित किया जा सकता है.

फ़िलहाल हम तो तैयारी कर रहे हैं सपरिवार सी-प्लेन का लुत्फ़ उठाने के लिए. आप भी कभी अंडमान आयें तो इसका लुत्फ़ जरुर लीजियेगा... !!

बुधवार, 12 जनवरी 2011

संक्रमण काल के दौर में युवा शक्ति

युवा किसी भी समाज और राष्ट्र के कर्णधार हैं, वे उसके भावी निर्माता हैं। चाहे वह राजनेता या प्रशासक के रूप में हों अथवा डाक्टर, इन्जीनियर, वैज्ञानिक, साहित्यकार व कलाकार के रूप में हों । इन सभी रूपों में उनके ऊपर अपनी सभ्यता, संस्कृति, कला एवम् ज्ञान की परम्पराओं को मानवीय संवेदनाओं के साथ आगे ले जाने का गहरा दायित्व होता है। पर इसके विपरीत अगर वही युवा वर्ग इन परम्परागत विरासतों का वाहक बनने से इन्कार कर दे तो राष्ट्र का भविष्य अन्धकारमय भी हो़ सकता है।

युवा शब्द अपने आप में ही ऊर्जा और आन्दोलन का प्रतीक है। युवा को किसी राष्ट्र की नींव तो नहीं कहा जा सकता पर यह वह दीवार अवश्य है जिस पर राष्ट्र की भावी छतों को सम्हालने का दायित्व है। भारत की कुल आबादी में युवाओं की हिस्सेदारी करीब 50 प्रतिशत है जो कि विश्व के अन्य देशों के मुकाबले काफी है। इस युवा शक्ति का सम्पूर्ण दोहन सुनिश्चित करने की चुनौती इस समय सबसे बड़ी है। जब तक यह ऊर्जा और आन्दोलन सकारात्मक रूप में है तब तक तो ठीक है, पर ज्यों ही इसका नकारात्मक रूप में इस्तेमाल होने लगता है वह विध्वंसात्मक बन जाती है। वस्तुतः इसके पीछे जहाँ एक ओर अपनी संस्कृति और जीवन मूल्यों से दूर हटना है, वहीं दूसरी तरफ हमारी शिक्षा व्यवस्था का भी दोष है। आर्थिक उदारीकरण और भूमण्डलीकरण के बाद तो युवा वर्ग के विचार-व्यवहार में काफी तेजी से परिवर्तन आया है। पूँजीवादी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की बाजारी लाभ की अन्धी दौड़ और उपभोक्तावादी विचारधारा के अन्धानुकरण ने उसे ईष्र्या, प्रतिस्पर्धा और शार्टकट के गर्त में धकेल दिया। फिल्मी परदे पर हिंसा, बलात्कार, प्रणय दृश्य, यौन-उच्छश्रंृखलता एवम् रातों-रात अमीर बनने के दृश्यों को देखकर आज का युवा उसी जिन्दगी को वास्तविक रूप में जीना चाहता है। कभी विद्या, श्रम, चरित्रबल और व्यवहारिकता को सफलता के मानदण्ड माना जाता था पर आज सफलता की परिभाषा ही बदल गयी है। आज का युवा अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों से परे सिर्फ आर्थिक उत्तरदायित्वों की ही चिन्ता करता है।

शिक्षा एक व्यवसाय नहीं संस्कार है, पर जब हम आज की शिक्षा व्यवस्था देखते हैं, तो यह व्यवसाय ही ज्यादा ही नजर आती है। युवा वर्ग स्कूल व काॅलेजों के माध्यम से ही दुनिया को देखने की नजर पाता है, पर शिक्षा में सामाजिक और नैतिक मूल्यों का अभाव होने के कारण इसका सीधा सरोकार मात्र रोजगार से जुड़ गया है। आज के युवा को राजनीति ने भी प्रभावित किया है। देश की आजादी में युवाओं ने अहम् भूमिका निभाई और जरूरत पड़ने पर नेतृत्व भी किया। कभी विवेकानन्द जैसे व्यक्तित्व ने युवा कर्मठता का ज्ञान दिया तो सन् 1977 में लोकनायक के आहृान पर सारे देश के युवा एक होकर सड़कों पर निकल आये पर आज वही युवा अपनी आन्तरिक शक्ति को भूलकर चन्द लोगों के हाथों का खिलौना बन गये हंै। राजनीतिज्ञों ने भी युवा कुण्ठा को उभारकर उनका अपने पक्ष में इस्तेमाल किया और भविष्य के अच्छे सब्जबाग दिखाकर उनका शोषण किया। ऐसे में अवसरवाद की राजनीति ने युवाओं को हिंसा, हड़ताल व प्रदर्शनों में आगे करके उनकी भावनाओं को भड़काने और गुमराह करने का प्रयास किया है।

आज का युवा संक्रमण काल से गुजर रहा है। वह अपने बलबूते आगे तो बढ़ना चाहता है, पर परिस्थितियाँ और समाज उसका साथ नहीं देते। चाहे वह राजनीति हो, फिल्म व मीडिया जगत हो, शिक्षा हो, उच्च नेतृत्व हो- हर किसी ने उसे सुखद जीवन के सब्ज-बाग दिखाये और फिर उसको भँवर में छोड़ दिया। ऐसे में पीढ़ियों के बीच जनरेशन गैप भी बढ़ा है। समाज की कथनी-करनी में भी जमीन आसमान का अन्तर है। एक तरफ वह सभी को डिग्रीधारी देखना चाहता है, पर सभी हेतु रोजगार उपलब्ध नहीं करा पाता, नतीजन- निर्धनता, मँहगाई, भ्रष्टाचार इन सभी की मार सबसे पहले युवाओं पर पड़ती है। इसी प्रकार व्यावहारिक जगत मंे आरक्षण, भ्रष्टाचार, स्वार्थ, भाई-भतीजावाद और कुर्सी लालसा जैसी चीजों ने युवा हृदय को झकझोर दिया है। जब वह देखता है कि योग्यता और ईमानदारी से कार्य सम्भव नहीं, तो कुण्ठाग्रस्त होकर गलत रास्तों पर चलने को मजबूर हो जाता है। ऐसे में ही समाज के दुश्मन उनकी भावनाओं को भड़काकर व्यवस्था के विरूद्ध विद्रोह के लिए प्रेरित करते हैं, फलतः अपराध और आतंकवाद का जन्म होता है। युवाओं को मताधिकार तो दे दिया गया है पर उच्च पदों पर पहुँचने और निर्णय लेने के उनके स्वप्न को दमित करके उनका इस्तेमाल राजनीतिज्ञों द्वारा सिर्फ अपने स्वार्थ में किया जा रहा है।

युवाओं ने आरम्भ से ही इस देश के आन्दोलनों में रचनात्मक भूमिका निभाई है- चाहे वह सामाजिक, शैक्षणिक, राजनैतिक या सांस्कृतिक हो। लेकिन आज युवा आन्दोलनों के पीछे किन्हीं सार्थक उद्देश्यों का अभाव दिखता है। युवा व्यवहार मूलतः एक शैक्षणिक, सामाजिक, संरचनात्मक और मूल्यपरक समस्या है जिसके लिए राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक सभी कारक जिम्मेदार हैं। ऐसे में समाज के अन्य वर्गों को भी अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होना चाहिए, सिर्फ युवाओं को दोष देने से कुछ नहीं होगा। आज सवाल सिर्फ युवा शक्ति के भटकाव का नहीं है, बल्कि अपनी संस्कृति, सभ्यता, मूल्यों, कला एवम् ज्ञान की परम्पराओं को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने का भी है। युवाओं को भी ध्यान देना होगा कि कहीं उनका उपयोग सिर्फ मोहरों के रूप में न किया जाय।

(संयोगवश आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंती भी है और इसे राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है !!)

कृष्ण कुमार यादव